हरियाणा के 957 गांवों में भू-जल स्तर की गिरावट दर सालाना 1 मीटर प्रति वर्ष तक पहुंच गई है. जबकि 707 गांवों में गिरावट दर 1-2 मीटर प्रति वर्ष के बीच तक जा पहुंची है. यही नहीं 79 गांवों में इसकी गिरावट सालाना 2 मीटर से ज्यादा है. इन आंकड़ों को राज्य सरकार खुद स्वीकार कर रही है. यानी पानी को लेकर हालात बहुत भयावह हैं. सबसे ज्यादा पानी कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता है इसलिए इस कृषि प्रदेश की सरकार ने पानी बचाने को लेकर किसानों से बड़ी उम्मीद लगा रखी है. सरकार किसानों से गैर बासमती धान की खेती छोड़ने की अपील कर रही है. इसका जमीन पर असर होता हुआ भी दिखाई दे रहा है. राज्य सरकार का दावा है कि 2020 से अब तक सूबे में किसानों ने 1,74,000 एकड़ जमीन पर धान की खेती छोड़ दी है. अब अन्नदाता पानी बचाने की जंग में भी कूद पड़ा है.
राज्य में बढ़ते जल संकट को देखते हुए हरियाणा सरकार ने मेरा पानी मेरी विरासत योजना नाम की योजना शुरू की थी. इसके तहत धान की खेती छोड़ने वाले किसानों को 7000 रुपये प्रति एकड़ की प्रोत्साहन रकम दी जा रही है. साथ ही उसकी जगह बोई गई फसल की एमएसपी पर खरीद की पूरी गारंटी भी. इन दो वजहों से यहां पर किसान धान की खेती छोड़ रहे हैं. पंजाब में भी पानी की यही समस्या है लेकिन अब तक वहां की सरकार अपने सूबे के किसानों से धान की खेती छोड़ने वाली ऐसी कोई योजना नहीं दे पाई. दरअसल, धान की खेती में पानी काफी लगता है. एक किलो चावल तैयार होने में करीब 3000 लीटर पानी खर्च होता है. इसलिए हरियाणा में धान का रकबा कम करने की कोशिश हो रही है.
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जिन ब्लॉकों में पानी का संकट है उनमें धान की खेती कम करवाई जा रही है. ऐसे स्थानों पर मक्का, तिलहन, दलहन, सब्जियों और कपास की खेती को प्रमोट किया जा रहा है. ताकि पानी कम खर्च हो और किसानों को घाटा भी न हो. बस कोशिश यही है कि बस किसी तरह से धान का रकबा कम से कम हो जाए. हालांकि, बासमती धान की खेती छोड़ने की बात नहीं की जा रही है क्योंकि बासमती चावल के एक्सपोर्ट से किसानों की अच्छी कमाई होती है.
हरियाणा में 7287 गांव हैं. इनमें से 1948 गांव ऐसे हैं जो गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं. जबकि 3041 में पानी की कमी है. केंद्रीय जल आयोग ने हरियाणा के 36 ब्लॉकों को डार्क जोन घोषित कर दिया है. ऐसे में अब यहां के लोग पानी नहीं बचाएंगे तो फिर उनके लिए आने वाले दिनों में संकट गहरा जाएगा. इसीलिए यदि कोई किसान धान वाले खेत को खाली भी छोड़ रहा है तो भी उसके खाते में 7000 रुपये दिए जा रहे हैं. सरकार हर गांव में पीजोमीटर (Piezometer) लगा रही है ताकि उन गांवों के लोगों को अपने यहां का भू-जल स्तर पता रहे और वो पानी की बचत करें.
उधर, एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने कहा कि किसानों ने रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग कर फसल की पैदावार तो बढ़ा ली, लेकिन जमीन की गुणवत्ता खराब हो गई. केमिकल के कारण जमीन में एक पक्की लेयर बन गई. जिसकी वजह से बरसात का पानी जमीन के नीचे नहीं जा रहा, जिससे कई क्षेत्रों में जलभराव व दलदल की समस्या बन चुकी है. इतना ही नहीं, रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण आज कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो रही है. इस समस्या से निजात पाने के लिए हमें प्राकृतिक खेती की ओर जाना होगा.
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