छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में डोंगीतराई गांव के किसान जय प्रकाश पटेल की कहानी गांव में एक किसान के द्वारा इंडस्ट्रियल पार्क बनाने के सपने को जमीन पर उतारने की कहानी है. माना जाता है कि ग्रामीण इलाकों में सरकार ही इंडस्ट्रियल पार्क बना सकती है. मगर, राज्य सरकार की Rural Industrial Park Scheme यानी रीपा योजना ने इस मिथक को तोड़ा है. जयप्रकाश भी मानते हैं कि किसान से कारोबारी बनने के लिए रीपा योजना ने ही उन्हें सही राह दिखाई है. ग्रामीण इलाकों में उद्यमिता को बढ़ावा देते हुए लघु औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने के लिए किसानों को वित्तीय एवं तकनीकी मदद देने वाली इस योजना के हितग्राही बनकर जय प्रकाश ने अपने गांव में श्रीअन्न के प्रसंस्करण की यूनिट लाई है. उनका दावा है कि वह अपनी Millets Processing Unit से अब 7 लाख रुपये तक के मिलेट्स की हर महीने बिक्री करने लगे हैं.
छत्तीसगढ़ सरकार ने रीपा योजना की मदद से जयप्रकाश जैसे किसान की Success Story साझा करते हुए बताया कि इस योजना के तहत किसानों को गांव में ही अपना कारोबार स्थापित करने के लिए सभी जरूरी मूलभूत आवश्यकताएं मुहैया कराई जाती हैं.
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जयप्रकाश बताते हैं कि उन्होंने रीपा योजना के तहत प्रोसेसिंग एवं पैकिंग यूनिट अपने गांव में ही लगाई थी. इसकी कुल लागत 25 लाख रुपये थी. इसके लिए उन्हें लागत का खर्च खुद वहन नहीं करना पड़ा. रीपा के लाभार्थी के रूप में उन्हें यह यूनिट लगाने के लिए 10 लाख रुपये का लोन बैंक से मिला, 5 लाख रुपये पीएम रोजगार गारंटी कार्यक्रम (PMEGP) से और 10 लाख रुपये रीपा फंड से मिले.
कुल लागत मूल्य के रूप में आसान दरों पर मिले ऋण की मदद से जय प्रकाश ने प्रोसेसिंग एवं पैकेजिंग यूनिट शुरू की. इससे वह रोजाना 400 से 500 किग्रा मिलेट्स को प्रोसेस करके पैकिंग करते हैं. इसमें कोदो, बाजरा और रागी सहित अन्य प्रकार के श्रीअन्न को प्रोसेस करके वह हर माह लगभग 7 लाख रुपये तक की बिक्री करते हैं. इससे उन्हें औसतन 90 हजार रुपये प्रति माह का शुद्ध मुनाफा हो जाता है.
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जय प्रकाश ने बताया कि पोस्ट ग्रेजुएट तक की पढ़ाई करने के बाद वह खेती में अपने पिता का हाथ बंटाते थे. इस बीच एक फसल बाजार कंपनी में नौकरी करते हुए उन्होंने मार्केटिंग के जरूरी गुर सीख लिए. इस बीच रीपा योजना शुरू हुुुई और उन्होंने इसका हिस्सा बनकर गांव में ही रहते हुए किसान कारोबारी बनने की हसरत पूरी कर ली.
उन्होंने बताया कि अब वह गांव के अन्य किसानों को भी अपने मुनाफे में हिस्सेदार बनाने के लिए उन्हें श्रीअन्न की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. अपने साथी किसानों के उपजाए मिलेट्स को बाजार भाव पर खरीद कर वह गांव में ही किसानों को घर बैठे उपज की अच्छी कीमत देते हैं. साथ ही प्रोसेसिंग और पैकिंग के काम में वह गांव के युवाओं को भी साल भर का रोजगार देने में सक्षम हो गए हैं.