सोजत, गुजरी और करोली बकरी को भी मिला रजिस्टर्ड नस्ल का टैग  

सोजत, गुजरी और करोली बकरी को भी मिला रजिस्टर्ड नस्ल का टैग  

पशु जनगणना 2019 के मुताबिक देश में 15 करोड़ बकरे और बकरियां हैं. 3.63 लाख बकरियां दूध देने वाली हैं. साल 2020-21 में 62 लाख लीटर दूध दिया था. वहीं इसी साल करीब 12 लाख मीट्रिक टन मीट का उत्पादन भी हुआ था. 

बकरियों का प्रतीकात्मक फोटो. बकरियों का प्रतीकात्मक फोटो.
नासि‍र हुसैन
  • Noida ,
  • Feb 18, 2023,
  • Updated Feb 18, 2023, 9:29 PM IST

बकरी पालन अब शहर में भी युवाओं का रोजगार बन चुका है. यही वजह है कि सरकार भी इसे उन्नत बनाने के लिए लगातार काम कर रही है. सरकार की इसी कोशिश के चलते बकरियों की तीन और नई नस्ल को रजिस्टर्ड होने का टैग दिया गया है. यह तीन नहीं नस्ल सोजत, गुजरी और करोली हैं. खास बात यह है कि तीनों ही नस्ल राजस्थान की हैं. अभी तक देशभर में 37 अलग-अलग नस्ल की बकरियां पाली जा रही हैं. पशु जनगणना 2019 के मुताबिक देश में हर साल डेढ़ से दो फीसद तक बकरियों की संख्या में इजाफा हो रहा है. देश के कुल दूध उत्पादन में बकरियों का योगदान करीब तीन फीसद है. लेकिन हमारे यहां बकरियों के मीट कारोबार पर खासा ध्यान दिया जाता है. 

पूर्व और उत्तर पूर्व में मुख्य तौर पर तीन नस्ल सबसे ज्यादा पाली जाती हैं. इसमे से ब्लैक बंगाल अपने नाम से बिकती है. इनकी संख्या करीब 3.75 करोड़ है. पश्चिम बंगाल की खास नस्ल है. दूध के साथ ही इसे मीट के लिए बहुत पंसद किया जाता है. हाल ही में कतर में हुए फीफा वर्ल्ड कप के दौरान इसके मीट को खूब पसंद किया गया था. इसके अलावा असम की आसाम हिल्स भी बहुत पसंद की जाती है. गंजम भी इन इलाकों की एक खास नस्ल है. इनकी संख्या करीब 2.10 लाख है.

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150 किलो वजन तक पहुंच जाता है गुजरी बकरा 

गुजरी नस्ल खासतौर पर राजस्थान के अलवर में पाई जाती है. इस नस्ल के बकरे का औसत वजन 69 और बकरी का 58 किलो तक होता है. लेकिन ज्यादातर महाराष्ट्र में इस नस्ल के बकरे को स्पेशल तरीके से खिला कर उसे वजनी बनाया जाता है. जानकारों की मानें तो बकरा 150 किलो के वजन को भी पार कर जाता है. इस नस्ल की बकरी रोजाना औसत 1.60 किलोग्राम तक दूध देती है. यह सफेद और भूरे रंग की होती है. इसके पेट, मुंह और पैर पर सफेद धब्बे होते हैं.

राजस्थान की शान है सोजत 

सोजत नस्ल की बकरी नागौर, पाली, जैसलमेर और जोधपुर में पाई जाती है. यह जमनापरी की तरह से सफेद रंग की बड़े आकार वाली नस्ल की बकरी है. इसे खासतौर पर मीट के लिए पाला जाता है. इस नस्ल का बकरा औसत 60 किलो वजन तक का होता है. बकरी दिनभर में एक लीटर तक दूध देती है. सोजत की नार्थ इंडिया समेत महाराष्ट्र में भी अच्छा खासा डिमांड रहता है. 

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मीट के लिए आ रही है करोली की डिमांड 

कोटा, बूंदी, बांरा और सवाई माधोपुर में करोली नस्ल की बकरियों खूब पाली जाती हैं. औसत 1.5 लीटर तक दूध रोजाना देती हैं. लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो राजस्थान और यूपी के लोकल बाजारों में इसके मीट की खासी मांग है. इसका पूरा शरीर काले रंग का होता है. सिर्फ चारों पैर के नीचे का हिस्सा भूरे रंग का होता है. इसकी एक खास बात यह भी है कि सिर्फ मैदान और जंगलों में चरने पर ही यह वजन के मामले में अच्छा रिजल्ट देती है. 

नार्थ इंडिया में पाई जाने वालीं बकरियों की खास नस्ल  

वैसे तो यूपी, राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश में बकरियों की दर्जनों नस्ल पाई जाती हैं. लेकिन जो खास नस्ल सबसे ज्यादा डिमांड में रहती हैं उसमें सिरोही की संख्या् (19.50 लाख), मारवाड़ी (50 लाख), जखराना (6.5 लाख), बीटल (12 लाख), बारबरी (47 लाख), तोतापरी, जमनापरी (25.50 लाख), मेहसाणा (4.25 लाख), सुरती, कच्छी, गोहिलवाणी (2.90 लाख) और झालावाणी (4 लाख) नस्ल के बकरे और बकरी हैं. यह सभी नस्ल, खासतौर पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात के सूखे इलाकों में पाई जाती हैं. यह वो इलाके हैं जहां इस नस्ल की बकरियों के हिसाब से झाड़ियां और घास इन्हें चरने के लिए मिल जाती हैं.

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