भारत के कई राज्यों में, विशेषकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में, डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) खाद की गंभीर कमी देखने को मिल रही है. यह समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि किसान रात-रात भर सोसाइटियों और दुकानों पर लंबी कतारों में खड़े होने को मजबूर हैं. फिर भी सभी को डीएपी की बोरी नहीं मिल पा रही है. कई स्थानों पर भीड़ इतनी बढ़ जाती है कि पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ रहा है. भारत में डीएपी खाद की कमी का मुख्य कारण इसकी आयात पर अत्यधिक निर्भरता है. यूरिया के बाद डीएपी दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला उर्वरक है. भारत अपनी लगभग 60 फीसदी डीएपी की जरूरत आयात से पूरी करता है, जिसमें से अधिकांश कच्चा माल जैसे रॉक फॉस्फेट और फॉस्फोरिक एसिड भी आयात किया जाता है.
हाल ही में, चीन द्वारा फॉस्फेट के निर्यात पर रोक लगाने और 26 जून से विशेष खाद के शिपमेंट को बंद करने से भारत में डीएपी का उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है. चीन का यह कदम खरीफ फसलों के लिए रोपाई और बुवाई के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है. खरीफ के सीजन की मुख्य फसल धान की रोपाई का सीजन चल रहा है, और किसानों को इस समय डीएपी की सबसे अधिक जरूरत होती है. पर्याप्त आपूर्ति न होने के कारण धान और मक्के की बुवाई में देरी का खतरा बढ़ गया है, जिससे रबी फसलों के उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है. सालाना लगभग 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है, जिसमें से घरेलू उत्पादन केवल 45 से 48 लाख टन ही हो पाता है.
इस विकट स्थिति में कृषि विशेषज्ञ किसानों को डीएपी के वैकल्पिक फास्फोरस उर्वरकों का उपयोग करने की सलाह दे रहे हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के फसल विज्ञान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजीव कुमार सिंह ने सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) खाद के इस्तेमाल पर जोर दिया है. डॉ. सिंह के अनुसार, एसएसपी का उपयोग न केवल लागत कम करेगा बल्कि फसल का उत्पादन और गुणवत्ता भी बेहतर करेगा. एसएसपी में 16% फॉस्फोरस, 11% सल्फर और कैल्शियम मौजूद होता है. सल्फर की उपस्थिति इसे तिलहन और दलहन फसलों के लिए विशेष रूप से लाभकारी बनाती है, जिससे पौधों की वृद्धि और जड़ों का विकास बेहतर होता है.
डॉ. सिंह ने बताया कि डीएपी के विकल्प के रूप में अगर दो-तीन बैग एसएसपी और एक बैग यूरिया का उपयोग किया जाए, तो पौधों को लगभग 16 किलोग्राम कैल्शियम, 24 किलोग्राम फॉस्फोरस, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 16 किलोग्राम सल्फर मिल सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, यूरिया के साथ ट्रिपल सुपरफॉस्फेट (टीएसपी) का इस्तेमाल करने से भी लगभग वही परिणाम मिलते हैं. टीएसपी में 46 फीसदी फॉस्फोरस होता है, और इसे 20 किलो यूरिया के साथ उपयोग करने पर डीएपी जितना ही फॉस्फोरस और नाइट्रोजन प्रदान करता है.
विशेषज्ञों का यह भी सुझाव है कि किसानों को खाद की लागत कम करने और भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए नैनो यूरिया और नैनो डीएपी जैसे लिक्विड उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त, जैव-उर्वरकों और फास्फोरस सोलुबलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB) के इस्तेमाल से भी फसलों को आवश्यक पोषक तत्व मिल सकते हैं. मिट्टी के नमूनों के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार खादों का उपयोग करना किसानों के लिए अधिक लाभकारी होगा, क्योंकि यह मिट्टी की वास्तविक पोषक तत्व जरूरत को दर्शाता है.
भारतीय किसानों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि इंडियन फर्टिलाइजर कंपनी (IPL), कृभको (KRIBHCO) और सीआईएल (CIL) ने सऊदी अरब की मादेन (Maaden) कंपनी के साथ एक अहम समझौता किया है. इस समझौते के तहत, मादेन कंपनी अगले पांच वर्षों तक हर साल 3.1 मिलियन टन डीएपी खाद भारत को देगी. यह समझौता वर्तमान वित्तीय वर्ष से प्रभावी हो गया है और आपसी सहमति से इसे पांच साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है. यह समझौता रसायन और उर्वरक मंत्री जेपी नड्डा की सऊदी अरब यात्रा के दौरान उनकी उपस्थिति में हस्ताक्षरित हुआ. यह समझौता भारत में डीएपी की आपूर्ति को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाएगा, जिससे खरीफ फसल के मौजूदा सीजन में किसानों को खाद की उपलब्धता में आसानी होगी.