खरीफ की फसलें, जो मुख्य रूप से बारिश के मौसम में उगाई जाती हैं, उनके साथ सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक खरपतवार है क्य़ोंकि खरपतवार फसलों के साथ पोषक तत्वों, पानी और प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसल की पैदावार में भारी कमी आ सकती है. इसलिए जरूरी है कि इन खरपतवारों का समय रहते रोकथाम कर दिया जाए. खरपतवार चुपके से फसलों का भोजन चुरा लेते हैं. ये पौधों के विकास के लिए जरूरी प्रकाश, जल और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं. खरीफ की फसलों में, खासकर बारिश के मौसम में, खरपतवारों की समस्या और भी बढ़ जाती है क्योंकि अनुकूल वातावरण में वे तेजी से बढ़ते हैं. एक खरपतवार का पौधा हजारों बीज पैदा कर सकता है, जिससे समस्या अगले मौसम तक बनी रहती है. धान, मक्का और सोयाबीन जैसी प्रमुख खरीफ फसलों में खरपतवारों का समय पर नियंत्रण पैदावार बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है. खरपतवार पोषक तत्वों, पानी और धूप के लिए फसल से प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे उपज में 30-70 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है,
विशेषज्ञों के अनुसार धान, अरहर, मूंगफली या सोयाबीन जैसी फसलों के लिए शुरुआती 60 दिन खरपतवार नियंत्रण के लिए और मूंग और उड़द जैसी दलहनी फसलों के लिए बुवाई के 30 से 35 दिन क्रांतिक अवस्था होते हैं. अगर इस समय खरपतवारों को नियंत्रित कर लिया जाए, तो फसल को काफी फायदा मिलता है और पैदावार अच्छी होती है. खरपतवारों को नियंत्रित करने के कई तरीके हैं, जिनमें यांत्रिक विधियां और रासायनिक विधियां शामिल हैं. यांत्रिक विधि में निराई-गुड़ाई करना या वीडर (weeders) का उपयोग करना शामिल है. यह विधि पानी की बचत करती है और जड़ों के विकास में सहायक होती है, जिससे फसल की वृद्धि बेहतर होती है. खेत में 20 से 25 दिन में निराई-गुड़ाई करने से भूमि में वातन (aeration) बढ़ता है और पानी सोखने की क्षमता भी बढ़ जाती है.
आधुनिक खेती में, किसान अब रसायनों पर भी बहुत अधिक निर्भर हो चुके हैं. विभिन्न खरीफ फसलों के लिए अलग-अलग रसायनों का उपयोग किया जाता है. धान की फसल में खरपतवारों की समस्या बहुत अधिक होती है, खासकर सीधी बुवाई वाले धान में. बुवाई के 1-2 दिन के भीतर या रोपाई के समय ब्यूटॉक्लोर (Butachlor) की लगभग 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर या प्रोटीलाक्लोर (Pretilachlor) की लगभग 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर मात्रा का उपयोग करें. यह शुरुआती दौर में खरपतवारों को पनपने नहीं देगा. 20-25 दिन के भीतर (खड़ी फसल में) हेलोसल्फ्यूरॉन (Halosulfuron) की लगभग 100 ग्राम मात्रा या बिसपायरीबैक सोडियम (Bispyribac Sodium) की 20 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें. इसके अलावा, 2,4-D रसायन की 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा का भी उपयोग किया जा सकता है.
मक्का और बाजरा की फसलें उन क्षेत्रों में उगाई जाती हैं जहां पानी की उपलब्धता थोड़ी कम होती है. बुवाई की शुरुआत में पेंडिमेथालिन (Pendimethalin) नामक खरपतवारनाशक रसायन का लगभग 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें. यह शुरुआती दौर में खरपतवारों को नियंत्रित करता है. मक्का की खड़ी फसल में अगप बाद में खरपतवार आते हैं, तो टेम्बोट्रिओन (Tembotrione) की लगभग 90-100 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर का उपयोग किया जा सकता है. बाजरा के लिए बुवाई की शुरुआत में पेंडिमेथालिन का उपयोग करें और 20-25 दिन के बाद एट्राज़ीन (Atrazine) नामक रसायन को 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालें.
तिलहनी फसलें जैसे मूंगफली, सोयाबीन की बुवाई की शुरुआत में पेंडिमेथालिन का उपयोग करें. खड़ी फसल में अगर खरपतवार अधिक हों तो मेट्रिब्यूज़िन (Metribuzin) नामक खरपतवारनाशक की 400 ग्राम मात्रा को 700-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें, ताकि शुरुआत में ही खरपतवारों की रोकथाम हो सके. मूंग, उड़द, अरहर में खरपतवार की रोकथाम के लिए बुवाई के 1-2 दिन के बाद पेंडिमेथालिन की 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा का छिड़काव करें. फसल के 20-25 दिन होने पर इमाज़ेथापायर (Imazethapyr) नामक रसायन की 80 ग्राम मात्रा का उपयोग करने से खरपतवारों के क्रांतिक चरण से बचा जा सकता है. खरपतवार नियंत्रण का मूल मंत्र यह है कि किसी भी हालत में खरपतवारों को खेतों में पनपने न दें.