उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लिखे एक पत्र में उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया है. उपराष्ट्रपति के तौर पर धनखड़ का शानदार कार्यकाल रहा है. वो अन्नदाताओं की आवाज बन गए थे. कई मंचों पर उन्होंने कृषि क्षेत्र और किसानों की समस्याओं को दमदारी से उठाया, उनकी दुर्दशा का जिक्र किया और सरकार से उनके समाधान का आग्रह किया. एक बार तो उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने ही किसानों की दुर्दशा के मुद्दे पर उन्हें खरी खोटी सुनाई. हालांकि, बाद में सदन में उन्होंने चौहान की तारीफ करते कहा कि जिस आदमी की पहचान देश में लाडली के नाम से थी, वो अब किसानों का लाडला होगा. मैं आशावान हूं कि ऊर्जावान मंत्री अपने नाम 'शिवराज' के अनुरूप किसानों के लिए कार्य करके दिखाएंगे.
धनखड़ ने किसान आंदोलन को लेकर मुखरता से अपने विचार रखे. हाल में ही उन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि यानी पीएम किसान योजना की रकम को 30,000 रुपये सालाना करने की वकालत की थी जो अभी सिर्फ 6000 रुपये है. किसानों के मुद्दे उठाते वक्त धनखड़ ने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि वो उपराष्ट्रपति हैं. इसलिए किसान उन्हें उम्मीद भरी नजर से देख रहे थे.
जगदीप धनखड़ ने अपने त्यागपत्र में लिखा, ‘संसद के सभी माननीय सदस्यों से मुझे जो प्यार, विश्वास और सम्मान मिला, उसे मैं जीवन भर अपने दिल में रखूँगा.’ उपराष्ट्रपति के रूप में अपने कार्यकाल को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में मुझे जो अनुभव और दृष्टिकोण मिले, उसके लिए मैं हृदय से आभारी हूँ. भारत के आर्थिक विकास और अभूतपूर्व परिवर्तनकारी दौर का साक्षी बनना मेरे लिए सौभाग्य और संतोष की बात रही है.’ उन्होंने भारत के वैश्विक उत्थान और उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास व्यक्त करते हुए अपना त्यागपत्र समाप्त किया.
जगदीप धनखड़ ने 2022 में भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. उन्होंने 6 अगस्त, 2022 को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को हराया. जगदीप धनखड़ को कुल 725 में से 528 वोट मिले, जबकि मार्गरेट अल्वा को 182 वोट मिले. उपराष्ट्रपति बनने से पहले वे पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे. जगदीप धनखड़ का जन्म 18 मई, 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के एक साधारण किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से पूरी की. इसके बाद स्कॉलरशिप मिलने पर वे चित्तौड़गढ़ सैनिक स्कूल में पढ़ने चले गए. धनखड़ का चयन राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में हुआ था, लेकिन वे नहीं गए.
उन्होंने महाराजा कॉलेज, जयपुर से बीएससी (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई पूरी की. फिर जयपुर में रहकर वकालत शुरू की और राजस्थान उच्च न्यायालय के जाने-माने वकील रहे. धनखड़ वर्ष 1979 में राजस्थान बार काउंसिल के सदस्य बने. 27 मार्च, 1990 को वे राजस्थान उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता बने. साथ ही, उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में भी वकालत की. वे 1987 में राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी चुने गए.
जगदीप धनखड़ चौधरी देवीलाल की राजनीति से प्रभावित थे. देवीलाल ही उन्हें राजनीति में लाए थे. वर्ष 1989 में देवीलाल का 75वाँ जन्मदिन था. जगदीप धनखड़ उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने के लिए राजस्थान से 75 वाहनों के काफिले के साथ दिल्ली पहुँचे थे. इसी वर्ष के अंत में लोकसभा चुनाव हुए थे. राजीव गांधी के करीबी माने जाने वाले वीपी सिंह ने उनके खिलाफ विरोध का नारा बुलंद किया था. वीपी सिंह की जनता दल ने जगदीप धनखड़ को उनके गृहनगर झुंझुनू से टिकट दिया. वीपी सिंह की सरकार बनी. देवीलाल उप-प्रधानमंत्री बने और जगदीप धनखड़ को केंद्र में मंत्री पद मिला.