
अखिल भारतीय समन्वित मसाला अनुसंधान ने छह नए उन्नत किस्मों वाले मसाले की पहचान की है. दरअसल, आईसीएआर-मसाला अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपीएस) की 36वीं वार्षिक समूह बैठक के दौरान इन 6 उन्नत किस्मों के बारे में बताया. इस बैठक में देश भर के मसाला विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया. बता दें कि ये बैठक आईसीएआर-एनईएच अनुसंधान परिसर, उमियम, मेघालय में आयोजित की गई थी.
जिन छह नई बंपर उपज देने वाली मसाला किस्मों को जारी करने की सिफारिश की गई है, उनमें अजवाइन की तीन किस्में (एचएजे-7, जेए-19-1 और अजमेर अजवाइन-24), सौंफ की एक किस्म (आरएफ 231) और अदरक की दो किस्में (वी1ई45 और आईआईएसआर नव्या) शामिल हैं. इन किस्मों से उत्पादकता बढ़ने की उम्मीद है, जिससे किसानों को इन फसलों की खेती से अपनी कृषि आय बढ़ाने में मदद मिलेगी.
इन किस्मों के अलावा, कार्यशाला में किसानों द्वारा अपनाए जाने के लिए फसल प्रबंधन और पौध संरक्षण में सात नई तकनीकों की भी सिफारिश की गई. इनमें काली मिर्च में पराग भृंग के आक्रमण के लिए रासायनिक नियंत्रण रणनीति, मेथी और धनिया में उपज बढ़ाने के लिए वृद्धि, मेथी में चूर्णिल फफूंद नियंत्रण के लिए जैव नियंत्रण विधि, जीरे में झुलसा रोग का पर्यावरण-अनुकूल प्रबंधन, अधिक आर्थिक लाभ के लिए अदरक के साथ अलग-अलग खेत और कंद फसलों की अंतर-फसल और अदरक की खेती में अधिक उपज के लिए फास्फोरस और जस्ता के घुलनशीलता के लिए लाभकारी सूक्ष्मजीव बैसिलस सबटिलिस का प्रयोग शामिल हैं. इन तकनीकों का उद्देश्य फसल उत्पादकता को बढ़ावा देना और प्रचलित कृषि चुनौतियों का समाधान करना है. वार्षिक समूह बैठक ने मसाला अनुसंधान समुदाय की इस क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और की पुष्टि की.
असम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति बी. सी. डेका ने देश में मसाला अर्थव्यवस्था स्थापित करने के लिए अनुसंधान संस्थानों द्वारा किसान समूहों और अन्य उद्यमियों के व्यावसायिक उपक्रमों को सक्रिय रूप से समर्थन देने की आवश्यकता पर जोर दिया. इससे मसाला वस्तुओं के प्राथमिक उत्पादकों के लिए अनुसंधान प्रगति को दृश्यमान और महत्वपूर्ण मौद्रिक लाभ में बदलने की प्रक्रिया में तेजी आएगी. आईसीएआर-पूर्वोत्तर पर्वतीय क्षेत्र अनुसंधान के निदेशक समरेंद्र हजारिका ने मसाला फसलों, विशेष रूप से देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में, भौगोलिक संकेतकों की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला.