
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने दो जीनोम-एडिटेड धान किस्मों के परीक्षण में वैज्ञानिक धोखाधड़ी के आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया है. परिषद ने इन आरोपों को “निराधार” बताते हुए कहा कि यह एक “विकास विरोधी मुहिम” है जो भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. आईसीएआर का यह बयान उस समय आया जब ‘कोएलिशन फॉर ए जीएम-फ्री इंडिया’ नामक संगठन ने परिषद और कृषि मंत्रालय पर गंभीर आरोप लगाए. संगठन ने कहा कि आईसीएआर ने ‘पुसा डीएसटी-1’ और ‘डीआरआर धन 100 (कमला)’ किस्मों के फील्ड ट्रायल में डेटा में हेराफेरी की है. इन दोनों किस्मों की घोषणा केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 4 मई 2025 को की थी.
कोएलिशन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आईसीएआर के ‘ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस (AICRPR)’ की 2023 और 2024 की वार्षिक प्रगति रिपोर्टों का हवाला दिया. संगठन का दावा है कि आधिकारिक निष्कर्षों और वास्तविक फील्ड डेटा में बड़ा अंतर है.
आरोपों के अनुसार, ‘पुसा डीएसटी-1’ किस्म, जिसे लवणता सहनशीलता यानी सॉल्ट टॉलरेंस के लिए प्रचारित किया गया था, 2024 के ट्रायल में किसी भी तटीय या अंदरूनी इलाके में बेहतर उपज नहीं दे सकी. 2023 में भी यह किस्म 20 में से 12 स्थानों पर कमजोर साबित हुई. कोएलिशन का कहना है कि “30 फीसदी अधिक उपज” का दावा केवल आठ चुनिंदा स्थानों के आंकड़ों पर आधारित था.
इसी तरह ‘डीआरआर धन 100 (कमला)’ के बारे में कहा गया कि यह 17 प्रतिशत अधिक उपज देने और सामान्य धान से 20 दिन पहले पकने का दावा करती है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक यह किस्म 2023 के 19 परीक्षण स्थलों में से 8 पर पिछड़ी और फूल आने में केवल 3 दिन का फर्क दिखा, न कि 20 दिन का जैसा दावा किया गया था.
कोएलिशन की सदस्य और कार्यकर्ता कविता कुरुगांति ने कहा कि “कृषि में खराब विज्ञान का प्रयोग करना, वह भी सार्वजनिक क्षेत्र में, करोड़ों किसानों की आजीविका पर सीधा असर डालता है.” वहीं, स्वतंत्र शोधकर्ता सौमिक बनर्जी ने जोड़ा, “अगर तकनीक वास्तव में सुरक्षित और सटीक है, तो सभी डेटा को सार्वजनिक करने और उचित परीक्षण करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए, जैसा कि जीएम फसलों के मामले में किया जाता है.”
आईसीएआर ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि दोनों जीनोम-एडिटेड किस्मों का परीक्षण देशभर के 24 से अधिक स्थलों पर किया गया था. परिषद ने बताया कि सभी प्रक्रियाएं और मानक संचालन प्रोटोकॉल ‘सीड एक्ट, 1966’ के तहत निर्धारित केंद्रीय उप-समिति के दिशा-निर्देशों के अनुसार पूरी तरह से पालन किए गए हैं.
आईसीएआर ने कहा कि परीक्षण के दौरान किस्मों को ब्लाइंड कोडिंग के तहत जांचा गया ताकि निष्पक्षता बनी रहे. हर साल 500 से अधिक धान की ब्रीडिंग लाइनों के साथ तुलना की जाती है. परिषद ने बताया कि सभी फील्ड डेटा वेबसाइट http://www.aicrip-intranet.in/ पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं.
परिषद ने कहा कि “24 स्वतंत्र परीक्षण केंद्रों से प्राप्त पारदर्शी और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित नतीजों को नजरअंदाज कर, यह संगठन कृषि में तकनीकी प्रगति को रोकने का प्रयास कर रहा है.” आईसीएआर ने इसे “भारत की जीन-संपादन तकनीक में अग्रणी भूमिका का ऐतिहासिक क्षण” बताया.
बयान में कहा गया, “ऐसे समय में निराधार आलोचना न केवल वैज्ञानिकों का मनोबल गिराती है, बल्कि भविष्य के अनुसंधान को भी बाधित कर सकती है.” परिषद ने जोड़ा कि इन जीनोम-एडिटेड एलिल्स का इस्तेमाल भविष्य की कई धान किस्मों के प्रजनन कार्यक्रमों में किया जाएगा, जिससे किसानों की समृद्धि और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी.
दूसरी ओर, कोएलिशन ने मांग की है कि इन किस्मों से जुड़े सभी प्रचारात्मक दावे तुरंत वापस लिए जाएं और एक स्वतंत्र वैज्ञानिक समीक्षा कराई जाए. साथ ही, जब तक विश्वसनीय जैवसुरक्षा नियम नहीं बन जाते, तब तक जीनोम-एडिटेड फसलों की रिलीज पर रोक लगाई जाए. (पीटीआई)