महाराष्ट्र में गुड़ उद्योग के लिए आने वाला है कानून, उत्पादकों की क्यों नहीं बन रही एक राय?

महाराष्ट्र में गुड़ उद्योग के लिए आने वाला है कानून, उत्पादकों की क्यों नहीं बन रही एक राय?

महाराष्ट्र सरकार का लक्ष्य बड़े पैमाने पर असंगठित गुड़ क्षेत्र को औपचारिक विनियमन के दायरे में लाना है. कानून का मसौदा तैयार करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई है, जिसके जल्द ही तैयार होने की उम्मीद है.

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महाराष्ट्र में गुड़ उद्योग के लिए आने वाला है कानून, उत्पादकों की क्यों नहीं बन रही एक राय?"औषधीय चीनी" के रूप में जाना है गुड़.

महाराष्ट्र सरकार ने गुड़ उद्योग को विनियमित करने के लिए एक नए कानून का मसौदा तैयार किया है, लेकिन इस पर उत्पादकों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं. जहां कुछ लोगों ने इस कदम का स्वागत गुड़ पाउडर के रूप में कच्ची चीनी की बिक्री पर अंकुश लगाने और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए एक बेहद ज़रूरी कदम के रूप में किया है, वहीं कुछ लोगों को डर है कि नया कानून पहले से ही संघर्षरत कुटीर उद्योग को और भी ज़्यादा नुकसान पहुंचा सकता है.

औपचारिक विनियमन के दायरे में आएगा गुड़ क्षेत्र

राज्य सरकार का लक्ष्य बड़े पैमाने पर असंगठित गुड़ क्षेत्र को औपचारिक विनियमन के दायरे में लाना है. कानून का मसौदा तैयार करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गई है, जिसके जल्द ही तैयार होने की उम्मीद है. अंतिम रूप दिए जाने के बाद, मसौदे पर कैबिनेट उपसमिति द्वारा चर्चा की जाएगी और फिर इसे अनुमोदन और अधिनियमन के लिए राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा.

आखिर क्यों पड़ी कानून की जरूरत?

राज्य के चीनी क्षेत्र में फैले गुड़ उद्योग का पारंपरिक रूप से अनौपचारिक ढांचा रहा है, जहां बड़े पैमाने पर नकद लेन-देन अक्सर आधिकारिक रिकॉर्ड के बाहर होता है. इस ढांचे की कमी के कारण गन्ना किसानों और गुड़ निर्माताओं के बीच अक्सर वित्तीय विवाद होते रहते हैं, जिससे दोनों पक्षों को कानूनी सुरक्षा बहुत कम मिलती है. नए कानून के ज़रिए, सरकार सहकारी चीनी मिलों के मॉडल की तरह, इस क्षेत्र में पारदर्शिता, अनुशासन और जवाबदेही लाना चाहती है. प्रस्तावित कानून में गुड़ इकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य करने और गन्ना खरीद, मूल्य निर्धारण, उत्पादन मानकों और विपणन के लिए मानदंड स्थापित करने की उम्मीद है. इसमें दोनों पक्षों के हितों की रक्षा के लिए किसानों और गुड़ इकाइयों के बीच औपचारिक अनुबंध की भी आवश्यकता हो सकती है.

उत्पादकों को किस बात की है चिंता?

कई उत्पादकों के लिए, यह कदम लंबे समय से अपेक्षित था. अंग्रेजी अखबार 'बिजनेस लाइन' की एक रिपोर्ट में सांगली स्थित कोलसे नेचुरल स्वीटनर इंडस्ट्रीज के मालिक रोहन कोलसे ने बताया कि सरकार का यह एक स्वागत योग्य कदम है. गुड़ उत्पादकों के रूप में हमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कुछ ऐसे भी हैं जो कच्ची चीनी को गुड़ पाउडर के रूप में बेचते हैं, और गुड़ की वास्तविक परिभाषा अभी तक तय नहीं है. नया कानून इसे स्पष्ट रूप से परिभाषित करने में मदद कर सकता है. कोलसे ने आगे कहा कि स्पष्टता की कमी निर्यात को भी प्रभावित करती है. कई निर्यातक गुड़ के नाम पर कच्ची चीनी सस्ते दामों पर बेचते हैं, जिससे असली उत्पादकों और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय गुड़ की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है.

हालांकि, हर उत्पादक आशावादी नहीं है. कोल्हापुर के एक उत्पादक और जोतिर्लिंग गुड़ के मालिक राम पाटिल का मानना ​​है कि यह कानून इस क्षेत्र के लिए बहुत कम मददगार होगा. उन्होंने कहा कि यह एक छोटा कुटीर उद्योग है जो बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण पहले से ही सिकुड़ रहा है. चीनी मिलें हर साल ज़्यादा उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) देती हैं, इसलिए किसान अपनी उपज हमारी बजाय मिलों को बेचना पसंद करते हैं. सरकार को हमारा समर्थन और प्रोत्साहन करना चाहिए, न कि ऐसे प्रतिबंधात्मक नियम लाने चाहिए जो हमें और भी नीचे धकेल दें. पाटिल ने जोर देकर कहा कि गुड़ उद्योग रोजगार पैदा करके और आजीविका को बनाए रखकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उन्होंने आगे कहा कि हमें कठोर क़ानूनी ढांचे में बांधने के बजाय, सरकार को ग्रामीण उद्यमों को मज़बूत करने के लिए प्रोत्साहन और बुनियादी ढांचा तैयार करना चाहिए.

भारत में पूरी दुनिया का 70 प्रतिशत से ज़्यादा उत्पादन

गुड़—एक अनरिफाइंड प्राकृतिक स्वीटनर है जो बिना किसी रसायन के बनाया जाता है. ये भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आहार संस्कृति में गहराई से समाया हुआ है. दुनिया भर में गुड़ के 70 प्रतिशत से ज़्यादा उत्पादन भारत में होता है, जिसे दुनिया के अग्रणी उत्पादकों और निर्यातकों में से एक माना जाता है. "औषधीय चीनी" के रूप में जाना जाने वाला गुड़ पोषक तत्वों से भरपूर होता है और इसके स्वास्थ्य लाभों के लिए अक्सर इसकी तुलना शहद से की जाती है. उत्तर प्रदेश के साथ महाराष्ट्र देश के शीर्ष गुड़ उत्पादक राज्यों में शुमार है. फिर भी, अपने महत्व के बावजूद, गुड़ क्षेत्र अभी भी काफी हद तक असंगठित है, जहां छोटी-छोटी ग्रामीण प्रसंस्करण इकाइयां संचालित होती हैं और तकनीक या औपचारिक वित्त तक उनकी पहुंच सीमित है.

IMARC समूह के अनुसार, भारत का पैकेज्ड गुड़ बाज़ार 2024 में ₹71.3 अरब तक पहुंच गया और 2033 तक ₹202.6 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसकी 2025-2033 के दौरान 11.69 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि उचित नियमन के साथ, महाराष्ट्र इस बढ़ते बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर सकता है. इसलिए, नया कानून एक अवसर और चुनौती दोनों प्रस्तुत करता है. यानी गुड़ व्यापार को आधुनिक और औपचारिक बनाने का अवसर, और साथी ही यह सुनिश्चित करने की चुनौती कि छोटे उत्पादक - ग्रामीण गुड़ अर्थव्यवस्था का हृदय - पीछे न छूट जाएं.

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