ड्रोन दीदी योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं अपने सपनों को एक उड़ान दे रही हैं. साथ ही समाज में अपनी अलग पहचान बना रही हैं. बिहार की एक ऐसी ही महिला काजल कुमारी हैं, जो 28 वर्ष की उम्र में टीचर, किसान और अब ड्रोन दीदी के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं. ड्रोन दीदी योजना के जरिये कृषि ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण लेने के बाद अपनी सफलता की कहानी लिख रही हैं. काजल कुमारी कहती हैं कि 'कृषि ड्रोन उड़ाने के बाद पायलट वाली फीलिंग आती है. दसवीं तक शिक्षा हासिल करने के बाद आगे पढ़ने का मौका नहीं मिला. लेकिन इसी पढ़ाई से आज ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग लेकर ड्रोन दीदी कहला रही हूं. जो मेरे लिए काफी गर्व की बात है. वहीं आज के युग में कृषि ड्रोन खेती के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की ओर अग्रसर है'.
28 वर्षीय काजल कुमारी मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर प्रखंड के महिमा गोपीनाथपुर गांव की रहवासी हैं. ये पिछले पांच साल से जीविका से जुड़कर कृषि के क्षेत्र में काम कर रही हैं. वहीं जीविका की मदद से ही उन्होंने केंद्र सरकार की ड्रोन दीदी योजना के जरिये डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण हासिल किया. काजल कुमारी ड्रोन उड़ाने के साथ ही रंग बिरंगी सब्जियों की खेती आधुनिक तकनीक से कर रही हैं.
किसान तक से बातचीत के दौरान काजल कुमारी कहती हैं कि एक अप्रैल को ड्रोन पायलट का ट्रेनिंग पूरा हुआ और सरकार ने मुफ्त में कृषि ड्रोन दिया. वहीं बीते दो महीनों के दौरान करीब बीस एकड़ से अधिक एरिया में दवा का छिड़काव कर चुकी हैं. अभी लोगों ड्रोन को लेकर ज्यादा जागरूकता नहीं है, जिसके चलते किसान कम रुचि दिखा रहे हैं. लेकिन अभी तक जिन किसानों के खेत में दवा का छिड़काव कराया है, वे अन्य किसानों को भी ड्रोन का उपयोग करने का सुझाव दे रहे हैं.
काजल कुमारी अपने दो महीने के अनुभव के आधार पर बताती हैं कि जहां एक एकड़ खेत में दवा का छिड़काव करने के दौरान करीब 150 से 200 लीटर तक पानी का उपयोग होता है. वहीं क़रीब दो से तीन मजदूर की जरूरत पड़ती है. हर मजदूर को कम से कम 300 सौ रुपये देना पड़ता है. साथ ही दवाई भी जरूरत से ज्यादा लग जाती है. यानी हिसाब जोड़ा जाए तो करीब बारह सौ के आसपास एक एकड़ में दवा छिड़काव का खर्च लग जाता है, जिसमें से पानी का हिसाब नहीं है. वहीं कृषि ड्रोन से एक एकड़ में तीन सौ से पांच सौ रुपये लगता है. पानी करीब दस लीटर लगता है. इसके साथ ही कुछ ही मिनटों में दवा का छिड़काव हो जाता है.
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काजल कुमारी पिछले एक साल से नेट और पॉली हाउस की मदद से सब्जियों की खेती कर रही हैं जिसमें ये रेड भिंडी, कलर गोभी, शिमला मिर्च की फसल शामिल है. इससे महीने की तीस से चालीस हजार रुपये की कमाई हो जाती है. वहीं कृषि उद्यम के तहत खाद और बीज की दुकान भी पिछले तीन महीने से चला रही हैं. इसके अलावा अपने पति के स्कूल में पढ़ाने का भी काम करती हैं.
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर के कुलपति डॉ पी एस पांडेय कहते हैं कि विश्वविद्यालय डिजिटल एग्रीकल्चर के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है. इसी क्रम में ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग दी जा रही है. अभी तक एक सौ दस से अधिक लोगों को पायलट ट्रेनिंग दी जा चुकी है, जिसमें लगभग आधी महिलाएं हैं. प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किए गए फाइव जी लैब, एआर वीआर के अतिरिक्त ड्रोन मेंटेनेंस का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. कृषि में रोबोटिक्स को लेकर भी विश्वविद्यालय गंभीरता से प्रयास कर रहा है जिसके परिणाम जल्द देखने को मिलेंगे.