साल दर साल बदलता मौसम, हम इंसानों की तरह फसलों के लिए भी बीमारियों के खतरे को बढ़ा रहा है. इंसान अपने मरीजों को ताे अस्पताल पहुंचा सकता है, लेकिन किसान अपनी बीमार फसल को कैसे अस्पताल पहुंचाए, इस सच को समझते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अब अस्पताल को ही किसान के द्वार तक पहुंचाने की पहल की है. जी हां, हम बात कर रहे हैं, मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक की. यह क्लीनिक फसलों के रोग को समय से पहचान कर तत्काल रोग का इलाज मुहैया कराती है. देश में पहली बार 'मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक' सेवा का पायलट प्रोजेक्ट, खेती किसानी के लिए बदहाल छवि वाले यूपी के बुंदेलखंड इलाके में झांसी जिले से किया गया. कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा शुरू की गई इस सेवा के प्रारंभिक परिणाम मिलने लगे हैं.
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके को खेती की बदहाल स्थिति के लिए जाना जाता था. पिछले कुछ सालों में इस इलाके की छवि को बदलने के लिए सरकार ने तकनीक को सहारा बनाया है. इसका नतीजा अब ड्रोन तकनीक से खेतों में फसल पर दवाओं का छिड़काव करने और 'मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक' से फसलों की बीमारियों का इलाज करने के रूप में दिखने लगा है. खेती किसानी की ये दोनों अत्याधुनिक सेवाएं एक व्हाट्सएप ग्रुप 'किसान वाणी' के जरिए झांसी जिले के किसानों को मुहैया कराई जा रही हैं. इस सेवा के पहले महीने में जिले के 11 गांवों के 550 से अधिक किसान जुड़ गए हैं.
बुंदेलखंड में झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों को तकनीकी सहयोग मुहैया कराने के लिए 'किसान वाणी' नामक व्हाट्सएप ग्रुप शुरू किया है. इसके जरिए किसानों को जोड़कर उन्हें अब तक की सबसे आधुनिक कृषि सेवाएं मुहैया कराई जाने लगी हैं.
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डाॅ प्रशांत जांभुलकर इस परियसेजना का संचालन कर रहे हैं. डाॅ जांभुलकर ने इसके बारे में 'किसान तक' को बताया कि 'किसान वाणी' के जरिए किसान अपनी फसलों के रोग की सूचना देते हैं. इसके बाद मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक उस गांव में पहुंच कर फसल के रोग की पहचान करने के लिए मिट्टी का लैब टेस्ट करती है. मिट्टी की जांच करके बीमारी का तत्काल इलाज शुरू कर शुरू हो जाता है. इस क्लीनिक में एक साथ 10 तरह के फसल रोगों की जांच करके पहचान की जा सकती है. फसल की बीमारी की जांच रिपोर्ट और इलाज का विवरण भी किसान को दिया जाता है.
डाॅ जांभुलकर ने कहा कि 'मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक' के माध्यम से बुंदेलखंड में फसल रोगों की पहचान एवं इलाज के दौरान की जा रही जांचों की रिपोर्ट के आधार पर अध्ययन भी किया जा रहा है. जिससे उस इलाके की फसलों में पनपने वाले संभावित रोगों को संक्रामक होने से पहले ही दबा दिया जाए. उन्होंने बताया कि इस सेवा का मकसद किसानों को सीधे तौर पर वैज्ञानिकाें से जोड़ना है. उन्होंने बताया कि इस सेवा का लाभ किसानों तक पहुंचाने के लिए व्हाट्सएप ग्रुप 'किसान वाणी' कारगर माध्यम बन रहा है.
डाॅ जांभुलकर ने बताया कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ने के लिए ग्रामीण इलाकों में मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक को कैंप के लिए भेजा जा रहा है. जिस गांव से किसी किसान की कॉल आती है, उस गांव में पूरा दिन यह क्लीनिक मौजूद रहती है. जिससे अन्य किसान भी इससे जुड़ सकें और अपने खेत की मिट्टी एवं फसलों की सेहत की जांच करा सकें.
उन्होंने कहा कि इस सेवा के लिए किसान से कोई फीस नहीं ली जाती है. एक बार इस सेवा से जुड़ने के बाद किसान को मिट्टी एवं फसलों के संभावित रोग, उनके निदान और अन्य जरूरी जानकारियों के नियमित अपडेट भी भेजे जाते हैं.
डाॅ जांभुलकर ने बताया कि मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक में खेत की मिट्टी के नमूने की जांच कर खेत की सेहत से जुड़े 14 मानकों का परीक्षण किया जाता है. खेत में उन पोषक तत्वों का जायजा भी लिया जाता है, जिनकी कमी के कारण फसल में रोगों का हमला ज्यादा तेजी से होता है. इस प्रकार खेत के पोषण से जुड़े सभी तत्वों की जांच महज 2 घंटे में पूरी करके इसकी रिपोर्ट किसान को दी जाती है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जांच से मिले डाटा का अध्ययन एवं विश्लेषण करते हैं.
डा जांभुलकर ने बताया कि जो फसल ज्यादा गंभीर बीमारी से ग्रसित है, या जिस फसल के लक्षण मोबाइल क्लीनिक के सूक्ष्म उपकरणों की पकड़ में नहीं आते हैं, उनकी जांच, विश्वविद्यालय में बनाई गई अत्याधुनिक प्लांट लैब में की जाती है. यह लैब मिट्टी एवं फसलों की गंभीर बीमारियों के इलाज में आईसीयू की तरह अपनी सेवाएं देती है. इसके अलावा पूरी तरह से वातानुकूलित मोबाइल क्लीनिक में इंंक्यूबेटर भी मौजूद है, जिसकी मदद से बेहद सूक्ष्म कीटाणुओं की पहचान की जाती है.
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