मौसम में उतार चढ़ाव लगातार जारी है. कहीं बर्फबारी तो कहीं बारिश की वजह से लोगों के साथ-साथ किसानों को सबसे अधिक समस्या हो रही है. बीते दिनों कई राज्यों में बारिश हुई है. ऐसे में बारिश का असर सबसे ज्यादा फसलों पर देखने को मिल रहा है. बारिश की वजह से जहां कई फसलों को नुकसान हुआ है. वहीं, सर्दी की यह बारिश कुछ फसलों के लिए बेहतर भी मानी जा रही है. खासकर गेहूं की फसल के लिए. इस समय किसानों को गेहूं की सिंचाई करनी पड़ती है. ऐसे में अगर इस समय बारिश हो जाए तो इससे फसल की गुणवत्ता और सिंचाई का खर्च दोनों बच जाता है. बारिश की पानी में कई प्रकार के खनिज तत्व पाए जाते हैं जो फसल के लिए उपयोगी होते हैं. वहीं इस समय कृषि विशेषज्ञ खेत में किसी तरह के छिड़काव से मना करते हैं. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर गेहूं में पीता रतुआ रोग हो तो ही किसानों को खेत में छिड़काव करना चाहिए.
किसान तक से हुई खास बातचीत में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि आखिर क्यों बारिश गेहूं की फसल के लिए वरदान है. उन्होंने कहा कि इस समय हुई बारिश गेहूं की फसल के लिए बेहतर मानी जाती है. इसमें गेहूं की फसलों को तीन तरह से फायदा होता है. पहला फायदा यह है कि इससे सिंचाई की कमी कम हो जाती है. यानी किसानों को फसल में सिंचाई करने के लिए अगल से बोरिंग सेट कि जरूरत नहीं होती है. इससे किसानों का पैसा भी बचता है. दूसरा फायदा यह है कि सर्दियों में हुई बारिश गेहूं के लिए नाइट्रोजन की कमी को भी दूर करता है. यानी गेहूं की फसल को प्रकृतिक नाइट्रोजन मिल जाता है और फसल रासायनिक के कहर से बच जाता है. तीसरा फायदा यह है कि बारिश कि वजह से वातावरण में धूल के कण नीचे बैठ जाते हैं.
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रोग से बचने के लिए अक्सर हम कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं ताकि फसलों को नुकसान ना ही. वहीं कीटनाशक के छिड़काव को लेकर डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि गेहूं में कीटनाशक की ज्यादा जरूरत नहीं होती है. हालांकि जिस जगह पर पीला रतुआ रोग की समस्या हो वहां किसान कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं. लेकिन, इससे पहले किसानों को कुछ अहम बातों को ध्यान में रखना भी जरूरी है. डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि जिस किसानों ने पुरानी फसल लगाई है वो अपने खेतों में पीले रतुआ की जांच पहले करें उसके बाद ही कोई केमिकल स्प्रे करें.
वहीं दूसरी तरफ अगर लगातार बारिश हो रही है या आने वाले दिनों में बारिश की संभावना है तो उस स्थिति में किसान कीटनाशकों का इस्तेमाल ना करते हुए अपनी फसल को जलभराव से बचाएं. बारिश के माहौल में किसी भी फर्टिलाइजर का इस्तेमाल करना हानिकारक होता है. ऐसे में फसलों को छोड़ देना चाहिए. मौसम खुलने के बाद फसल का पीलापन यानी रतुआ रोग खुद दूर हो जाएगा.
पीले रतुआ को लेकर डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह ने कहा कि यह पहाड़ी इलाकों से शुरू होता है और फिर मैदानी क्षेत्र की ओर बढ़ता चला जाता है. डॉ.ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि पंजाब के पहाड़ों से लगता हुआ इलाका है, जहां पीले रतुआ रोग का खतरा सबसे पहले देखा जाता है. गेहूं के पीले रतुआ का कारक गर्मियों में हिमालय की आंतरिक घाटियों में गेहूं की फसलों पर और ठंडे वातावरण में यूरेडियल अवस्था में पौधों पर जीवित रहता है. अनुकूल तापमान मिलते ही, ये यूरेडियल बड़ी संख्या में यूरेडियो बीजाणु उत्पन्न करते हैं. यूरेडियो बीजाणु हवा के माध्यम से उत्तरी भारत की तलहटी में पहुंचते हैं और दिसंबर से जनवरी के महीने में गेहूं की फसल में प्राथमिक संक्रमण का कारण बनते हैं, जब यह लगभग एक महीने का होता है, जहां से ये हवा के साथ उड़कर अन्य स्थानों पर फैल जाते हैं. इस प्रकार पीला रतुआ रोग का प्रभाव हर जगह देखने को मिलता है.