उत्तर प्रदेश के संभल जिले में एक नई और अनोखी शुरुआत की गई है, जो पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नया जीवन दे रही है. इस पहल के अंतर्गत पहली बार भांग (हेम्प) के डंठलों से प्राकृतिक फाइबर तैयार किया जा रहा है. यह प्रयोग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत के विजन को आगे बढ़ा रहा है.
हेम्प का पौधा पर्यावरण के लिए बेहद फायदेमंद है. यह अन्य फसलों की तुलना में चार गुना अधिक कार्बन डाईऑक्साइड को सोखता है, जिससे वायुमंडल की शुद्धता बनी रहती है. साथ ही, इसमें कपास की तुलना में 10 गुना कम पानी की जरूरत होती है और यह 2.5 गुना अधिक फाइबर देता है. इससे यह साफ है कि हेम्प खेती जल संरक्षण और पर्यावरण सुधार में अहम भूमिका निभा सकती है.
कभी बेकार समझे जाने वाले भांग के डंठलों को अब मूल्यवान प्राकृतिक रेशा बनाने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है. इससे कपड़ा, कागज, बायो-प्लास्टिक और निर्माण सामग्री जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. पहले इन डंठलों को जलाकर फेंक दिया जाता था, जिससे प्रदूषण होता था. अब इनका व्यावसायिक उपयोग हो रहा है, जिससे प्रदूषण में भी कमी आ रही है.
भारत हेम्प एग्रो प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक आयुष सिंह के अनुसार, इस प्रोजेक्ट से अब तक 200 से अधिक ग्रामीण जुड़ चुके हैं और उनकी आमदनी पहले की तुलना में लगभग दोगुनी हो गई है. शुरुआती चरण में ही इस परियोजना से लगभग 5 लाख रुपये की आमदनी हुई है, जिससे इसकी सफलता और संभावना स्पष्ट हो रही है.
हेम्प प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से गांवों में रोजगार बढ़ेगा और लोगों को शहरों की ओर पलायन नहीं करना पड़ेगा. इससे ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को मजबूती मिलेगी. साथ ही, कपास, लकड़ी और प्लास्टिक जैसे आयातित संसाधनों पर देश की निर्भरता कम होगी.
संभल में शुरू हुई यह पहल उत्तर प्रदेश में हरित नवाचार (ग्रीन इनोवेशन) का बेहतरीन उदाहरण बन रही है. यह पहल पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक प्रगति की नई राह खोल रही है. भांग के डंठलों से फाइबर निर्माण की यह पहल न केवल प्रदूषण कम करने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक है, बल्कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नया आयाम मिल रहा है. यह एक ऐसी पहल है, जो भविष्य में देशभर में अपनाई जा सकती है और ‘विकसित भारत’ के सपने को साकार कर सकती है.
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