सोयाबीन के लिए बेहद खतरनाक है पीला मोजैक रोग, ऐसे करें पहचान और बचाव

सोयाबीन के लिए बेहद खतरनाक है पीला मोजैक रोग, ऐसे करें पहचान और बचाव

सोयाबीन मोजेक वायरस जनित रोग है, जो पॉटीवायरस के कारण होता है. फसल में यह रोग सफेद मक्खी की चपेट में आने से लगता है. पहले सोयाबीन की पत्तियों पर सफ़ेद मक्खी बैठती है. इससे पौधे संक्रमित हो जाते हैं. फिर एक पौधे से दूसरे पौधे तक संक्रमण धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है.

सोयाबीन में लगने वाले रोग. (सांकेतिक फोटो)सोयाबीन में लगने वाले रोग. (सांकेतिक फोटो)
क‍िसान तक
  • Noida,
  • May 31, 2024,
  • Updated May 31, 2024, 12:25 PM IST

खरीफ सोयाबीन की बुवाई का सीजन शुरू हो गया है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में किसान इस बार बंपर रकबे में बुवाई कर रहे हैं. किसानों की उम्मीद है कि इस बार सोयाबीन का बंपर उत्पादन होगा. लेकिन उन्हें इसकी फसल में लगने वाले सोयाबीन मोजेक वायरस जनित रोग को लेकर भी चिंता है. क्योंकि इस रोग के लगने के बाद फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है. साथ ही उत्पादन में भी गिरावट आती है. इससे किसानों को लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सोयाबीन मोजेक वायरस जनित रोग है, जो पॉटीवायरस के कारण होता है. फसल में यह रोग सफेद मक्खी की चपेट में आने से लगता है. पहले सोयाबीन की पत्तियों पर सफेद मक्खियां बैठती हैं. इससे पौधे संक्रमित हो जाते हैं. फिर एक पौधे से दूसरे पौधे तक संक्रमण धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है. हालांकि, लगातार वर्षा होने पर इस रोग के संक्रमण का असर फसलों पर नहीं होता है. लेकिन बारिश तीन से चार दिन के अंतराल पर होती है, तो संक्रमण के तेजी से फैलने की आशंका बढ़ जाती है.

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उपज हो सकती है प्रभावित

खास बात यह है कि मोजेक वायरस जनित रोग सोयाबीन के साथ-साथ दलहनी फसलों को भी प्रभावित करता है. कहा जाता है कि यदि समय रहते रोग पर काबू नहीं पाया गया, तो 50 से 90 प्रतिशत तक सोयाबीन की उपज प्रभावित हो सकती है. इसलिए किसानों को इस रोग को फैलने से रोकना बहुत जरूरी है. ऐसे में किसानों को इस रोग की पहचान होनी चाहिए. वे नीचे बताए गए तरीकों से मोजेक वायरस जनित रोग की पहचान कर सकते हैं.

कैसे करें रोग की पहचान

पीला मोजेक रोग लगने पर फसल की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. साथ ही इसके प्रभाव से पत्तियां खुरदुरी हो जाती हैं और उन पर सलवटें पड़ने लगती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि पीला मोजेक रोग के चलते संक्रमित पौधे नरम पड़कर सिकुड़ने लगते हैं. इस दौरान फसल की पत्तियां गहरा हरा रंग ले लेती हैं और पत्तियों पर भूरे और सलेटी रंग के धब्बे भी पड़ने लगते हैं. फिर फसल में अचानक सफेद मक्खी पनपने लगती है और इससे फलसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है. इसलिए ये लक्षण दिखाई पड़ते ही उपचार शुरू कर देना चाहिए.

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इस तरह करें बचाव 

पीला मोजेक रोग से फसल को बचाने के लिए खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं. इससे रोग नहीं फैलता है. साथ ही इन रोगों को फैलाने वाले वाहक सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए मिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम (Thiamethoxam 12.6% +)+ लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (Lambda Cyhalothrin) (125 मि ली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन (Beta-cyfluthrin ) + इमिडाक्लोप्रिड( Imidacloprid ) (350 मि ली/.हे) का छिड़काव करें. इसके अलाावा पीले मोजेक रोग से फसलों को बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड ( Imidacloprid ) कीटनाशक के घोल में बीज को डुबोने के बाद रोपना चाहिए. इससे फसल में रोग नहीं लगता है और उत्पादन भी अच्छा होता है.

 

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