
तमिलनाडु के कावेरी डेल्टा क्षेत्र में किसानों की परेशानियां लगातार बढ़ती जा रही हैं. इस बीच सत्तारूढ़ डीएमके और विपक्षी एआईएडीएमके दोनों दलों के वरिष्ठ नेता उत्तर-पूर्व मॉनसून के प्रभाव का आकलन करने के लिए इस क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं. धान की खरीद में देरी और भारी बारिश की दोहरी चुनौतियों ने हजारों टन कटे हुए कुरुवई फसलों को नुकसान पहुंचाया है या उनके सड़ने का खतरा पैदा कर दिया है.
विपक्ष के नेता और एआईएडीएमके के महासचिव एडापाडी के. पलानीस्वामी ने बुधवार को डेल्टा क्षेत्र के कई जिलों का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने किसानों से बातचीत की और सीधे खरीद केंद्रों (डीपीसी) के बाहर बारिश से भीगे धान के ढेरों का निरीक्षण किया. इसी बीच, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री आर. सक्करपानी ने जिले के अधिकारियों के साथ बैठकें कीं, ताकि खरीद और भंडारण की व्यवस्थाओं की समीक्षा की जा सके.
उन्होंने भरोसा दिया कि उठाव और चक्की प्रक्रिया को तेज करने के लिए तत्काल कदम उठाए जा रहे हैं. हालांकि, किसानों की संगठनों ने कहा कि सरकार की प्रतिक्रिया बहुत देर से आई, जिससे बड़े नुकसान को रोकना संभव नहीं हो सका. तमिलनाडु के सभी किसान संगठनों के को-ऑर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष पी.आर. पंडियन ने स्थिति को 'ऐतिहासिक अड़चन' के तौर पर बताया है. साथ ही उन्होंने खरीद संचालन में खराब योजना और को-ऑर्डिनेशन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया.
पंडियन ने कहा, 'इस साल करीब 6.31 लाख एकड़ में कुरुवई की खेती की गई जिससे करीब 13 लाख मीट्रिक टन धान पैदा हुआ है. लेकिन अब तक सिर्फ करीब 6 लाख टन ही खरीदी गई है, जिससे लगभग 4 लाख टन फसल बारिश के संपर्क में है. इसके अलावा, 2 लाख टन फसल अभी कटाई के लिए बाकी है. धान के बोरों को कई दिनों से डीपीसी के बाहर रखा गया है, जो लगातार बारिश के कारण अब भीगे हुए हैं.'
नागपट्टिनम जिले में, जहां 1.1 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्र में कुरुवई की खेती की गई थी, हाल के वर्षों में यह सबसे अधिक है, और यह मेट्टूर बांध से लगातार पानी छोड़ने के कारण संभव हो पाया, किसानों ने कहा कि बारिश ने उस फसल को पूरी तरह बदल दिया, जो अब तक अच्छी उपज की ओर बढ़ रही थी. कावेरी किसान संरक्षण संघ के महासचिव स. धनपालन ने कहा, 'इस सीजन में कुरुवई की फसल बेहतर थी, लेकिन लगातार हो रही बारिश ने फूलों को नुकसान पहुंचाया है और फसल को भी प्रभावित किया है. कुरुवई का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा तो कटाई हो चुका है, लेकिन इसका अधिकांश भाग अभी भी डीपीसी के बाहर भीगा पड़ा है.'
किसानों ने बताया कि डीपीसी (डायरेक्ट प्रोक्योरमेंट सेंटर्स) अपनी क्षमता से कहीं अधिक काम कर रहे हैं. हर केंद्र करीब 3,000 बोरे धान रखने के लिए बनाया गया है लेकिन अब इनमें 10,000 से अधिक बोरे जमा हो गए हैं. सीमित भंडारण, परिवहन में रुकावटें और चक्कियों तक स्टॉक के धीमे पहुंचने ने स्थिति और बिगाड़ दी है. धनपालन ने कहा, 'चक्की आदेशों को लेकर भ्रम है, लोडर की कमी है और एजेंसियों के बीच को-ऑर्डिनेशन की कमी है. डीपीसी में पहुंच रहे धान का मुश्किल से एक-दसवां भाग ही खरीदा जा रहा है, बाकी बारिश में खराब होने के लिए छोड़ दिया जा रहा है.'
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