फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) गारंटी कानून को लेकर देश के अधिकांश किसान संगठन इन दिनों आंदोलित हैं. देशभर में कई किसान संगठन रैली और यात्राएं निकाल चुके हैं. हालांकि सरकार भी एमएसपी को लेकर एक्टिव है. इस साल जुलाई में, सरकार ने एमएसपी पर एक समिति का गठन किया था. अब एमएसपी से जुड़ी एक खबर आई है. दरअसल, अक्टूबर से दिसंबर 2022 तक कृषि उपज विपणन समिति (agricultural produce marketing committee/APMC) बाजारों में कपास, सोयाबीन, धान और ज्वार की फसलें बेचने वाले किसानों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से 8,241.6 करोड़ रुपए अधिक कमाए हैं. हालांकि उड़द, मूंग, बाजरा और रागी की बाजारों में कीमत MSP से कम रही है.
पिछले तीन महीनों के दौरान मंडी में आवक और कीमतों से पता चला है कि कपास की कीमत 8,326 रुपए प्रति क्विंटल थी, जो MSP के मुकाबले 37 प्रतिशत अधिक थी. कपास की एमएसपी 6,080 रुपये प्रति क्विंटल (मध्यम किस्म) है. इसी तरह, सोयाबीन को 5,051 रुपए प्रति क्विंटल मिला, जो MSP के मुकाबले 17.5 प्रतिशत अधिक है. सोयाबीन का MSP 4,300 रुपए है. धान औसतन 2,171 रुपए प्रति क्विंटल पर बिका, जो MSP के मुकाबले 6 प्रतिशत अधिक है. धान का MSP 2,040 रुपए प्रति क्विंटल है. ज्वार 3,092 प्रति क्विंटल बिका, जो MSP के मुकाबले 4 प्रतिशत अधिक है. ज्वार का MSP 2,970 रुपए प्रति क्विंटल है.
द हिंदू बिजनेसलाइन में छपी खबर के अनुसार, तेलंगाना में कपास किसानों द्वारा फाइबर क्रॉप (fibre crop) की गिरती कीमतों को लेकर किए जा रहे विरोध पर, अधिकारियों ने कहा है कि नवंबर और अब की तुलना में एक महीने में लगभग 500 रुपए प्रति क्विंटल की गिरावट आई है. इस साल कीमतों में अस्थिरता इतनी अधिक है कि कुछ बाजारों में कपास की कीमतें एक दिन में 800 रुपए प्रति क्विंटल उछल या गिर गई हैं.
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कीमत MSP से नीचे होने की स्थिति में सरकार निश्चित रूप से दखल देगी. लेकिन ऐसा लग रहा है कि कपास की कीमतें कम से कम 1-2 महीने मजबूत बनी रहेंगी. उन्होंने सोयाबीन का उदाहरण दिया, जो दिसंबर में 5,254 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर अब 5,339 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है.
अरहर, मक्का और मूंगफली की मंडी में कीमत MSP से लगभग 1 फीसदी कम थीं. वही उड़द की कीमतें MSP से 11 फीसदी कम रहीं, जबकि मूंग और बाजरा MSP से 14 फीसदी कम कीमत पर बिके. आंकड़ों के अनुसार MSP से 30 फीसदी से कम कीमत पर रागी बिका है.
कृषि पर आधारित एक सम्मेलन में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने पिछले महीने कहा था कि हालांकि फसलों का एमएसपी किसानों को स्थिर कीमतों की गारंटी दे सकता है, लेकिन बाजार में उचित कंपटीशन से ही उपज की सर्वोत्तम कीमत सुनिश्चित की जाएंगी. चंद, जो कि एमएसपी पर सरकार द्वारा नियुक्त समिति के सदस्य भी हैं, ने कहा कि किसानों को MSP पर निर्भर होने के बजाय बाजार के अवसरों का लाभ उठाना चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि उचित बाजार मूल्य MSP से कम है, तो व्यवसायियों के बाजार से हटने की संभावना है, जिससे सरकार के लिए वित्तीय समस्या पैदा होगी.
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