जल्लीकट्टू के सांडों को आपने देखा है? आमने-सामने भले न देखा हो, लेकिन टीवी पर इसका मौका जरूर लगा होगा. जल्लीकट्टू दक्षिण भारत में सांडों की लड़ाई होती है जैसे कुछ क्षेत्रों में मुर्गा लड़ाई होती है. इसे खेल का दर्जा दिया गया है. जल्लीकट्टू देखकर दिमाग में यही सवाल उठता है कि आखिर इन भीमकाय सांडों को क्या खिलाया जाता है जो फौलादी ताकत के साथ मैदान में उतरते हैं. तो आइए आज हम आपको जल्लीकट्टू के सांडों का स्पेशल डायट प्लान बताते हैं. हम आपको यह भी बताएंगे कि इस प्लान के मुताबिक उन्हें भोजन में क्या-क्या दिया जाता है.
जल्लीकट्टू के सांडों का स्पेशल खाना होता है. तभी ये आम बैलों और सांडों से स्पेशल होते हैं. इनके खाने में सबसे खास स्थान हरी और ताजी घास का है. जल्लीकट्टू के सांड सूखी घास नहीं बल्कि हरी घास खाते हैं. दिन में कई बार इन सांडों को बाल्टी भर राइस ब्रान यानी कि चावल की भूसी या चोकर खिलाया जाता है. इसके अलावा काले और लाल चने की भूसी बड़ी मात्रा में परोसी जाती है.
कपास के बीज और मकई से बने चारे का बड़ा पैकेट जल्लीकट्टू के सांडों को खिलाया जाता है. इस तरह के खाने के आइटम बड़े करीने से 'थ्री स्कावयर मील्स' (तीन टाइम का भोजन) में बांटे जाते हैं जो सुबह, दोपहर और शाम को सांडों को खिलाए जाते हैं. सुंदरवल्ली नाम की एक महिला चरवाहा ने 'PTI' से कहा कि स्पेशल डायट प्लान सांडों को पौष्टिक भोजन देने के लिए बनाया गया है.
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सुदंरवल्ली कहती हैं, हम हर समय पौष्टिक भोजन देते हैं. हालांकि, अब हम पोषण से भरा खाना देने के लिए अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं क्योंकि जल्लीकट्टू नजदीक है और बैलों (सांडों) को शारीरिक रूप से अधिक मजबूत होने की जरूरत है. पहला भोजन सुबह 9.30 बजे दिया जाता है जब हम चावल की भूसी की एक पूरी, बड़ी बाल्टी में भरे चोकर और घास का रोल देते हैं. इसके अलावा, ताजा घास और भरपूर पानी हर समय दिया जाता है.
अगला भोजन दोपहर 3 बजे दिया जाता है जिसमें 'मक्काचोलम' (मकई), 'परुथी विधान' (कपास के बीज का केक), 'नेल थविडु' (चावल की भूसी) और 'उलुंडु-थुवरम डोसी' (काले और लाल चने की भूसी) शामिल होते हैं. 'पच्छा नेल्लू' (कच्चे चावल की भूसी) और पुजुंगा नेलू (उबाल चावल की भूसी) का वैकल्पिक रूप से उपयोग किया जाता है. जल्लीकट्टू को देखते हुए मकई और कपास के बीज केक के रूप में दिए जाते हैं.
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शाम का भोजन हल्का होता है और यह सुबह और दोपहर में दिए जाने वाले भोजन का एक 'अच्छा कॉम्बो' होता है. सुंदरवल्ली कहती हैं, हम थविदु थनीर (चोकर मिश्रित पानी) भी देते हैं. सांडों के लिए कसरत, जिसमें उन्हें लंबी सैर पर ले जाना, दौड़ना और तैरना शामिल है, उन्हें सुपर फिट बनाता है और इससे अच्छी भूख लगती है.
परंपरागत रूप से जल्लीकट्टू थाई के तमिल महीने में शुरू होता है (जनवरी में शुरू होता है और फरवरी में समाप्त होता है) और कम से कम 3-4 महीने तक चलता है. यह राज्य के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित किया जाता है. हालांकि सबसे अधिक आकर्षण मदुरै जिले के अलंगनल्लूर, पालामेडु और अवनियापुरम में देखा जाता है.
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