
भारत में गेहूं की खेती और खपत बड़े पैमाने पर होती है. यही कारण है कि गेहूं खाद्य प्रणाली में एक प्रमुख फसल है. आधी से ज़्यादा आबादी अपनी आजीविका के लिए गेहूं के आटे पर निर्भर है. चावल मुख्य विकल्प है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग गेहूं पसंद करते हैं. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात जैसे कई भारतीय राज्यों में गेहूं की खेती की जाती है. उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा उत्पादक है, उसके बाद मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का स्थान आता है. हालाँकि, इन राज्यों के किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या गेहूं में लगने वाले रोग हैं, जो न केवल फसलों को नष्ट करते हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान भी पहुँचाते हैं. हम किसानों को रोगों का पता लगाने और उन्हें नियंत्रित करने में मदद करने के लिए एक समाधान लेकर आए हैं. इस कड़ी में, आइए गेहूं के रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में जानें.
लक्षण: भूरा रतुआ रोग पत्तियों पर छोटे नारंगी और भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखता है. ये धब्बे पत्तियों की ऊपरी और निचली सतह दोनों पर दिखाई देते हैं. जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, रोग तेजी से फैलता है. इसका असर खासकर पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में ज्यादा देखा जाता है.
रोकथाम:
लक्षण: यह रोग तनों पर भूरे-काले धब्बों के रूप में दिखता है, जो बाद में पत्तियों तक फैल जाता है. इसके कारण तने कमजोर हो जाते हैं और दाने छोटे या झिल्लीदार बन जाते हैं. यह रोग मध्य भारत और दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है.
रोकथाम:
लक्षण: पत्तियों पर पीली धारियाँ बनने लगती हैं और उन्हें हाथ से छूने पर पीला चूर्ण जैसा पाउडर निकलता है. यह रोग हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ठंडे इलाकों में ज्यादा होता है.
रोकथाम:
लक्षण: एफिड छोटे हरे कीट होते हैं जो पत्तियों और बालियों का रस चूस लेते हैं. इनके कारण काली फफूंद बढ़ जाती है, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं.
रोकथाम:
लक्षण: दीमक पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान करती है. ये आमतौर पर सूखी मिट्टी में पाई जाती हैं. प्रभावित पौधे ऊपर से सूखे या कुतरे हुए लगते हैं.
रोकथाम:
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