Alert ! गेहूं पर मंडरा रहा इन 5 रोगों को खतरा, ऐसे कर लें बचाव वरना होगा नुकसान

Alert ! गेहूं पर मंडरा रहा इन 5 रोगों को खतरा, ऐसे कर लें बचाव वरना होगा नुकसान

गेहूँ की फसलों में भूरे, काले और पीले रतुआ के लक्षणों और उनके प्रभावी नियंत्रण के उपायों के बारे में जानें. साथ ही, फसल को एफिड्स और दीमक जैसे कीटों से बचाने के लिए प्रोपिकोनाज़ोल, टेबुकोनाज़ोल और क्लोरपाइरीफॉस के सही छिड़काव के तरीके भी जानें. फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए व्यावहारिक कृषि प्रबंधन सुझाव ले सकते हैं.

गेहूं ज्ञान- जानें गेहूं में लगने वाले रोग और रोकथामगेहूं ज्ञान- जानें गेहूं में लगने वाले रोग और रोकथाम
प्राची वत्स
  • Noida ,
  • Nov 13, 2025,
  • Updated Nov 13, 2025, 12:51 PM IST

भारत में गेहूं की खेती और खपत बड़े पैमाने पर होती है. यही कारण है कि गेहूं खाद्य प्रणाली में एक प्रमुख फसल है. आधी से ज़्यादा आबादी अपनी आजीविका के लिए गेहूं के आटे पर निर्भर है. चावल मुख्य विकल्प है, लेकिन बड़ी संख्या में लोग गेहूं पसंद करते हैं. यही कारण है कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और गुजरात जैसे कई भारतीय राज्यों में गेहूं की खेती की जाती है. उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा उत्पादक है, उसके बाद मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का स्थान आता है. हालाँकि, इन राज्यों के किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या गेहूं में लगने वाले रोग हैं, जो न केवल फसलों को नष्ट करते हैं, बल्कि आर्थिक नुकसान भी पहुँचाते हैं. हम किसानों को रोगों का पता लगाने और उन्हें नियंत्रित करने में मदद करने के लिए एक समाधान लेकर आए हैं. इस कड़ी में, आइए गेहूं के रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में जानें.

1. भूरा रतुआ रोग 

लक्षण: भूरा रतुआ रोग पत्तियों पर छोटे नारंगी और भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखता है. ये धब्बे पत्तियों की ऊपरी और निचली सतह दोनों पर दिखाई देते हैं. जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, रोग तेजी से फैलता है. इसका असर खासकर पंजाब, बिहार और उत्तर प्रदेश में ज्यादा देखा जाता है. 

रोकथाम:

  • एक ही किस्म की फसल को बड़े क्षेत्र में न लगाएं.
  • शुरुआती लक्षण दिखने पर प्रोपिकोनाजोल 25 EC या टेबुकोनाजोल 25 EC का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें.
  • 10-15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव दोहराएं.

2. काला रतुआ रोग

लक्षण: यह रोग तनों पर भूरे-काले धब्बों के रूप में दिखता है, जो बाद में पत्तियों तक फैल जाता है. इसके कारण तने कमजोर हो जाते हैं और दाने छोटे या झिल्लीदार बन जाते हैं. यह रोग मध्य भारत और दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है.

रोकथाम:

  • फसल की नियमित निगरानी करें.
  • प्रोपिकोनाजोल 25 EC या टेबुकोनाजोल 25 EC का 0.1% घोल बनाकर छिड़काव करें.
  • 10-15 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करें.

3. पीला रतुआ रोग

लक्षण: पत्तियों पर पीली धारियाँ बनने लगती हैं और उन्हें हाथ से छूने पर पीला चूर्ण जैसा पाउडर निकलता है. यह रोग हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ठंडे इलाकों में ज्यादा होता है.

रोकथाम:

  • पीले रतुआ प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें. 
  • खेत की निगरानी करते रहें, खासकर पेड़ों के आसपास उगने वाली फसलों की.
  • प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या टेबुकोनाजोल 25 ईसी के 0.1% घोल का छिड़काव करें.

4. एफिड (माहू)

लक्षण: एफिड छोटे हरे कीट होते हैं जो पत्तियों और बालियों का रस चूस लेते हैं. इनके कारण काली फफूंद बढ़ जाती है, जिससे पौधे कमजोर हो जाते हैं.

रोकथाम:

  • खेत की गहरी जुताई करवाएं.
  • फेरोमोन ट्रैप लगाएं.
  • क्विनालफॉस 25% ईसी की 400 मिली मात्रा को 500-1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें.
  • खेत के चारों ओर मक्का, ज्वार या बाजरा लगाएं.

5. दीमक

लक्षण: दीमक पौधों की जड़ों को खाकर नुकसान करती है. ये आमतौर पर सूखी मिट्टी में पाई जाती हैं. प्रभावित पौधे ऊपर से सूखे या कुतरे हुए लगते हैं.

रोकथाम:

  • खेत में गोबर की खाद डालें तथा पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट करें.
  • प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल नीम की खली डालकर बीज बोएं.
  • सिंचाई के समय 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से क्लोरपाइरीफॉस 20% ईसी का प्रयोग करें.

ये भी पढ़ें: 

पंजाब सरकार ने नई गेहूं किस्मों पर उठाया सवाल, कहा- “इनमें जरूरत से ज्यादा केमिकल खाद की मांग”
Kangana Ranaut: सांसद-एक्‍ट्रेस कंगना पर अब आगरा में चलेगा देशद्रोह का मामला, फिर बढ़ेंगी मुश्किलें? 

MORE NEWS

Read more!