किसानों के लिए खेती करना आसान काम नहीं है. खेती में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ऊपर से अगर मेहनत से उगाई फसल को जंगली जानवर खा लें, तो इससे बड़ा नुकसान और कोई नहीं हो सकता. ऐसे ही हालात कुछ हरियाणा के फरीदाबाद जिले के किसानों के हैं, जो आवारा पशुओं जैसे कि गाय, बैल, नीलगाय और जंगली सूअरों के बढ़ते आतंक से परेशान है. वहीं, इस मुद्दे को लेकर किसान और संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) जैसे संगठन अब सरकार से विशेष सब्सिडी की मांग कर रहे हैं, ताकि उनके खेतों की बाड़बंदी की जा सके और उनकी आजीविका की रक्षा की जा सके.
जिले में कुछ किसान बाड़ लगाने में कामयाब हो गए हैं, जबकि कई अन्य किसान अपने खेतों की रखवाली खुद करने को मजबूर हैं. फरीदाबाद जिले के दयालपुर गांव के प्रगतिशील किसान नरेंद्र बिस्ला ने कहा कि हमने अपनी फसलों की रक्षा के लिए खेतों में या तो परिवार के सदस्यों को तैनात किया है या निजी गार्ड रखे हैं. उन्होंने वित्तीय सहायता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, कि इस मुद्दे के महत्व के बावजूद, आवारा जानवरों द्वारा किए गए नुकसान को दूर करने के लिए कोई समाधान नहीं किया गया है.
अटाली गांव के किसान प्रहलाद कालीरामन ने बताया कि इलाके के 50 फीसदी से ज़्यादा किसानों ने अपने खेतों की सुरक्षा के लिए बाड़ लगाने या रात में रखवाली करने जैसे उपाय किए हैं. उन्होंने कहा कि समस्या बढ़ गई है, लेकिन सरकार ने कोई वित्तीय राहत या सहायता की घोषणा नहीं की है.
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मौजपुर गांव के हरेंद्र सिंह ने फसलों की सुरक्षा में शामिल सामानों के बारे में बताया, उन्होंने कहा कि एक एकड़ में बाड़ लगाने में 60,000 रुपये तक का खर्च आ सकता है, जो ग्रिल या कांटेदार तार की क्वालिटी पर निर्भर करता है. उन्होंने कहा कि जहां छोटे किसान अपने खेतों की रखवाली करते हैं, वहीं, बड़े किसान बाड़ लगाने का विकल्प चुनते हैं. हालांकि, नील गायों को रोकने के लिए बाड़ कम से कम सात फीट ऊंची होनी चाहिए, क्योंकि पांच फीट की ऊंचाई काफी नहीं है.
पलवल जिले में एसकेएम के प्रवक्ता महेंद्र सिंह चौहान ने दावा किया कि आवारा पशुओं के आतंक से गेहूं, गन्ना, चना और सब्जियों जैसी फसलों को 20-25 फीसदी नुकसान होता है. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर किसानों की नींद उड़ी हुई है. सरकार इस समस्या से निपटने या वित्तीय सहायता देने के लिए कोई योजना या रणनीति तैयार करने में विफल रही है. हमने इस मामले को कई बार अधिकारियों के सामने उठाया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
गुघेरा गांव के किसान धरम चंद ने दुख जताते हुए कहा कि हर साल अपने खेतों की बाड़ लगाने या रखवाली पर काफी पैसा खर्च करने के बावजूद किसानों को कोई सरकारी सहायता नहीं मिलती. उन्होंने कहा कि इस बार होने वाली समस्या से निपटने के लिए हमारी मदद के लिए कोई योजना घोषित नहीं की गई है.
जिला विकास और पंचायत अधिकारी कैप्टन प्रदीप कुमार ने बताया कि आवारा पशुओं को गौशालाओं में भेजा जा सकता है, लेकिन अभी तक कोई औपचारिक शिकायत नहीं मिली है. उन्होंने कहा कि कोई भी समाधान राज्य स्तरीय नीति पर निर्भर करता है. चूंकि किसान अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए बढ़ती लागत का सामना कर रहे हैं, इसलिए वे इस ज्वलंत मुद्दे के समाधान के लिए सरकार से हस्तक्षेप और वित्तीय सहायता की मांग कर रहे हैं.