भारत ने डेयरी सेक्टर में तरक्की की नई इबारत लिखी है. नतीजतन भारत दूध उत्पादन में विश्व स्तर पर शीर्ष स्थान पर काबिज हुआ है. लेकिन, अब इस तरह के दावे किए जा रहे हैं कि डेयरी सेक्टर से भारत में प्रदूषण बढ़ा रहा है. अमेरिका के न्यूयार्क स्थित कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ने दावा किया है कि भारत के अंदर गाय-भैंस की जुगाली प्रदूषण बढ़ा रही है. कॉर्नेल यूनिवर्सिटी ने ईडीएफ के साथ मिलकर गाय-भैंस की जुगाली के बाद जो मल निकलता है उससे बनने वाली मिथेन गैस को कम करने की वकालत की है, जिसके तहत कॉर्नेल यूनिवर्सिटी पर्यावरण रक्षा कोष और भारत के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के साथ एक परियोजना पर काम करेगा. जिसका उद्देश्यक भारत के छोटे किसानों को मिथेन उत्पादन कम करने और दूध की गुणवत्ता बढ़ाने में मदद करना है.
जुगाली से मिथेन का एक नया कनैक्शन सामने निकल कर आया है. ऐसे में यह दावा किया जा रहा है कि यह प्रदूषण के स्तर को बढ़ाता है. ऐसा क्यों और क्या है इसके पीछे की वजह आइये जानते हैं. दरअसल गाय और भैंस खाने के बाद उसको पचाने के लिए जुगाली करती हैं. ताकि खाना सही से पच सके. ऐसे में जुगाली की प्रक्रिया के दौरान खाना ठीक से पच जाता है. जिस वजह से जुगाली के बाद जो गोबर निकलता है उसमें एंटेरिक मिथेन की मात्रा अधिक पाई जाती है. एंटेरिक मिथेन की वजह से वातावरण में प्रदूषण की मात्रा को बढ़ता है. जिस वजह से आज मिथेन के उत्पादन को कम करने की बात कही जा रही है.
आपको बता दें कॉर्नेल न्यू यॉर्क की एक जानी मानी यूनिवर्सिटी है. ऐसे में इनके द्वारा दुनिया के सबसे बड़े डेयरी उत्पादक देश भारत को मीथेन उत्पादन को कम करने की बात कही गयी है. इसमें कॉर्नेल और ईडीएफ भारत की मदद करना चाहता है. जिसके तहत छोटे किसानों को मिथेन उत्पादन कम करने और दूध का कुशलता से उत्पादन करने में मदद करने की परियोजना में सहायता करेगा.
दरअसल यह पूरी खबर गाय और भैंस के पाचन तंत्र से जुड़ी हुई है. कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड लाइफ साइंसेज में डेयरी कैटल बायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर जोसेफ मैकफैडेन के मुताबिक गायों और भैंस का पाचन तंत्र एंटरिक मिथेन का उत्पादन और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है. प्रोफेसर का कहना है कि जो पशु खाने के बाद जुगाली करते हैं जैसे की गाय और भैंस. ऐसे में उनके मल से जो मिथेन गैस निकलता है उसमें प्रदूषण की मात्रा काफी अधिक होती. यह जलवायु प्रदूषक मिथेन का थोक उत्पादन करते हैं. जो वातावरण के लिए उचित नहीं है.
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भारत में लगभग 300 मिलियन मवेशियों और दुग्ध उत्पादक हैं. इतना ही नहीं भारत में 85 मिलियन छोटे डेयरी किसान भी हैं. संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, 2020 में, भारत ने 195 मिलियन मीट्रिक टन दूध का उत्पादन किया, जो कि सभी वैश्विक उत्पादन का 22% था.
भारत की जनसंख्या पर अगर नजर डालें तो यह करीबन 1.4 अरब है. संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक यह आंकड़ा 2030 तक 194 मिलियन तक पहुंच सकता है. वहीं दूसरी तरफ 2012 में दूध की खपत करने वाले परिवारों की संख्या 185 मिलियन से बढ़कर 2050 तक 349 मिलियन होने का अनुमान है.
उन्होंने कहा कि मानव पोषण के अलावा वैज्ञानिकों को मिथेन गैस से निकालने वाले प्रदूषण की चिंता है. ऐसे में भारत के वैज्ञानिकों को इस पर सोचने की जरूरत है. भारत में दूध उत्पादन काफी अधिक होता है. जिसका अर्थ है कि इसका डेयरी उद्योग जितना होना चाहिए उससे अधिक मिथेन का उत्पादन करता है. EDF के अनुसार, ग्रीनहाउस गैस के रूप में, मीथेन पहले 20 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक शक्तिशाली है.
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