हाल ही में फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने ए2 दूध का दावा कर सभी डेयरी प्रोडक्ट बेचने पर बैन लगा दिया था. बैन के संबंध में जारी हुए लैटर में खासतौर पर पर घी और मक्खन को लेकर बात की गई थी. अपने इस बैन को लेकर FSSAI ने कई एक्ट का हवाला भी दिया था. लेकिन आज अपने उसी फैसले को FSSAI ने अचानक से वापस ले लिया है. हालांकि FSSAI ने बैन वापसी के संबंध में कोई खास तर्क नहीं दिया है. अपने ढाई लाइन के लैटर में बस इतना ही कहा है कि बैन वापसी का ये फैसला डेयरी कारोबारियों से बातचीत के बाद लिया गया है.
लेकिन डेयरी कारोबारियों से क्या बात हुई, उन्होंने FSSAI के एक्ट के संबंध में क्या तर्क दिए इस बारे में लैटर के अंदर कोई खुलासा नहीं किया गया है. बैन वापसी का लैटर FSSAI की ओर से आज ही जारी किया गया है. जबकि बैन लगाने का लैटर 21 अगसत को जारी किया गया था. बैन लगाने का लैटर एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर इनोशी शर्मा की ओर से जारी किया गया था. जबकि बैन वापसी के संबंध में डायरेक्टर रेगुलेटरी कंप्लायंस राकेश कुमार की ओर से जारी किया गया है.
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FSSAI ने पहले बैन लगाया और फिर चार दिन बाद ही उसे वापस ले लिया. बैन लगाने की वजह क्या थी इस बारे में डेयरी एक्सपर्ट डॉ. दिनेश भोंसले ने किसान तक को बताया कि सबसे पहले तो इस बात को अच्छी तरह से समझ लें कि A1 और A2 का संबंध सीधे-सीधे प्रोटीन से होता है. और घी के अंदर फैट होता है ना कि प्रोटीन. जबकि A2 दूध से बना खास घी होने का दावा कर खुले बाजार और आनलाइन प्लेटफार्म पर इसे खूब बेचा जा रहा था. ये आम जनता और ग्राहक के साथ खुली धोखाधड़ी थी. घी और A2 का कोई संबंध नहीं है. और ऐसा भी नहीं है कि अगर घी या मक्खन A1 से बना है तो वो फायदेमंद नहीं होगा या फिर उसे खाने से कोई बीमारी हो जाएगी.
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असल में होता क्या है कि गाय और भैंस के दूध में मौजूद प्रोटीन में कुछ हिस्सा बीटा केसिन होता है. लेकिन ये भी दो तरह का होता है. इसे सामान्य भाषा में इस तरह समझ सकते हैं कि जो बीटा केसिन गाय के दूध में होता है वो आसानी से हजम (पच) हो जाता है. लेकिन भैंस का दूध हजम करने में कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है. और हजम होने वाला बीटा केसिन भी खासतौर पर देसी नस्ल की गाय जैसे साहीवाल, गिर, राठी आदि में ही पाया जाता है.
बीते बुधवार को FSSAI ने पत्र जारी करते हुए A1-A2 का इस्तेमाल करने वाले सभी फूड बिजनेस ऑपरेटर से कहा था कि प्री-प्रिंटेड लेबल को छह महीने में खत्म कर लिया जाए. छह महीने के बाद किसी भी तरह का वक्त नहीं दिया जाएगा. साथ ही ये चेतावनी भी दी थी कि किसी भी डेयरी प्रोडक्ट के संबंध में अपनी बेवसाइट से A1 और A2 से संबंधित सभी दावों को फौरन हटा लें.