हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बीते दिसंबर महीने में सामान्य से 85 प्रतिशत कम बारिश हुई है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की है. वैज्ञानिकों ने कहा है कि बारिश न होने के चलते गेहूं सहित अन्य फसलों में बीमारियों का प्रकोप बढ़ सकता है. इससे पैदावर पर भी असर पड़ेगा. कांगड़ा जिले के चंगर क्षेत्र के किसान बलबीर चौधरी ने कहा कि उनके खेत में बोए गए गेहूं अभी तक अंकुरित नहीं हुए हैं. अगर बारिश होती है, तो हमें फिर से गेहूं बोनी पड़ सकती है.
दैनिक ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए एक सलाह जारी की है. सलाह के मुताबिक, राज्य में पिछले साल नवंबर से सामान्य से कम बारिश हो रही है. नवंबर महीने के दौरान राज्य में 12.2 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य से 38 प्रतिशत कम है, जबकि दिसंबर में यह आंकड़ा 85 प्रतिशत पर पहुंच गया. खास बात यह है कि जनवरी में 15 दिन गुजर जाने के बाद भी अब तक बारिश नहीं हुई है. इसके चलते कांगड़ा जिले में लगभग 6 से 7 सप्ताह तक शुष्क मौसम रहा है. अब इसका असर फसलों पर भी पड़ेगा.
पालमपुर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने कहा कि गेहूं की फसल नवंबर में बोई गई थी और बेहतर कल्ले निकलने और विकास के लिए तत्काल पानी की आवश्यकता है. इस सूखे से अन्य फसलों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अगर इसी तरह मौसम सूखा रहा तो गेहूं की फसल में खस्ता फफूंदी और पीला रतुआ जैसी बीमारी लग जाएगी. विशेषज्ञों ने कहा कि इस शुष्क मौसम के कारण गेहूं और अन्य फसलों में एफिड का प्रकोप बढ़ सकता है.
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हिमाचल और कांगड़ा जिले में लगभग 80 प्रतिशत कृषि वर्षा पर निर्भर है. पिछले साल मानसून के दौरान भूस्खलन से कांगड़ा जिले में लगभग 100 कुहल और स्थानीय जलधाराओं से निकलने वाली कई पारंपरिक सिंचाई नहरें क्षतिग्रस्त हो गईं. जल शक्ति विभाग ने कांगड़ा जिले में क्षतिग्रस्त सिंचाई योजनाओं की मरम्मत के लिए 100 करोड़ रुपये की मांग की थी.
हालांकि, आज तक राज्य ने शाह नहर की मरम्मत के लिए कोई पैसा नहीं दिया है. पिछले मानसून के दौरान शाह नहर का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था, जिसके कारण कांगड़ा जिले के नूरपुर और इंदौरा में लगभग 4,000 हेक्टेयर भूमि सिंचाई के बिना रह गई है. खास बात यह है कि शाह नहर की मरम्मत का काम अभी भी शुरू नहीं हुआ है.
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