दिल्ली-एनसीआर में इस वक्त वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने का खलनायक कौन है? जिन सरकारों और लोगों ने किसानों पर पराली जलाने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है क्या उन्होंने कभी उन लोगों पर भी केस दर्ज करने की हिम्मत की है जिन्होंने असल में दिल्ली को प्रदूषित किया है? क्या दिल्ली-एनसीआर के लोग अपनी गलतियों और कमियों को छिपाने के लिए किसानों को गुनहगार बताकर बच सकते हैं. क्यों आखिर अब भी दिल्ली में प्रदूषण के लिए सिर्फ पराली को जिम्मेदार माना जा रहा है, जबकि किसानों ने पराली जलाना लगभग बंद कर दिया है. आखिर सरकार प्रदूषण के लिए रोड साइड की धूल, बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, सरकारी निर्माण, एसयूवी और कॅमर्शियल वाहनों को जिम्मेदार क्यों नहीं मानती?
प्रदूषण के लिए किसानों को कोसने वालों की आंख खोलने वाला एक आंकड़ा सामने आया है. इस साल 15 सितंबर से 31 अक्टूबर तक देश के छह सूबों पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में सिर्फ 7,532 जगहों पर पराली जलाई गई है. जबकि 2020 में सिर्फ तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और यूपी में एक से 31 अक्टूबर तक ही 34,824 जगहों पर पराली जला दी गई थी. यानी पांच साल में पराली जलाने की घटनाओं में करीब 78 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. इसके बावजूद प्रदूषण बढ़ ही रहा है तो दिल्ली वालों को अपनी कमियों की ओर देखना चाहिए.
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साल | मामले |
2024 | 7532 |
2023 | 13645 |
2022 | 19920 |
2021 | 18449 |
2020 | 34824* |
#31 अक्टूबर तक | Source: ICAR |
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने भी किसानों का बचाव करते हुए कहा है कि प्रदूषण के लिए दिल्ली खुद जिम्मेदार है. खेतों में पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी दर्ज की गई है, बावजूद प्रदूषण बढ़ा है. दिल्ली की खराब हवा के लिए स्थानीय सोर्स और खास तौर पर ट्रांसपोर्ट की भूमिका ज्यादा है. सीएसई की स्टडी में कहा गया है कि रोजाना के प्रदूषण में 50 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी ट्रांसपोर्ट, 13 फीसदी आवासीय, 11 फीसदी इंडस्ट्री और 7 फीसदी कंस्ट्रक्शन की है. इस साल अब तक खेतों में लगी आग का दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर सबसे कम असर देखा गया है.
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