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कॉटन की कम उत्पादकता से क‍िसान, कंज्यूमर और टेक्सटाइल इंडस्ट्री सब परेशान, ज‍िम्मेदार कौन? 

कॉटन की कम उत्पादकता से क‍िसान, कंज्यूमर और टेक्सटाइल इंडस्ट्री सब परेशान, ज‍िम्मेदार कौन? 

कुल उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर, लेकिन उत्पादकता में 35वें स्थान पर. कॉटन इंडस्ट्री ने मंत्री के सामने हालात बदलने के लिए उठाई मांग. जब तक उत्पादकता नहीं बढ़ेगी तब तक टेक्सटाइल इंडस्ट्री, क‍िसानों और कंज्यूमर की चुनौती खत्म नहीं होगी. आख‍िर उत्पादकता बढ़ाने के ल‍िए क्या कर रही है सरकार? 

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कपास का क‍ितना उत्पादन करता है भारत? कपास का क‍ितना उत्पादन करता है भारत?

भारत दुन‍िया का दूसरा सबसे बड़ा कॉटन उत्पादक है, लेक‍िन उत्पादकता के मामले में इसका स्थान 35वां है. आख‍िर ऐसा क्यों? इस सवाल और चुनौती से क‍िसान और कॉटन इंडस्ट्री दोनों जूझ रहे हैं. जबक‍ि कंज्यूमर को सस्ता कपड़ा नहीं म‍िल रहा. कम उत्पादकता की वजह से क‍िसानों को कपास की खेती से बहुत अच्छा फायदा नहीं म‍िलता और टेक्सटाइल इंडस्ट्री को व‍िश्व बाजार के मुकाबले महंगा कपास खरीदने पर मजबूर होना पड़ता है. कंफेडरेशन ऑफ इंड‍ियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) ने नई द‍िल्ली में आयोज‍ित एक कार्यक्रम में इस बात पर मंथन क‍िया क‍ि क‍िस तरह से इस स्थ‍िति से भारत उबर सकता है. इसमें न स‍िर्फ क‍िसान और टेक्सटाइल इंडस्ट्री से जुड़े लोग मौजूद रहे बल्क‍ि कपड़ा और कृष‍ि मंत्रालय के अध‍िकार‍ियों ने भी अपने व‍िचार साझा क‍िए. कपड़ा मंत्री ने भी अपने व‍िचार रखे.

कॉटन एक कमर्श‍ियल क्रॉप है, जिससे सीधे तौर पर 60 लाख लोग जुड़े हुए हैं. भारत की इकोनॉमी में इस फसल का महत्वपूर्ण योगदान है. लेक‍िन दुर्भाग्य से सबसे ज्यादा एर‍िया में खेती करने के बावजूद हम उतना उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं ज‍ितना हमारा पड़ोसी चीन कर रहा है. चीन स‍िर्फ 30 लाख हेक्टेयर में कॉटन की खेती करके दुन‍िया का नंबर उत्पादक है, जबक‍ि भारत 130 लाख हेक्टेयर में खेती करने के बावजूद दुन‍िया का दूसरा बड़ा उत्पादक ही बना हुआ है. ऐसा इसल‍िए है क्योंक‍ि भारत में कॉटन की उत्पादकता बहुत कम है. 

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क‍ितनी है उत्पादकता? 

कॉटन की उत्पादकता के मामले में भारत फ‍िसड्डी है. यहां व‍िश्व औसत 756 क‍िलोग्राम से भी कम उत्पादकता है. भारत में प्रत‍ि हेक्टेयर 450 क‍िलोग्राम कपास भी पैदा नहीं होता है, जबक‍ि चीन 1993 क‍िलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर के साथ उत्पादकता के मामले में दुन‍िया भर में पहले स्थान पर है. उत्पादकता बढ़ेगी तो क‍िसानों को फायदा होगा और इंडस्ट्री को सस्ता कपास म‍िलेगा ज‍िससे कपड़े सस्ते होंगे. लेक‍िन, ऐसा न हो पाने की वजह से क‍िसान, कंज्यूमर और इंडस्ट्री तीनों जूझ रहे हैं. भारत में 2023-24 के दौरान 325.22 लाख गांठ कॉटन उत्पादन का अनुमान है. एक गांठ में 170 किलोग्राम होता है. 

कम उत्पादकता का ज‍िम्मेदार कौन? 

सवाल यह है क‍ि कपास की उत्पादकता कम होने के पीछे ज‍िम्मेदार कौन है? कपड़ा मंत्रालय की सच‍िव रचना शाह ने कहा क‍ि भारत में प्रत‍ि हेक्टेयर कॉटन की उत्पादकता स‍िर्फ 436 क‍िलोग्राम है. देश के सामने यह बड़ी चुनौती है. दुन‍िया के करीब 80 देशों में कॉटन से जुड़ी गतिविधियों होती हैं, ज‍िनमें भारत अपना अच्छा दखल रखता है लेक‍िन उत्पादकता के मामले में हम मार खा जाते हैं. इसके कई कारण हैं. गुणवत्ता वाले बीजों का अभाव, सिंचाई सुविधाओं की कमी और सही कीटनाशक मैनेजमेंट न हो पाने की वजह से हम उत्पादकता के मामले में पीछे हैं.

कॉटन की उत्पादकता में सुधार लाने के लिए 8 राज्यों में प्रोजेक्ट चल रहा है. इसके अच्छे पर‍िणाम सामने आए हैं. अब इस प्रोजेक्ट को और बड़े स्तर पर ले जाने की जरूरत है. ज‍िसमें हाई डेन्सिटी कॉटन की खेती को बढ़ावा देना प्रमुख है. इसके अलावा कॉटन से जुड़े टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत बनाने का वक्त है. 

कॉटन इंड्रस्ट्री के सामने दिक्कत

कपड़ा मंत्रालय की संयुक्त सचिव प्राजक्ता वर्मा ने कहा क‍ि विश्व का 24 फीसदी कॉटन भारत में पैदा होता है. हम दुन‍िया के बड़े उत्पादक हैं लेक‍िन उत्पादकता में बहुत पीछे हैं. इसकी वजह से टेक्सटाइल इंडस्ट्री में रॉ मैटीरियल सिक्योरिटी नहीं है. कॉटन की पर्याप्त आवक न होने से दाम बहुत बढ़ता है, जिससे कॉटन इंड्रस्ट्री के सामने दिक्कत आती है.  

इंडस्ट्री के ल‍िए दाम बना चुनौती 

कंफेडरेशन ऑफ इंड‍ियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री के चेयरमैन राकेश मेहरा ने कहा क‍ि जब तक इंडस्ट्री को रॉ मैटीरियल इंटरनेशनल प्राइस पर नहीं मिलेगा तब तक उनके सामने अंतरराष्ट्रीय बाजार में चुनौती बनी रहेगी. अगर आप सही दाम पर रॉ मैटीरियल देंगे तो कॉटन इंड्रस्ट्री वो ग्रोथ दे सकती है जो सरकार कहेगी. कुछ लोग कहते हैं कि जब सालाना 8 फीसदी की दर से डोमेस्टिक मार्केट बढ़ रहा है तो एक्सपोर्ट की क्या जरूरत है. लेकिन सच ये है क‍ि इंडस्ट्री को फॉरेन मार्केट की जरूरत है.

मंत्री ने क्या कहा? 

केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा क‍ि हाई डेंस‍िटी प्लांटेशन और ड्रिप फर्टिगेशन जैसे सर्वोत्तम कृषि पद्धतियों को अपनाने से कॉटन की वर्तमान राष्ट्रीय औसत उपज को 1500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने कॉटन की खेती में खरपतवार मैनेजमेंट की समस्या के बारे में भी अपनी चिंता व्यक्त की, जिसकी वजह से किसानों की श्रम लागत बढ़ जाती है. उन्होंने कहा क‍ि नई बीज किस्मों को अपनाकर कॉटन किसानों को खरपतवार मैनेजमेंट की समस्या से निपटने में मदद करने के प्रयास किए जाने चाहिए.  

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