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जाते-जाते 'तबाही' छोड़ गया EL-Nino, मार्च महीने में सूखे से कई फसलें चौपट

जाते-जाते 'तबाही' छोड़ गया EL-Nino, मार्च महीने में सूखे से कई फसलें चौपट

अमेरिकी संस्था सेंटर्स फॉर इनवायरमेंटल इनफॉर्मेशन (NCEI) की एक रिपोर्ट बताती है कि देश के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में सूखे की पुष्टि हो चुकी है. फरवरी महीने में उत्तरी, पूर्वी और तटीय दक्षिण पश्चिमी इलाके में गंभीर सूखे की स्थिति बनी थी.

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देश के कई हिस्से में सूखे की स्थिति देश के कई हिस्से में सूखे की स्थिति

कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो अल-नीनो अब भारत से विदा हो गया है. इससे एक कदम आगे जुलाई में ला-नीना की एंट्री का संकेत है. लेकिन इस बीच के महीनों में देश के कई हिस्सों ने बहुत कुछ झेल लिया है. इन बीच के महीनों में बारिश की इतनी घोर कमी हुई है कि कई जगह सूखे की स्थिति गंभीर है. कई हिस्से ऐसे हैं जहां खेतों में तबाही के हालात हैं. एक विदेशी रिपोर्ट में बताया गया है कि अल-नीनो (El-Nino) की वजह से देश के 26.5 परसेंट हिस्से में सूखे के हालात हैं. ये वो इलाके हैं जहां बारिश बेहद कम हुई है.

अमेरिकी संस्था सेंटर्स फॉर इनवायरमेंटल इनफॉर्मेशन (NCEI) की एक रिपोर्ट बताती है कि देश के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में सूखे की पुष्टि हो चुकी है. फरवरी महीने में उत्तरी, पूर्वी और तटीय दक्षिण पश्चिमी इलाके में गंभीर सूखे की स्थिति बनी थी. भारत में जून 2023 में अल-नीनो सक्रिय हुआ था. तब से लेकर कई हिस्सों में मॉनसून की कम बारिश हुई. अमेरिकी संस्था ने देश के 711 जिलों से डेटा जुटाया और पाया कि पिछले साल अल-नीनो की जब शुरुआत हुई तो इन जिलों में 50 परसेंट तक कम बारिश दर्ज की गई.

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क्या कहती है रिपोर्ट?

अभी हाल में ऑस्ट्रेलिया के मेटरोलॉजी ब्यूरो ने बताया था कि भारत से अल-नीनो की विदाई हो चुकी है. अल-नीनो अभी पूरी तरह से न्यूट्रल हो चुका है और जुलाई में ला-नीनो एक्टिव होगा. इसकी वजह से देश में अच्छी बारिश के अनुमान हैं. अल-नीनो जहां सूखे की स्थिति पैदा करता है, वहीं ला-नीना अधिक बारिश कराता है. ला-नीना की वजह से बाढ़ के हालात भी बनते हैं. 

रिपोर्ट में बेंगलुरु का उदाहरण दिया गया है. बेंगलुरु को गार्डन सिटी कहा जाता है जहां मौसम हमेशा सुहाना रहता है. लेकिन इस बार बेंगलुरु त्राही माम कर रहा है. यहां पेयजल से लेकर भूजल तक की समस्या देखी जा रही है. इसके पीछे बड़ी वजह कम बारिश बताई जा रही है. फरवरी और मार्च में यहां बिल्कुल बारिश नहीं हुई है. यहां के अधिकांश कुएं और बोरवेल सूख चुके हैं. अभी वीकेंड पर बेंगलुरु में हल्की बारिश हुई जिससे लोगों को भारी राहत मिली. लोगों को उम्मीद है कि इससे पेयजल की समस्या कुछ सुलझेगी.

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सूखे से बदतर हालत

बारिश की कमी का असर है कि देश के अधिकांश बांधों में पानी का स्तर 50 परसेंट से कम है. दक्षिण भारत के कई बांधों में पानी के हालात बहुत बुरे हैं. इससे खेती से लेकर बिजली और सिंचाई जैसी व्यवस्थाओं पर असर देखा जा रहा है. कई सिंचाई परियोजनाएं बांधों के पानी पर निर्भर हैं. बारिश नहीं होने से खरीफ फसलों पर अधिक दबाव है और दूसरी ओर बांधों में पानी कम होने से फसलों पर खतरा मंडरा रहा है. कई राज्यों के किसान बारिश की ओर निगाह लगाए बैठे हैं, लेकिन जून के पहले मॉनसून की आवक शायह ही हो पाए. ऐसे में स्थिति अभी और खराब हो सकती है.