Success Story: सिर्फ 5000 रुपये में शुरू की इस फसल की खेती, अब लाखों रुपए कमा रहा महाराष्ट्र का यह किसान, जानिए कैसे 

Success Story: सिर्फ 5000 रुपये में शुरू की इस फसल की खेती, अब लाखों रुपए कमा रहा महाराष्ट्र का यह किसान, जानिए कैसे 

Maharashtra Farmer Sudhir Chawhan Success Story: किसानी करके भी आप लखपति बन सकते हैं. बस इसके लिए आपको परंपरागत खेती की जगह नकदी फसलों की खेती करनी होगी. आज हम आपको बता रहे हैं महाराष्ट्र के एक ऐसे किसान की सफलता की कहानी, जो कम लागत में शकरकंद की खेती कर तगड़ा मुनाफा कमा रहे हैं.

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महाराष्ट्र के किसान ने सिर्फ 5000 रुपये में शुरू की इस फसल की खेती, अब लाखों में हो रही कमाईSweet Potato Farming
Story highlights
  • सुधीर चव्हाण पिछले 10 सालों से कर रहे शकरकंद की खेती
  • परंपरागत खेती से नहीं होती थी ज्यादा आमदनी

Sweet Potato Farming: हमारे देश के किसान अब धीरे-धीरे परंपरागत खेती को छोड़कर नकदी फसलों की खेती कर रहे हैं. पहले जहां खेती से घर-परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था, वहीं अब अन्नदाता नकदी फसलों की खेती कर दोगुनी नहीं बल्कि चौगुनी आमदनी कर रहे हैं. इसकी मिसाल हैं महाराष्ट्र राज्य के सोलापुर जिले स्थित पंढरपूर तालुका के रहने वाले किसान सुधीर चव्हाण. वह परंपरागत खेती से इतर शकरकंद (Sweet Potato) की खेती कर लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं.  

इतने सालों से कर रहे शकरकंद की खेती

पंढरपूर स्थित बाबुलगांव के रहने वाले किसान सुधीर चव्हाण कहते हैं कि वह पहले परंपरागत खेती करते थे, जिससे किसी तरह से जीवन-यापन चल पाता था. इसके बाद उन्होंने शकरकंद की खेती करनी शुरू कर दी. वह पिछले 10 सालों से शकरकंद की खेती कर रहे हैं.

शकरकंद की जहां बंपर पैदवार हो रही है, वहीं छप्पर फाड़ कमाई भी हो रही है. सुधीर बताते हैं कि शकरकंद की खेती की लागत प्रति एकड़ करीब 5000 रुपए आती है लेकिन इससे कमाई लाखों में होती है. सुधीर बताते हैं उन्होंने पिछले साल 1.5 एकड़ में 600 बोरियां शकरकंद की उत्पादित की थीं. इसको बेचकर उन्होंने तीन लाख रुपए की आय अर्जित की थी. 

बस इतने दिनों में तैयार हो जाते हैं पौधे

किसान सुधीर चव्हाण बताते हैं कि वह 50 गुनठे के क्षेत्र में शकरकंद की खेती करते हैं. इसकी खेती करने से पहले वह खेत को मिट्टी घुमा कर जोतते हैं, फिर रोटावेटर से 2 से 3 बार मिट्टी जोतने के बाद शकरकंद के पौधे लगाते हैं.

सुधीर चव्हाण बताते हैं कि रोपाई के 120 से 130 दिनों में ही शकरकंद के पौधे तैयार हो जाते हैं. जब इसके पौधों पर लगी पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगती हैं तो उस दौरान इसके कंदो की खुदाई कर ली जाती है.

न ज्यादा पानी की जरूरत और न खाद की

किसान सुधीर चव्हाण बताते हैं कि शकरकंद की ज्यादा उपज देने वाली किस्मों को बोने पर पैदवार अच्छी होती है. उन्होंने बताया किसान भाई शकरकंद की उन्नत किस्म वर्षा, श्रीनंदिनी, श्रीरत्न, श्री वर्धिनी, क्रॉस-4, कालमेघ, श्रीवरुण, राजेंद्र शकरकंद-5, श्रीअरुण, श्रीभद्र, कोंकण अश्विनी, पूसा सफेद, पूसा सुनहरी का इस्तेमाल कर सकते हैं.

सुधीर चव्हाण बताते हैं कि शकरकंद की खेती में न अधिक पानी की जरूरत होती है और न ही खाद की. इस फसल की ज्यादा देखभाल करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है. सर्दियों के मौसम में बाजारों में शकरकंद की मांग अधिक रहती है और किसानों की फसल का अच्छा दाम मिल जाता है.

सेहत के लिहाज से शकरकंद फायदेमंद

आपको मालूम हो कि शकरकंद की खेती यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में इस समय बड़े पैमाने पर की जा रही है. कृषि के जानकार बताते हैं कि शकरकंद एक बारहमासी बेल है. इसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है लेकिन अच्छी उपज के लिए गर्मी और बारिश का मौसम अच्छा होता है.

शकरकंद सेहत के लिहाज से बहुत फायदेमंद होती है. यह फाइबर से भरपूर होती है. इसको खाने से पाचन क्रिया बेहतर रहती है. शकरकंद में कैरोटीनॉयड भी पाया जाता है, जो ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है. आलू की तुलना में शकरकंद में स्टार्च और मिठास ज्यादा मात्रा में पाई जाती है. आलू जहां शुगर पेशेंट्स को मना होता है, वहीं शकरकंद उनके लिए काफी फायदेमंद होता है.
 

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