महाराष्ट्र के किसान अभी सूखे की मार झेल रहे हैं. पानी के अभाव में फसलें जल रही हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में भी बारामती तालुका के दोर्लेवाड़ी के किसान राहुल चव्हाण ने बड़ा काम किया है. उन्होंने अमरूद की खेती से अच्छी-खासी कमाई की है. इस किसान ने वोनार और ताइवान पिंक की दो अमरूद की किस्मों का उत्पादन किया है और लाखों रुपयों का मुनाफा कमाया है. राहुल चव्हाण ने अपनी चार एकड़ जमीन में पहले अनार की फसल लगाई थी. लेकिन लगातार पड़ रहे झुलसा रोग और तेला रोग के प्रकोप के कारण अनार के बाग नष्ट होने से वह परेशान थे. बाद में अमरूद की खेती ने उन्हें बड़ी सफलता दिलाई.
इस संबंध में कृषि विभाग के अधिकारियों से बातचीत करने के बाद उन्होंने तीन साल पहले, अमरूद की फसल लगाने का निर्णय लिया. उन्होंने वोनार और ताइवान पिंक किस्मों के पेड़ लगाए. इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ के रायपुर से वोनार किस्म के 1200 पौधे और बारामती क्षेत्र की नर्सरी से ताइवान पिंक के 1800 पौधे मंगवाए और उसकी खेती की.
इस साल अमरूद की फसल से अच्छी कमाई पाने के लिए राहुल चव्हाण और उनके परिवार ने कड़ी मेहनत की. इस साल उनके बगीचे से अमरूद का तकरीबन 80 से 90 टन उत्पादन होने का अनुमान है. इतना ही नहीं, इस अमरूद को नेपाल जैसे देश में खूब डिमांड बढ़ रही है. वहीं देश में दिल्ली, केरल, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ कर्नाटक जैसे राज्यों में मांग बढ़ रही है.
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उनके अमरूद को अच्छा खासा दाम भी मिल रहा है. वोनार अमरूद 45 से 50 रुपये प्रति किलो और ताइवान पिंक अमरूद 35 से 40 रुपये प्रति किलो बिक रहा है. दरअसल राहुल चव्हाण को अमरूद की खेती में पहले और दूसरे साल आठ लाख रुपये तक का मुनाफा मिला था. वहीं तीसरे साल अमरूद से लदे पेड़ देख कर राहुल और उनका परिवार खुशी से झूम उठा है.
किसान को इस साल विदेशों से भी अमरूद की डिमांड आई तो उन्होंने एक एक्सपोर्ट कंपनी के जरिए नेपाल को अमरूद भेजने की तैयारी की है, जिसे वे 80 रुपये प्रति किलो तक बेचेंगे. वोनार किस्म ने रोपण के डेढ़ साल बाद और ताइवान पिंक ने एक साल बाद फल देना शुरू कर दिया है. वोनार किस्म से पहले वर्ष में 15 टन और ताइवान पिंक से 27 टन का उत्पादन मिला था. पहले साल में खर्च काटने के बाद लगभग आठ लाख रुपये की बचत हुई थी.
राहुल ने बताया कि इस किस्म के अमरूद को लगाते समय गोबर की खाद, बेसालडोस दिया जाता है. उसके बाद समय-समय पर पेड़ों की वृद्धि के लिए खाद, पानी डालने के साथ-साथ पेड़ों की छंटाई भी करनी होती है. उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत और देखभाल करने के बाद फलों का आकार करीब 500 ग्राम से लेकर एक किलो तक बड़ा है जिसकी वजह से उन्हें दाम भी अच्छा मिल रहा है.
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