जमशेदपुर के सेट पट्टामुंडा इलाके के लोहा डीह गांव में प्रगतिशील किसान निरंजन गोरी ने बैंगन की बंपर फसल उगाई है. खेतों में बैंगन इस तरह लहलहा रहे हैं कि देखने लायक है. हर तीन दिन में उनके खेतों से करीब 10 क्विंटल बैंगन निकलता है और इनका बाजार औसत 25 से 30 है. सारे खर्चे निकालने के बाद वे हर हफ्ते लाखों रुपए कमा रहे हैं. किसान बेहद खुश हैं.
इस बार निरंजन गोराई ने जमशेदपुर से सटे पट्टामुंडा इलाके में अपने दो बीघा खेत में बैगन के पौधे लगाए थे. यह बैगन के पौधे काफी उच्च गुणवत्ता वाले थे. शुरुआती दौर में जब बाजार काफी ऊंचा था, तब निरंजन गोराई के खेत सोना उगलने लगे थे. शुरुआती दौर में बाजार भाव 50 से 60 रुपये था. ये लोग हर तीन दिन में 400 से 500 बैगन तोड़कर बाजार में बेचने लगे. बाजार भाव ऊंचा होने के कारण इनकी आमदनी लाखों में होने लगी. धीरे-धीरे बाजार कमजोर पड़ा और बैगन की मांग कम होने लगी. फिर भी इन लोगों ने उम्मीद नहीं खोई और अब बैगन के आखिरी दिनों में इस खेती ने इन्हें लखपति बना दिया है. हर तीन दिन में इनके खेतों से 10 से 15 क्विंटल बैगन निकल रहे हैं. बारिश के कारण इनके कुछ बैगन खराब भी हुए हैं.
किसान इस बात से बेहद खुश हैं कि इस बार उन्होंने बैंगन की खेती से लाखों रुपए कमाए हैं. अगर जमशेदपुर में तीन-चार दिन बारिश नहीं होती तो उनके फल उन्हें ज्यादा आमदनी देते, लेकिन कुछ फल खराब हो जाने की वजह से अब उन्हें इन फलों की छंटाई करनी पड़ रही है, लेकिन फिर भी उनकी आमदनी में कोई कमी नहीं आई है. इन लोगों ने एक महीने में 4 से 5 लाख रुपये कमाए हैं. पौधे की कीमत से लेकर उसे बाजार तक पहुंचाने के खर्च तक सभी खर्च निकालने के बाद उन्होंने एक महीने में 4 से 5 लाख रुपए कमाए हैं, जिससे किसान बेहद खुश हैं.
प्रगतिशील किसान निरंजन गोराई का कहना है कि हमारे पास अपना खेत नहीं है, हमने कुछ लोगों से कर्ज पर खेत लिया है और इन खेतों में हमने पहली बार बैगन की खेती की है. बैगन की खेती करके हमने काफी मुनाफा कमाया है. हमने तैयार पौधे मंगवाए और उनसे पैदावार लेना शुरू किया. शुरूआती दौर में प्रत्येक पौधे में 10 से 15 बैगन लटके नजर आए. हमें लगा कि इस बार पैदावार अच्छी होगी और वाकई शुरूआती दौर में ही हमें हर तीन दिन में 10 क्विंटल से ज्यादा बैगन तोड़ने का मौका मिला, जिसका हमें अच्छा बाजार मूल्य मिला और लाखों रुपए के रूप में अच्छी आमदनी हुई.
किसान छात्र का कहना है कि 10वीं करने के बाद मैंने सोचा कि हमें अपने गांव में ही खेती करनी चाहिए और आगे की पढ़ाई कृषि में ही करनी चाहिए. हम आगे की पढ़ाई कृषि में करने के लिए बाहर जा रहे हैं ताकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद हम अपने गांव में आकर अपने गांव के लोगों को खेती के बारे में बता सकें. इस बार हमारे यहां बैंगन की खेती बहुत अच्छी हुई है और हमें बहुत लाभ हुआ है.
राजेश रंजन कहते हैं कि हम क्षेत्र के प्रगतिशील किसानों को खेती में मदद करते हैं. इस बार हमने देखा कि निरंजन गोरी का पूरा परिवार खेती से जुड़ा है तो हमने उन्हें बैंगन के पौधे दिए. इन लोगों ने अपने खेतों में 2.500 से 3000 पौधे लगाए. शुरुआती दौर में इन्हें काफी अच्छे फल मिले. ये हर तीन दिन में फल तोड़ने लगे जिसकी कीमत 400 से 500 रुपए हुआ करती थी जिसका बाजार मूल्य भी काफी अच्छा था और इन लोगों ने सिर्फ बैंगन की खेती करके लाखों रुपए कमाए हैं. इस बार इनके बेटे ने इन लोगों की खेती में काफी मदद की जो खेती की शिक्षा के लिए आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहते हैं. यह बहुत अच्छी बात है कि अगर गांव का कोई लड़का सही शिक्षा प्राप्त कर वापस आता है और गांव में खेती को बेहतर दिशा देता है तो गांव जरूर तरक्की करेगा. (अनुज सिन्हा का इनपुट)
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