एक पहल से मिली कड़ी मेहनत तो बदली किस्मत! गांव की मिट्टी से राष्ट्रपति भवन तक खिला ‘कौशल का फूल’

एक पहल से मिली कड़ी मेहनत तो बदली किस्मत! गांव की मिट्टी से राष्ट्रपति भवन तक खिला ‘कौशल का फूल’

कटिहार के मनीष कुमार मंडल राष्ट्रपति भवन में पौधों की देखभाल करते हैं. उनकी यह उपलब्धि साबित करती है कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के जरिए एक साधारण किसान परिवार का बेटा भी असाधारण उपलब्धि हासिल कर सकता है. बाकी लोग भी इस योजना का लाभ लेकर नई ऊंचाई पा सकते हैं.

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एक पहल से बदली किस्मत! गांव की मिट्टी से राष्ट्रपति भवन तक खिला ‘कौशल का फूल’मनीष कुमार मंडल की सफलता की कहानी

कटिहार के हसवर गांव की तंग गलियों और मिट्टी की सोंधी खुशबू से निकलकर जब मनीष कुमार मंडल राष्ट्रपति भवन के भव्य लॉन में फूलों और पेड़ों की देखभाल करते हैं, तो यह सिर्फ़ एक माली की भूमिका नहीं होती, यह उस सोच और संघर्ष का परिणाम होता है जिसमें हुनर, इच्छा और सही मार्गदर्शन मिलकर एक नई कहानी लिखते हैं. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के जरिए एक साधारण किसान परिवार का बेटा असाधारण उपलब्धि हासिल करता है. यह सिर्फ़ प्रेरणा नहीं, एक सामाजिक बदलाव की शुरुआत है.

खलिहान से ज्ञान तक का सफर

मनीष के पिता शिवलाल मंडल, कटिहार जिले के एक साधारण किसान हैं. गांव की सीमित सुविधाओं और आर्थिक दबावों के बावजूद मनीष ने बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी की. लेकिन आगे क्या? यह सवाल उनके सामने भी था, जैसा कि देश के लाखों युवाओं के सामने होता है. 2021 में बेहतर अवसरों की तलाश में मनीष दिल्ली पहुंचे. वहीं, 5 जनवरी 2025 को उन्होंने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत मास्टर माली कोर्स के लिए नामांकन कराया. यह कोर्स सिर्फ़ छह दिन का था, लेकिन इसका असर जीवन भर का हो गया.

हुनर ने खोले दरवाज़े

इस प्रशिक्षण में मनीष ने वैज्ञानिक तरीकों से बागवानी सीखी. मिट्टी की जांच. फूलों और पौधों की प्रजातियों की समझ. रोग और कीट नियंत्रण का तरीका, हर मौसम में अलग तरह की खेती करने का कौशल और सबसे अहम प्रेजेंटेशन और जिम्मेदारी की समझ विकसित की. यहां उन्होंने महसूस किया कि मेहनत अगर सही दिशा में बदल जाए तो वह मंज़िल से मिल ही जाती है. प्रशिक्षण पूरा होते ही मनीष को राष्ट्रपति भवन में मास्टर माली की भूमिका निभाने का मौका मिला. जहां कभी वे खेत की बाड़ के आसपास पेड़ लगाए थे, अब वे भारत के राष्ट्रपति के निवास पर हरियाली का जादू बिखेरते हैं. आज वे हर पेड़ के साथ अपने गांव के उस सपने को भी सींचते हैं, जो उन्होंने कभी अपने खेत की मिट्टी में देखा था 

आत्मनिर्भरता की मिसाल

मनीष अब हर महीने 20,000 की आय अर्जित कर रहे हैं. लेकिन उनका आत्मविश्वास और सम्मान इन पैसों से कहीं बड़ा है. वे आज अपने गांव लौटकर युवाओं को प्रेरित करते हैं कि स्किल ही असली सशक्तिकरण है. मनीष कहते हैं- यह कोर्स मेरे लिए सिर्फ़ एक स्किल ट्रेनिंग नहीं था, यह मेरे आत्मविश्वास का बीज था, जो अब एक पेड़ बन चुका है. मैं चाहता हूं कि मेरे जैसे और भी लोग इसका फल चखें. मनीष की कहानी इस बात की मिसाल है कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) सिर्फ़ रोज़गार का ज़रिया नहीं, बल्कि समाज में पहचान दिलाने वाली और सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली एक सशक्त सामाजिक क्रांति की शुरुआत है.

कौशल विकास की ऊंचाइयां

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना आज सिर्फ़ रोज़गार का माध्यम नहीं रह गई है, यह पहचान दिलाने वाली एक ताकत बन गई है. राष्ट्रपति भवन में स्किल इंडिया सेंटर का उद्घाटन यह दर्शाता है कि स्किलिंग अब सबसे ऊंचे मंच पर मान्यता प्राप्त कर रही है. कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्री जयंत चौधरी और आयुक्तों की यह सोच है कि स्किलिंग केवल ट्रेनिंग नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसका सीधा संबंध गरिमा, आजीविका और आत्मनिर्भरता से जुड़ना चाहिए.

देशभर के युवाओं के लिए एक सच्ची कहानी

मनीष की यह यात्रा किसी एक व्यक्ति की सफलता नहीं है. यह उस नीति की सफलता है जो चाहती है कि भारत का हर युवा अपने हुनर से सम्मान पाए. यह उस सोच की जीत है जिसमें गांव का बेटा राष्ट्रपति भवन तक पहुंचना सिर्फ़ सपना नहीं, एक संभव सच्चाई बन चुकी है. कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि यह ‘फूल’ अब सिर्फ़ मनीष के बगीचे में नहीं खिला है. यह लाखों युवाओं के दिल में उम्मीद की तरह महक रहा है. जरूरत है तो बस उस सोच की, जो मिट्टी को भी मुकुट बना दे.

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