खेती में सफलता की यह कहानी एक ऐसे किसान की है जिनके पास महज ढाई बीघा जमीन है और ऊपर से माथे पर 7 लाख रुपये का कर्जा भी है. इन तमाम चुनौतियों के बीच उन्होंने सफलता के झंडे गाड़े हैं और बता दिया है कि अगर इरादे नेक और अटल हों तो कामयाबी हर हाल में कदम चूमती है. जी हां. हम यहां मध्य प्रदेश के किसान नाथूराम लोध की बात कर रहे हैं जो बमोरी के गांव अंबाराम चक्क के रहने वाले हैं. नाथूराम की सफलता आज कई किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है.उन्होंने खेती में नवाचार और जैविक उत्पादन के जरिये साबित कर दिया कि अगर संकल्प दृढ़ हो तो हालात बदले जा सकते हैं.
नाथूराम की खेती में बड़ा बदलाव तब से शुरू हुआ जब उन्होंने उद्यानिकी विभाग बमोरी के वरिष्ठ उद्यान विकास अधिकारी आरएस केन से संपर्क किया. इस संपर्क में अधिकारियों ने उन्हें कई नेक सलाह दी. उनकी सलाह पर उन्होंने अपने खेत में थाई पिंक किस्म के अमरूद और एप्पल किस्म के बेर का बगीचा लगाया. उनकी खेती में पानी की कमी की समस्या थी. सिंचाई स्रोत भी दूर था जिससे कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. नाथूराम ने इन समस्याओं को चुनौती के रूप में लिया और 1 किलोमीटर दूर से पानी की पाइपलाइन खुद डाली.
नाथूराम ने अपनी खेती में केमिकल के इस्तेमाल को ना कर दिया और ठान लिया कि वे प्राकृतिक खेती से ही उत्पादन लेंगे. इसके लिए उन्होंने खुद की खाद बनाई. उन्होंने पाया कि रतलाम से मंगाए गए थाई किस्म के अमरूद के फल 750 ग्राम से लेकर 1 किलो तक के होते हैं. वहीं एप्पल किस्म का बेर भी आकार में बड़ा और बाजार में बेहद लोकप्रिय है. अपनी कमाई बढ़ाने के लिए उन्होंने एक-एक इंच जमीन का इस्तेमाल करना शुरू किया. इसके लिए पेड़ों के बीच की खाली जगह में वे खीरा, करेला, टमाटर, बैंगन जैसी अंतरवर्ती फसलें उगाकर अतिरिक्त आमदनी करने लगे. यह कमाई जारी है.
नाथूराम लोध ने खेती से कमाई बढ़ाने के लिए शून्य बजट और शुद्ध जैविक खेती पर फोकस किया. इसके लिए उन्होंने अपने खेतों में एक एकीकृत कृषि प्रणाली विकसित की है जिसमें पशुपालन और कृषि दोनों को मिलाकर काम किया जाता है. पशुओं के गोबर और गोमूत्र से जैविक खाद तैयार होती है, और खेतों से मिलने वाला भूसा पशुओं का आहार बनता है. इस तरह वे शून्य बजट प्राकृतिक खेती से शुद्ध जैविक उत्पाद तैयार कर रहे हैं.
नाथूराम की खेती आज चमक गई है और वे आज सफल किसान के रूप में जाने जाते हैं. एक साल के भीतर ही उन्होंने अपने बगीचे से लगभग 5 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमा लिया और यह कमाई लगातार जारी है. और अब वे आने वाले वर्षों में 10 लाख रुपये वार्षिक आमदनी की उम्मीद कर रहे हैं. उद्यानिकी विभाग गुना के उपसंचालक केपीएस किरार ने बताया कि "नाथूराम लोध ने एक मिसाल कायम की है, उनके प्रयासों से प्रेरित होकर अन्य किसान भी फल उत्पादन और जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं."
नाथूराम अब अपने अमरूद को 70 से 100 रुपये प्रति किलोग्राम और बेर को 25 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम के थोक मूल्य पर बेचते हैं. उनकी योजना है कि उत्पादों को उत्तम पैकेजिंग के साथ दिल्ली जैसे महानगरों में भेजा जाए और जैविक प्रमाणपत्र लेकर अधिक से अधिक दाम हासिल किया जाए. यह कहानी केवल नाथूराम की नहीं है, यह हर उस किसान की प्रेरणा बन सकती है जो कम संसाधनों के बावजूद बदलाव का संकल्प ले.
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