कभी तंगहाली से थे पस्त, अब मुनाफा ही मुनाफा... प्राकृतिक खेती ने बदली किसान सीताराम की किस्मत

कभी तंगहाली से थे पस्त, अब मुनाफा ही मुनाफा... प्राकृतिक खेती ने बदली किसान सीताराम की किस्मत

सीकर के किसान सीताराम पहले गेहूं और चने की खेती करते थे. इससे उनका काम नहीं चलता था. जो कुछ रुपये मिलते थे, वे फिर खेती में ही लग जाते थे. इस तरह वे हमेशा तंगहाली में रहे. बाद में उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाई और आज वे कई लोगों का परिवार उसी खर्च से चला रहे हैं.

Advertisement
कभी तंगहाली से थे पस्त, अब मुनाफा ही मुनाफा... प्राकृतिक खेती ने बदली किसान सीताराम की किस्मतसीकर के किसान सीताराम

खेती में सफलता की यह कहानी सीकर के किसान सीताराम नाथाराम बोरन की है जो श्यामपुरा (पूर्वी) गांव, पलसाना ब्लॉक के रहने वाले हैं. पलसाना ब्लॉक के श्यामपुरा (पूर्वी) गांव के एक प्रगतिशील किसान  सीताराम नाथाराम बोरन को 2013 से पहले खेती में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. 2  हेक्टेयर जमीन के मालिक होने के बावजूद, गेहूं और चने की पारंपरिक खेती पर उनकी निर्भरता से उन्हें बहुत कम लाभ हुआ. 2.5 एकड़ से, उन्होंने केवल 20 क्विंटल उपज काटी, जिससे उन्हें 32,000 रुपये की मामूली शुद्ध आय हुई, जो उनके परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी. बढ़ती इनपुट लागत और स्थिर पैदावार ने उन्हें निराश कर दिया.

फिर उन्होंने लगातार उत्पादकता में सुधार और खेती के खर्चों को कम करने के लिए स्थायी विकल्पों की तलाश शुरू की. 2012 में किसान बोरन ने खाटूश्याम में एक प्राकृतिक खेती के प्रोग्राम में भाग लिया, जहां उन्हें शून्य-बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) के एक प्रसिद्ध हिमायती पद्मश्री सुभाष पालेकर से सीखने का अवसर मिला. प्राकृतिक खेती के फायदे और कम इनपुट मॉडल से प्रेरित होकर उन्होंने इसकी तकनीकों को लागू करने का निर्णय लिया. उन्होंने जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर मंडप प्रणाली का उपयोग करके सब्जियों की खेती करके शुरुआत की. 

प्राकृतिक खेती के फायदे ही फायदे

इसका रिजल्ट उत्साहजनक रहा. उन्होंने अच्छी बाजार की मांग और आय के साथ करेला और लौकी की फसल ली. इससे प्रेरित होकर, उन्होंने स्वदेशी गेहूं की किस्म 'बंसी' पर भी हाथ आजमाया और पहले ही साल में 2.5 एकड़ से 15 क्विंटल की फसल ली. हालांकि पहले की उपज से थोड़ा कम, लेकिन खेती की काफी कम लागत ने उनके बदलाव को सार्थक बना दिया.

सीताराम बोरन को 2023-24 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना यानी PMKSY के तहत ड्रिप सिंचाई सहायता के लिए लाभ मिला, जिससे पानी बचाने का काम संभव हुआ, जो विशेष रूप से उनकी सब्जी और मूंगफली की फसलों के लिए फायदेमंद रहा. फिर 2024-25 में 1 हेक्टेयर पर मैक्रो स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक लगाने के लिए सब्सिडी मिली. सिंचाई योजना के तहत, उन्होंने अलग-अलग ट्रेनिंग कार्यक्रमों में भाग लिया, जिससे प्राकृतिक इनपुट तैयारी, पारंपरिक जैविक मिश्रणों का उपयोग करके कीट प्रबंधन, मृदा स्वास्थ्य और बीज संरक्षण के बारे में उनकी समझ बढ़ी. 

एक साथ कई फसलों की खेती

बोरन ने धीरे-धीरे एक मल्टी क्रॉप सिस्टम अपनाया और एक साथ कई फसलों की खेती की. इसमें खरीफ में मूंगफली, शकरकंद, मिर्च, बैंगन, ग्वार, बाजरा और हरे चारे की खेती की. वहीं रबी में गेहूं, चना, मेथी और मटर की खेती की. गर्मियों में उन्होंने तरबूज और खरबूज की खेती की. इस तरह की खेती ने उनकी बाजार पर से निर्भरता कम की और वे परिवार की जरूरत अपने खेत से ही पूरी करने लगे. यहां तक कि मवेशियों के लिए भई चारे उगाने लगे.

आज बोरन ने 25 से अधिक देशी बीजों की किस्मों को संरक्षित किया है और नियमित रूप से खेत पर सामुदायिक बैठकों के माध्यम से साथी किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभों के बारे में शिक्षित करते हैं. उन्होंने प्राकृतिक खेती के इनपुट को पूरी तरह से अपनाया है जिसमें शामिल हैं: जीवामृत (मिट्टी के सूक्ष्मजीव संवर्धन के लिए), बीजामृत (बीज उपचार के लिए), दशपर्णी अर्क, अग्निस्त्र और ब्रह्मास्त्र (वनस्पति कीटनाशक के रूप में) और पुराना छाछ: एक पर्यावरण अनुकूल कीटनाशक के रूप में. 

सीताराम नाथाराम बोरन के प्राकृतिक खेती में बदलाव ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिरता में सुधार किया है बल्कि पर्यावरण को सुधारने में भी योगदान दिया है. इस कम इनपुट वाली कृषि का उनका मॉडल आत्मनिर्भरता के लिए प्रयासरत छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रेरणा का काम करता है.

POST A COMMENT