
बिहार के रोहतास जिले स्थित मसोना गांव के किसानों ने खेती की लागत कम करने और बाजार से बिचौलियों को खत्म करने के लिए मिलकर उपाय निकाला है. जिससे उनको अपनी उपज का सीधा लाभ मिल रहा है. इसके लिए वे सामूहिक रूप से खेती करते हैं और साथ में अपनी उपज सीधे बाजार में भेजते हैं, जिससे उनकी आय में सुधार हुआ है. इस गांव के किसान अपनी लोकल मंडी पर निर्भर नहीं है बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में अपने खेतों से सब्जियां बेचते हैं.
मसोना गांव के किसानों ने अपनी सब्जी की उपज का लोकल मंडी में कम दाम मिलने के कारण 2005 में प्रगतिशील किसान क्लब नाम से एक समूह बनाया. इसके माध्यम से किसान अपनी उपज को दूसरे राज्यों में अधिक कीमत पर बेचते हैं. ताकि उन्हें अधिक से अधिक अपनी उपज का लाभ मिल सके.
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मसोना गांव के किसानों का कहना है कि साल 2005 से पहले उनके गांव में करीब 20 एकड़ एरिया में सब्जियों की खेती होती थी और यहां के किसान लोकल मंडी में अपनी सब्जी उपज को बेचने जाया करते थे, लेकिन सब्जियों को आधे-पौने दाम मिलते थे, इससे किसानों को ज्यादातर नुकसान उठाना पड़ता था. इसके बाद गांव के किसानों ने आत्मा परियोजना से जुड़कर किसानों का एक समूह बनाया, जिसमें 25 सदस्य हैं. अब बेहतर लाभ के चलते गांव में 75 एकड़ से अधिक एरिया में सब्जी की खेती हो रही हैं. इसी गांव के किसान राजगीर सिंह बताते हैं कि 2005 से पहले पांच बीघा में सब्जी की खेती करते थे. हालात यह थे कि किसी जरूरी काम या शादी विवाह के लिए जमीन बेचकर काम करना पड़ता था.अब वह बात नहीं है, आज दो एकड़ जमीन से करीब ढाई से तीन लाख रुपये सालाना की कमाई हो जाती है. उन्होंने बताया कि अब बैंक में पैसा होने के साथ-साथ हमेशा जेब में दो से तीन हजार रुपये भी रहते हैं. वह आगे कहते हैं कि इस क्लब में जितने भी सदस्य हैं. सभी किसानों की कमाई डेढ़ लाख से अधिक है.
किसान समूह के एक सदस्य सीताराम सिंह ने बताया कि उन्हें समूह बनाने का विचार 2005 में आया. इसके पीछे कहानी बताते है कि सब्जी का बीज लेने के लिए वे लोग ब्लॉक गए थे. वहीं कृषि अधिकारियों ने किसान समूह बनाने और उसके फायदे के बारे में जानकारी दी. इसके बाद हम किसानों ने आपस में सोच विचार कर 25 किसानों ने एक समूह बनाया. इसके बाद समूह के सदस्यों द्वारा सब्जी की खेती शुरू की गई. समूह बनाने का फायदा केवल बीज लेने या अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ लेने तक सीमित नहीं है. बल्कि किसानों को लोकल बाजार की तुलना में अपने उपज अधिक दाम मिले. इस लक्ष्य के साथ सभी सदस्यों ने मिलकर काम करना शुरू किया, जिसका आज बेहतर नतीजा मिल रहा है. उन्होंने बताया कि हमारी सब्जी की उपज को ले जाने के लिए एक गाड़ी लोकल बाजार में रोज आती है और सब्जी लेकर चली जाती हैं. उन्होंने बताया कि अपने सदस्यों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए हमेशा एक सदस्य दूसरे की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं.
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किसान क्लब की संरचना के बारे में बताते हुए समूह के सदस्य अर्जुन सिंह कहते हैं कि प्रगतिशील किसान क्लब में अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष व अन्य सदस्य बनाए गए हैं. वहीं सब्जियों की खरीद-बिक्री का हिसाब वे खुद रखते हैं. वे बताते हैं कि समूह के सदस्य अपने-अपने तरीके से सब्जियों की खेती करते हैं, जिनमें मुख्य रूप से गोभी, मिर्च, पालक, ब्रोकली, लौकी और अन्य सब्जियों की खेती की जाती है. किसान अपनी सब्जियां ठेले पर ले जाते हैं और सब्जियों के वजन के हिसाब से कीमत तय होती है. इसके बाद 24 से 48 घंटे के अंदर प्रगति किसान क्लब के बैंक खाते में पैसा पहुंच जाता है. इसके बाद सदस्य किसानों को उनकी उपज का पैसा बांटा जाता है. अर्जुन सिंह बताते हैं कि समूह के सदस्यों के अलावा 50 से ज्यादा किसान सब्जी की उपज खरीदते हैं.
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