बिहार में धान गेहूं के बाद अगर किसी तीसरे फसल की सबसे अधिक खेती होती है तो वह मक्का की होती है. राज्य के मक्का की मांग देश सहित विश्व के कई देशों में है. लेकिन अब सूबे के मक्का के छिलके से बने उत्पादों की भी मांग बढ़ने वाली है. मक्के के छिलके से बनने वाले प्रोडक्ट का पेटेंट मुजफ्फरपुर के रहने वाले इंजीनियर मोहम्मद नाज ओजैर को मिल चुका है. मक्का के छिलके से प्लेट,कटोरी,पत्तल,बैग सहित अन्य उत्पाद बनाने को लेकर पिछले महीने उन्हें भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय से प्रमाणपत्र मिला. यह सिग्नल यूज प्लास्टिक से बने प्लेट,कटोरी सहित अन्य उत्पादों रिप्सलमेंट मक्का के छिलके से करने को लेकर कार्य शुरू कर दिया है. जिसका फल पेटेंट प्रमाण पत्र के रूप में देखा जा सकता है.
मुजफ्फरपुर जिले के मुरादपुर गांव के रहने वाले मोहम्मद नाज़ ओजैर कहते है कि एमटेक की पढ़ाई करने के बाद हैदराबाद में इंजीनियरिंग कॉलेज में एक अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ पिछले आठ साल से गांव में हूं. यहां आने के बाद कुछ अलग करने की चाह ने ही मक्के के छिलके से प्रोडक्ट बनाने का निर्णय किया. 21 फरवरी 2024 को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय से प्रमाण पत्र भी मिला. लेकिन इस प्रमाण पत्र मिलने में क़रीब पांच साल का समय लग गया क्योंकि चीन और जापान के वैज्ञानिकों की ओर से बीच-बीच में अड़ंगा भी लगाया गया. कई हायरिंग के बाद सफलता मिली.
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हैदराबाद के जिस इंजीनियरिंग कॉलेज में मोहम्मद नाज़ ओजैर एमटेक की पढ़ाई पूरी किया. उसी कॉलेज में छह महीने लेक्चर के रूप में काम किया. लेकिन कुछ अलग करने की चाह के कारण वह 2016 में घर वापस आए. जहां उन्होंने ने देखा कि मक्का का उपयोग तो लोग करते हैं. लेकिन उसका छिलका बेकार समझ कर फेंक देते थे.जिसके बाद मोहम्मद नाज ने इससे कुछ अलग प्रॉडक्ट बनाने का निर्णय किया. मोहम्मद नाज ओजैर कहते है कि वह मक्के से पहले पपीता,केला, बांस के पत्ते से भी प्रॉडक्ट बनाया.हालांकि इसमें ज्यादा सफलता नहीं मिली.
आगे वह कहते है कि जब गांव और घर वालों से मक्के के छिलके से प्रोडक्ट बनाने की बात करते तो लोग पागल कहते थे. गांव के लोगों कहना था कि वह पागल हो चुका है. अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ मक्का के छिलके से अपना भविष्य बनाने चला है. लेकिन अपनी मजबूत इच्छाशक्ति के बदौलत मक्के के छिलके से बैग बनाया. उसके बाद प्लेट,पत्तल,कटोरी सहित अन्य उत्पाद बनाया. पेटेंट के लिए मार्च 2019 में आवेदन किया. जिसके बाद इस साल फरवरी में बीस साल के लिए पेटेंट प्रमाण पत्र मिला.
किसान तक से बात करते हुए मोहम्मद नाज कहते है कि उन्होंने ने अभी तक सिंगल यूज प्लास्टिक से बनने वाले चाय का कप,प्लेट,पत्तल सहित दस उत्पादों कोरिप्लेसमेंट मक्के के छिलके से किया है.वहीं आने वाले दस सालों में मक्के के छिलके से चॉकलेट,बिस्कुट,साबुन सहित अन्य छोटे सिंगल यूज प्लास्टिक के रेपर की जगह मक्के के छिलके के रेपर उपयोग करेंगे. उन्होंने आगे बताया मक्के की प्लेट बनाने में करीब पांच से छह पत्ते लगते है.वहीं इससे बनाने के लिए सबसे पहले पत्ते को ऊपर और नीचे से एक एक इंच काट देते है. जिसके बाद यह तीन से चार इंच तक चौड़े आकार में हो जाता है. पहले फेविकोल की मदद से प्लेट बनाते थे. मगर अब डाई की मदद से प्लेट बनाते हैं.
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