पिछले कुछ महीनों पर नजर डालें तो लहसुन के दामों में काफी इजाफा देखने को मिला है. अभी के लहसुन के दाम पर नजर डालें तो यह चार सौ रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है. हालांकि बिहार के किसान इसकी खेती नहीं करते हैं क्योंकि इसमें खर्च और मेहनत की तुलना में उत्पादन अधिक नहीं होता है. इसकी एक मुख्य वजह परंपरागत तरीक़े से खेती भी है. लेकिन अब कई किसान लहसुन की खेती बेड बनाकर मल्चिंग विधि से कर रहे हैं. इससे कम लागत में अधिक उत्पादन ले रहे हैं.
कैमूर जिले के चांद ब्लॉक के रहने वाले प्रगतिशील किसान रविशंकर सिंह पिछले एक साल से मल्चिंग विधि की मदद से लहसुन की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस तकनीक से खेती करने के दौरान आधे बीघा से अधिक जमीन में करीब ढाई क्विंटल तक लहसुन का उत्पादन हुआ है. वहीं मजदूरी नाम मात्र की लगी है. बदलते दौर के साथ इस विधि से अन्य सब्जियों की खेती किसान कर रहे हैं. कृषि वैज्ञानिक भी इस विधि से खेती को लेकर अपनी सलाह दे रहे हैं. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विधि से खेती के शुरुआती समय में थोड़ा विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है.
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किसान तक के साथ बातचीत करते हुए रविशंकर सिंह कहते हैं कि भोपाल में प्रशिक्षण लेने के दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने मल्चिंग विधि से लहसुन की खेती करने की सलाह दी. सिंह ने वहां से आने के बाद खेती शुरू की. इस विधि से खेती करने के दौरान दवा, सिंचाई सहित लेबर खर्च में काफी कमी देखने को मिली. जहां परंपरागत तरीके से लहसुन की खेती में दो से तीन बार निराई गुड़ाई करनी पड़ती थी. अब एक बार सिंचाई करने के बाद लंबे समय तक नमी बनी रहती है. इसकी वजह से बार-बार सिंचाई करने से छुटकारा मिल जाता है. वहीं लहसुन का साइज भी काफी बड़ा होता है.
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रविशंकर सिंह अपने अनुभव के आधार पर बताते हैं कि उन्होंने करीब पंद्रह डिसमिल जमीन में लहसुन की खेती की है. मल्चिंग तकनीक से खेती के दौरान इतनी ही जमीन से करीब ढाई क्विंटल तक लहसुन का उत्पादन हुआ है जिसे बाजार में डेढ़ सौ से दो सौ रुपये प्रति किलो तक बेचा है. आगे रविशंकर बताते हैं कि इसकी खेती के दौरान एक बंडल मल्च और लहसुन का बीज लगा है. आगे कहते हैं कि मल्चिंग और बेड विधि से खेती के दौरान ड्रिप इरिगेशन का होना बेहद जरूरी है क्योंकि दवा से लेकर सिंचाई के लिए यह बहुत जरूरी है.
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