पंजाब का नाम आते ही दिमाग में धान की खेती का खयाल आता है. लेकिन अब ये खयाल बदलाव की ओर है. धान की खेती ने पानी का खर्च इतना बढ़ाया है कि जमीन बंजर होने की कगार पर है. अंडग्राउंड पानी का स्तर तेजी से भाग रहा है. इसे रोकने की हर कोशिश नाकाम सी दिख रही है. यही वजह है कि सरकार किसानों को धान की खेती छोड़ उन फसलों को लगाने की सलाह दे रही है जो कम पानी पीती हो. इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. यहां तक कि सब्सिडी स्कीम भी चलाई जा रही है. इस दिशा में पंजाब के होशियारपुर जिले के किसानों ने बड़ा काम किया है. यहां के कुछ किसानों ने धान की खेती छोड़ सोयाबीन की खेती शुरू की है. अच्छी बात ये है कि इस एक जिले में ही लगभग 500 एकड़ में सोयाबीन की खेती लहलहा उठी है. किसानों को आने वाले दिनों में पानी के कम खर्च में अच्छी कमाई की उम्मीद जगी है.
होशियारपुर जिले में एक गांव है आलम वाल. यहां के किसान हैं मनप्रीत सिंह. वे धान की खेती और पानी के खर्चे से तंग आ गए थे. लिहाजा उन्होंने छोटे से खेत में सोयाबनी की खेती शुरू की. फायदा अच्छा मिला. फिर क्या था, उन्होंने 11 एकड़ खेत में सोयाबीन की फसल लगा दी. मनप्रीत सिंह सिंह के पास कुल 28 एकड़ की खेती है जिसमें 17 एकड़ में कई अन्य फसलों की खेती है जबकि 11 एकड़ में पूरी तरह से सोयाबीन लगाया है.
मनप्रीत सिंह की तरह ही एक और किसान हैं जूझर सिंह जो जंडियाला गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने 8 एकड़ खेत में सोयाबीन की खेती शुरू की है. धान से पूरी तरह से पल्ला झाड़ते हुए उन्होंने सोयाबीन को अपनाया है. जूझर सिंह 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहते हैं, शुरू में मैंने एक छोटे से प्लाट में सोयाबीन की खेती शुरू की. इसमें अच्छा फायदा हुआ जिसके बाद 8 एकड़ में इसकी खेती शुरू कर दी.
ये भी पढ़ें:
मनप्रीत और जूझर सिंह की तरह जंडियाला के कई किसानों ने अब सोयाबीन की तरफ रुख किया है. बछोही गांव के कुलविंदर सिंह, जंडियाला के धरमिंदर सिंह ने सोयाबीन पर हाथ आजमाना शुरू कर दिया है. ये किसान उन सैकड़ों किसानों की मंडली का हिस्सा हैं जिन्होंने सोयाबीन की खेती में सफलता की कहानी गढ़ना शुरू किया है. इन किसानों ने भोवाल के कृषि विज्ञान केंद्र की सराहना की है कि उन्हें इसके लिए प्रेरणा मिली है.
इन सभी किसानों की मेहनत की बदौलत आज होशियारपुर में 500 एकड़ में सोयाबीन की खेती हो रही है.एक्सपर्ट की मानें तो पंजाब के एक सिंगल जिले में इतने बड़े रकबे में सोयाबीन की शुरुआत अच्छा संकेत है. एक्सपर्ट का मानना है कि कांडी इलाके में सोयाबीन की खेती अच्छी शुरुआत है क्योंकि यहां के किसान पानी कमी और जंगली जानवरों से तंग आ चुके हैं.
किसान मनप्रीत सिंह कहते हैं, मैं धान और गेहूं की खेती से संतुष्ट नहीं था. लेकिन दूसरा कोई विकल्प भी नहीं सूझ रहा था. धान की खेती ने परेशान कर दी है क्योंकि हर साल ट्यूबवेल का बोर जमीन में बढ़ाना पड़ता है. इस मुश्किल समय में मैंने केवीके भोवल की मदद ली. वहां डॉ. मनिंदर सिंह बोंस और अजैब सिंह ने हमें गाइडेंस दिया और धान की जगह सोयाबीन लगाने की सलाह दी. सोयाबीन की खेती कम पानी में अच्छी उपज देती है. इसलिए हमें भी इसका फायदा मिल रहा है.
होशियारपुर के किसान बताते हैं कि केवीके के वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि अच्छी उपज के लिए कौन सा बीज लेना है और कौन सी तकनीक अपनानी है. मनप्रीत सिंह की सफलता को देखते हुए उनके गांव के आसपास 100 एकड़ में किसानों ने सोयाबीन की खेती शुरू कर दी है. सोयाबीन की खेती में अच्छी बात ये है कि इसमें कम से कम खाद और कीटनाशकों का प्रयोग होता है. सिर्फ एक बार स्प्रे करना होता है जिसमें प्रति एकड़ 600 रुपये का खर्च आता है. एक एकड़ में बीज पर 2000 रुपये का खर्च आता है और कटाई पर 2500 से 3100 रुपये प्रति एकड़ का खर्च है.
ये भी पढ़ें:
मनप्रीत सिंह कहते हैं कि एक एकड़ में 7-8 क्विंटल सोयाबीन निकलता है. सभी खर्चों को काट दें तो एक एकड़ में 30,000-40,000 रुपये का मुनाफा होता है. धान की खेती में भी कुछ इसी तरह का खर्च है लेकिन पानी की टेंशन अधिक है. सोयाबीन की बुवाई जून अंत में होती है जिसे मॉनसून की बारिश से पानी मिल जाता है. धान की खेती में 25-32 पानी की जरूरत होती है जबकि सोयाबीन 4-5 पानी में हो जाता है. यहां तक कि बारिश न भी हो तो अच्छी उपज मिल जाती है. इससे अच्छी बात क्या हो सकती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today