खेत में 36 प्रकार के फल उगा रहीं मह‍िला किसान सरिस, अकेले ड्रैगनफ्रूट से हो रही सालाना 6.5 लाख कमाई

खेत में 36 प्रकार के फल उगा रहीं मह‍िला किसान सरिस, अकेले ड्रैगनफ्रूट से हो रही सालाना 6.5 लाख कमाई

उत्‍तर प्रदेश के मिर्जापुर की कहानी बेहद ही रोचक है. उन्‍होंने 12वीं कक्षा के बाद ही प्रेम विवाह किया, लेकिन परिवार का विराेध और जीवन का संघर्ष झेला. उन्‍होंने नौकरी के साथ ही खेती करने का फैसला किया. आज वे अपने खेत में 36 प्रकार के फलदार पौधों की खेती कर रही हैं. अकेले ड्रैगनफ्रूट से साढ़े 6 लाख तक की कमाई हो रही है.

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खेत में 36 प्रकार के फल उगा रहीं मह‍िला किसान सरिस, अकेले ड्रैगनफ्रूट से हो रही सालाना 6.5 लाख कमाईअपने खेत में ड्रैगनफ्रूट के पौधे दिखाते हुए सरिस सिंह.

सरिस सिंह की कहानी संघर्ष, नवाचार और मेहनत की एक मिसाल है. उनकी बहुफसली खेती और ड्रैगन फ्रूट की सफलता ने यह साबित कर दिया कि चुनौतियों का सामना करके भी खेती को लाभदायक बनाया जा सकता है. उनका जीवन हर उस किसान के लिए प्रेरणा है, जो अपनी भूमि और मेहनत के बल पर आत्मनिर्भर बनना चाहता है. मिर्जापुर जिले के बगौड़ा गांव की रहने वाली सरिस सिंह ने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से न केवल खुद को आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि क्षेत्र में महिला किसानों के लिए एक प्रेरणा भी बनीं. उनकी जीवन कहानी संघर्ष, नवाचार और खेती में आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश करती है.

प्रेम विवाह और जीवन का संघर्ष

1991 में सरिस सिंह ने इलाहाबाद में 12वीं की पढ़ाई के दौरान समाज के विरोध को झेलते हुए विद्याशंकर सिंह से प्रेम विवाह कर उन्‍हें जीवनसाथी चुना. शादी के बाद आर्थिक समस्याओं और पारिवारिक सहयोग की कमी के बावजूद उन्होंने नौकरी की ओर ध्यान न देकर खेती को ही जीवनयापन का साधन बनाया. खेती के प्रति उनके लगाव और नवाचार ने उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया.

बहुफसली खेती और बागवानी से आमदनी

सरिस सिंह ने एक फसल पर निर्भर रहने के बजाय बहुफसली खेती को अपनाया. उनके खेतों में आम, अमरूद, आंवला, चीकू, और नींबू जैसे 36 प्रकार के फलदार पौधे हैं. इसके साथ ही उन्होंने मछली पालन और कड़कनाथ मुर्गा पालन जैसे उद्यमों को भी जोड़ा, जिससे उन्हें सालभर स्थिर आमदनी होती है.

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ड्रैगन फ्रूट की खेती का सफर

2022 में, सरिस सिंह ने उद्यान विभाग के सहयोग से 1.25 एकड़ में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की. 400 पिलर्स पर लगाए गए पौधों की लागत लगभग 2.5 लाख रुपये आई, जिसमें 30,000 रुपये की सब्सिडी मिली. 14 महीनों में एक पिलर से 10-15 किलो तक फल उत्पादन शुरू हो गया.

अब प्रति एकड़ 40 क्विंटल उपज होती है, जिससे 6.5 लाख रुपये तक की वार्षिक आय हो रही है. ड्रैगन फ्रूट की खेती की खासियत यह है कि इसमें पानी की कम जरूरत होती है और आवारा पशु फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते.

साथ ही, इंटरक्रॉपिंग के रूप में लहसुन, अदरक और प्याज उगाकर अतिरिक्त 1-1.5 लाख रुपये की आमदनी होती है. सरिस सिंह का कहना है कि उनके क्षेत्र में पानी की कमी एक बड़ी चुनौती है. बावजूद इसके, ड्रैगन फ्रूट की खेती ने उन्हें इस समस्या से निपटने में मदद की. ड्रैगन फ्रूट की खेती में कम खाद और पानी की जरूरत होती है, जिससे उनकी लागत भी कम रहती है.

बच्चों की शिक्षा और पारिवारिक योगदान

किसानी के साथ-साथ सरिस सिंह ने अपने बच्चों की उच्च शिक्षा पर भी ध्यान दिया. उनके दो बच्चे आज यूरोप में नौकरी कर रहे हैं. पति विद्याशंकर सिंह का इस सफलता में अहम  योगदान रहा, जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया.

सरिस सिंह की सफलता ने मिर्जापुर और सोनभद्र जिलों में महिला किसानों को ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए प्रेरित किया है. उद्यान अधिकारी मेवा राम के अनुसार, इन जिलों में 200 एकड़ से अधिक भूमि पर ड्रैगन फ्रूट की खेती हो रही है और 250 से अधिक किसान इससे जुड़ चुके हैं.

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