एग्रीकल्चर में पोस्ट ग्रेजुएट और गोल्ड मेडलिस्ट विलास शिंदे वह नाम है जिसने असफलताओं और निराशाओं से हार मानने से इनकार करते हुए आज एक नई कहानी लिखी है. विलास शिंदे ने किसानों की भलाई के लिए काम करने के अपने सपने को जारी रखा और अपने प्रयासों में सफल रहे. साल 2010 में उन्होंने एक लाख रुपये का निवेश किया और 100 किसानों के साथ एक किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) के रूप में सह्याद्री फार्म्स की शुरुआत की. यह एक सहकारी समिति और एक निजी लिमिटेड कंपनी का मिलाजुला रूप है. कंपनी पूरी तरह से किसानों के स्वामित्व में है और गैर-किसान इसका हिस्सा नहीं बन सकते हैं.
सह्याद्री फार्म्स आज महाराष्ट्र के नासिक क्षेत्र में 10000 किसानों के साथ करीब 25000 एकड़ जमीन का मालिकाना हक रखने वाली कंपनी है. यह फार्म्स रोजाना 1000 टन फल और सब्जियों का उत्पादन करती है और यही इसकी सफलता सबसे बड़ी कहानी है. सह्याद्रि फार्म्स भारत में अंगूर का सबसे बड़ा निर्यातक है. कंपनी ने साल 2018-19 में 23000 मीट्रिक टन अंगूर, 17000 मीट्रिक टन केला और 700 मीट्रिक टन अनार का निर्यात किया. 47 साल के विलास ने बताया कि उनकी फर्म ने पिछले वित्तीय वर्ष में 525 करोड़ रुपये का कारोबार हासिल किया. उन्होंने बताया कि फर्म देश में टमाटर के सबसे बड़े व्यापारियों में से एक हैं.
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सह्याद्रि के किसान थॉमसन, क्रिमसन, सोनाका, शरद सीडलेस, फ्लेम और एआरआरए जैसी अंगूर की किस्मों की खेती करते हैं. सह्याद्रि फार्म के करीब 60 फीसदी फल और सब्जियां निर्यात की जाती हैं और 40 फीसदी भारत में बेची जाती हैं. विलास कहते हैं कि कंपनी अपने उत्पादों को रूस, अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय देशों सहित 42 देशों में निर्यात करती है. एफपीसी द्वारा 40 हेक्टेयर से अधिक खेत में अर्रा अंगूर की विभिन्न किस्में जैसे सफेद, लाल और काला उगाई जाती हैं.
विलास की मानें कंपनी की तरफ से हर महीने करीब 38,000 होम डिलीवरी करते हैं. उन्होंने कहा कि कंपनी हाल के वर्षों में विकास पथ पर है. उनके ग्राहक मुंबई, पुणे और नासिक में स्थित हैं. साल 2018 में कंपनी ने 250 करोड़ रुपये के निवेश से नासिक के मोहदी में 100 एकड़ में फैले परिसर में एक फल प्रसंस्करण संयंत्र बनाया. परिसर में किसान-हब भी है जो किसानों को उनकी कृषि गतिविधियों में सहायता के लिए कई इनपुट के साथ समर्थन देने की एक पहल है. उनकी कंपनी में आज 1200 लोग काम करते हैं.
विलास ने बताया कि सह्याद्री फार्म्स ने अपने किसानों को पैदावार 25 प्रतिशत बढ़ाने में मदद की है. विलास की मानें तो आज उनके किसान थोक मंडियों में 35 रुपये की तुलना में अपने अंगूर के लिए औसतन 67 रुपये प्रति किलो कमाते हैं. जो किसान सालाना करीब एक लाख रुपये कमाते थे, वो भी अब दोगुने से भी ज्यादा कमाते हैं और उनकी कमाई भी स्थिर है.
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सन् 1998 में महाराष्ट्र के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी से कृषि में स्नातकोत्तर की पढ़ाई स्वर्ण पदक के साथ पूरी करने के बाद, वह खेती को एक पेशे के रूप में अपनाने के लिए अपने गांव लौट आए. वह परिवार के खेत में अंगूर, तरबूज और मक्का जैसी विभिन्न फसलें उगाते थे और उन्हें जिला बाजार में बेचते थे, लेकिन वह एक महीने में एक एकड़ खेत से मुश्किल से 10000 रुपये का लाभ कमा पाते थे. इसके बाद विलास ने डेयरी फार्मिंग में कदम रखा और निजी साहूकारों और बैंकों से कुछ ऋण लेकर लगभग 200 गायें खरीदीं.
उन्होंने अपने फार्म में एक छोटी पाश्चुरीकरण यूनिट लगाई और नासिक में दूध बेचा. बाद में उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट बनाना और बेचना भी शुरू किया, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ और एक समय उन पर 75 लाख रुपये का कर्ज हो गया. साल 2004 में विलास ने एक स्वामित्व कंपनी की स्थापना की और लगभग 12 किसानों के साथ सहयोग किया. उन्होंने अंगूर उगाए और 2004 में उन्होंने व्यापारियों के माध्यम से यूरोपीय बाजार में लगभग 72 मीट्रिक टन अंगूर का निर्यात किया.
स्टॉक की कीमत 70-80 लाख रुपये थी, लेकिन अच्छे लाभ का उनका सपना टूट गया क्योंकि उन्हें व्यापारी से केवल एक कंटेनर अंगूर (लगभग 18 मीट्रिक टन) के लिए भुगतान मिला. उसी समय विलास ने बिचौलियों पर अपनी निर्भरता बंद करने और उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुंचाने का फैसला किया. उन्होंने 2010 में लगभग 100 किसानों के साथ सह्याद्रि फार्म की शुरुआत की.
यूरोप के लिए उनकी पहली खेप अंगूर में अत्यधिक रासायनिक अवशेष पाए जाने के कारण अस्वीकार कर दी गई थी. यह स्टार्टअप के लिए एक विनाशकारी झटका था, लेकिन विलास हार मानने को तैयार नहीं थे. 6.50 करोड़ रुपये के नुकसान ने उन्हें तोड़कर रख दिया था. किसानों का नुकसान चुकाने के लिए अपनी संपत्ति बेच दी. यह उनके जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ था. साल 2017 में उनका टर्नओवर 76.04 करोड़ रुपये था और पिछले साल यह बढ़कर 525 करोड़ रुपये हो गया.
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