कश्मीर में श्रीनगर के बलहामा इलाके में रहने वाली एक 20 साल की लड़की, सानिया ज़हरा मधुमक्खी पालन करके पूरे देश की बेटियों के लिए मिसाल पेश कर रही हैं. सानिया ने अपनी मेहनत और लगन से पुरुष-प्रधान दुनिया में अपनी पहचान बनाई है. आज उन्हें देशभर में एक सफल उद्यमी के तौर पर जाना जा रहा है.
सानिया ने मधुमक्खी पालन अपने पिता से करना सीखा. बहुत कम उम्र से ही उन्होंने अपने पिता को यह काम करते देखा था. पहले उन्हें मधुमक्खी से डर लगता था लेकिन फिर उन्होंने उनसे दोस्ती कर ली. पिता से धीरे-धीरे मधुमक्खी पालन के गुर सीखे और कम उम्र से ही वह खुद मधुमक्खी पालन करने लगीं. उनके पिता न सिर्फ उनके गुरु हने बल्कि उन्होंने सानिया को इस सेक्टर में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया.
सानिया ने दसवीं के बाद फिजियोथेरेपी में डिप्लोमा किया. लेकिन उनका मन हमेशा से मधुमक्खी पालन में लगता था. हालांकि, उनके परिवार के कुछ सदस्य और रिश्तेदार नहीं चाहते थे कि वह ऐसा कुछ करें क्योंकि कश्मीर जैसी जगह पर एक लड़की का मधुमक्खी पालन जैसा प्रोफेशन चुनना आसान नहीं था. लेकिन जब उनके पिता ने उनका पैशन देखा तो उन्होंने उनका साथ दिया.
सानिया ने मीडिया को दिए अपने एक इंटरव्यू में बताया, “शुरुआत में मैंने पापा के साथ काम किया; फिर मैंने खुद ही बाहर जाने का फैसला किया." उन्होंने मधुमक्खी की 35 कॉलोनियों के साथ काम शुरू किया. इसके लिए उन्हें सरकार से 80% सब्सिडी मिली. उन्होंने बताया कि उन्हें35 मधुमक्खी कॉलोनी स्थापित करने पर 1.12 लाख रुपये की सब्सिडी मिली.
महज चार साल में सानिया अपनी कड़ी मेहनत और जुनून से एक सफल मधुमक्खी पालक बन गई हैं. अब वह 650 से ज्यादा मधुमक्खी कालोनियों को मैनेज करती हैं. साथ ही, लोकल और ग्लोबल लेवल पर ऑर्गनिक शहद बेचती हैं. कश्मीर से वह शायद मधुमक्खी पालन के पेशे में आने वाली पहली लड़की हैं और अब उन्हें कश्मीर की "Bee Queen" के रूप में जाना जाता है.
मधुमक्खी पालन में सबसे मुश्किल समय सर्दियों का होता है. जब कश्मीर की ठंडी घाटियों से उन्हें राजस्थान के गर्म इलाकों की ओर जाना पड़ता है. मधुमक्खी पालन में सबसे मुश्किल है माइग्रेशन. सर्दियों में उन्हें अपनी मधुमक्खी कॉलोनियों को लेकर गर्म इलाकों में जाना पड़ता है ताकि मधुमक्खी शहद बना सकें. वे सर्दी के समय में राजस्थान के गंगानगर में जाती हैं. अगर मधुमक्खियों को मौसम के अनुकूल माइग्रेट न किया जाए तो वे शहद का उत्पादन नहीं कर सकती हैं.
गंगानगर की जलवायु और वनस्पति मधुमक्खी पालन उद्यम के लिए आदर्श है. सानिया खुद अपने शहद की मार्केटिंग करती हैं. उन्होंने शुरुआत में कुछ बिचौलियों को शहद बेचा था, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि वे उत्पाद में मिलावट कर रहे हैं, तो उन्होंने खुद ही शहद की मार्केटिंग और बिक्री शुरू कर दी. अब वह कश्मीर, देश और विदेश में भी शहद बेच रही हैं. सानिया मधुमक्खी पालन से हर महीने एक-डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा कमा लेती हैं.
अपने फलते-फूलते मधुमक्खी पालन व्यवसाय के साथ, वह स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा कर रही हैं. सानिया की कहानी कई अन्य लोगों, खासकर युवा लड़कियों के लिए अपने सपनों को पंख देने के लिए प्रेरणा का काम करती है.
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