कृषि कार्यों को आसानी से और कम समय में पूरा करने के लिए कई बदलाव की जरूरत है. हालांकि पिछले कुछ सालों में कई बदलाव देखे भी गए हैं. अगर हम बदलाव की बात करें, तो हरियाणा के सिरसा जिले के छोटे से गांव नाथूसरी कलां के किसान ईश्वर सिंह कड़वासरा का नाम लिया जा सकता है. इन्होंने अपनी मेहनत, समझदारी और तकनीक से न केवल अपनी ज़िन्दगी बदली, बल्कि अपने गांव के दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया है.
ईश्वर सिंह कड़वासरा एक सामान्य किसान थे, जो पारंपरिक खेती से अच्छी आय कमाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे. उनके पास केवल सीमित ज़मीन थी, और उनका परिवार पूरी तरह से खेती पर निर्भर था. सूखा, फसल की कम कीमतें और अन्य परेशानी उनके जीवन को और भी चुनौतीपूर्ण बना रही थीं. लेकिन ईश्वर सिंह ने कभी हार नहीं मानी और कुछ नया करने की ठानी.
कुछ साल पहले, ईश्वर सिंह ने अपनी खेती में एक बड़ा बदलाव किया. उन्होंने टमाटर, तरबूज, लौकी, और अन्य मौसमी सब्जियों के साथ-साथ स्ट्रॉबेरी उगाना शुरू किया. यह एक जोखिम था, लेकिन उनका यह फैसला सफल साबित हुआ. पहले ही साल में उन्होंने 5 लाख रुपए की आय हासिल की, जो पारंपरिक खेती से मिलने वाली आय से कहीं अधिक थी. इस सफलता ने उन्हें और अधिक मेहनत करने और अपने खेती के तरीके को और बेहतर बनाने के लिए प्रेरित किया. आज उनकी वार्षिक आय बढ़कर 15 लाख रुपए हो गई है.
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ईश्वर सिंह ने यह महसूस किया कि आधुनिक खेती की तकनीकें अधिक लाभकारी हो सकती हैं. उन्होंने अपनी ज़मीन पर गेहूं, सरसों और कपास जैसी पारंपरिक फसलें तो उगाई ही, साथ ही स्ट्रॉबेरी और सब्जियों की खेती को अपनी आय का मुख्य स्रोत बना लिया. इसके साथ ही, वह जितना हो सके रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करते हैं. इसके बजाय, वह गाय के गोबर की खाद और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं. इससे उनकी फसलें न केवल स्वस्थ और स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि बाज़ार में भी अधिक मूल्य प्राप्त करती हैं.
ईश्वर सिंह की सफलता ने उनके गांव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है. उन्होंने भी अब अपनी सामान्य फसलों के साथ-साथ सब्ज़ियाँ उगाने का तरीका अपनाया है. ईश्वर सिंह का यह उदाहरण दर्शाता है कि अगर मेहनत और सही मार्गदर्शन हो, तो कृषि क्षेत्र में भी अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है.
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हालाँकि ईश्वर सिंह ने अपनी खेती में शानदार सफलता प्राप्त की है, फिर भी उन्हें अपनी उपज बेचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. उनके क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी, सब्ज़ियाँ और फूलों के लिए कोई स्थानीय बाजार नहीं है, इसलिए उन्हें अपनी उपज दूसरे शहरों में ले जाकर बेचना पड़ता है. इससे उनकी लागत बढ़ जाती है और मुनाफ़ा कम हो जाता है. फिर भी, ईश्वर सिंह अपनी मेहनत और जोश से इस समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.
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