मछली पालन कर रहे हैं या करने की सोच रहे हैं तो सबसे पहले पानी के बारे में पूरी जानकारी होना जरूरी है. क्योंकि अगर पानी सही होगा तो मछलियों की तेजी से ग्रोथ होगी यानि उनका वजन तेजी से बढ़ेगा. साथ ही पानी हेल्दी होगा तो मछलियों को बीमारियां भी कम होंगी. अगर तालाब के पानी को लेकर जरा से भी लापरवाही बरती जाती है तो मछली पालक को सीधे-सीधे बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. क्योंकि तालाब का पानी दूषित होते ही मछलियों में कई तरह की बीमारी हो जाती हैं.
मछलियों को नुकसान पहुंचाने वाले जीव-जन्तु तालाब में पैदा हो जाते हैं. पानी में प्रदूषण बढ़ने से ऑक्सीजन की कमी भी हो जाती है. जिसके चलते कई बार तो मछलियों की मौत होने लगती है. फिशरीज एक्सपर्ट की मानें तो नदी-समुद्र में तो मछलियां खुद से पल जाती हैं, लेकिन इनलैंड फिशरीज में तीन तरीके से मछलियां पाली जाती हैं. एक जाल लगाकर, दूसरा घर-खेत में टैंक बनाकर और तालाब खोदकर.
मछली पालक सुरेन्द्र सिंह का कहना है कि मछली पालन के लिए तैयार किए गए टैंक या तालाब खुले में ऐसी जगह होने चाहिए जहां सूरज की सीधी धूप पड़ती हो. पानी में सीप और घोंघे आदि जीव-जन्तु न पनपने पाएं. मछलियों को मांसाहारी जीव-जन्तु से बचाने के लिए जाल का इस्तेमाल करना चाहिए. एक्सपर्ट की सलाह पर पानी में दवा का छिड़काव करते रहें.
सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि गर्मी और सर्दी में तालाब और टैंक के पानी का खासतौर पर ख्याल रखा जाता है. अगर सर्दी है तो तालाब और टैंक के पानी को ज्यादा ठंडा न होने दें. सुबह-शाम मोटर चलाकर ताजा पानी को मिलाकर तालाब के पानी को सामान्यै कर दें. इसी तरह से गर्मी में ताजा पानी चलाकर उसकी गर्महाट को कम कर दें. इसके लिए तालाब के पास पानी की बड़ी मोटर का इंतजाम करके रखें.
पानी में प्रदूषण के चलते ऑक्सीबजन की मात्रा कम होना एक सामान्य बात है. लेकिन बड़ी बात यह है कि इसके चलते मछली पालक को कई बार बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. ऑक्सीजन की कमी के चलते मछलियां मरने लगती हैं. इसलिए समय-समय पर उपकरण की मदद से पानी का ऑक्सीजन और पीएच लेवल जांच लेना चाहिए. अगर ऑक्सीजन की कमी ज्यादा है तो मशीनों की मदद से ऑक्सीजन पानी में छोड़ी जानी चाहिए.
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