
खेती में अधिक उत्पादन की चाह में जहां लोग रासायनिक खाद और दवाओं का अंधाधुंध उपयोग कर रहे हैं, वहीं राज्य के कई ऐसे किसान हैं, जो जैविक खेती के बल पर रासायनिक खेती के बराबर उत्पादन कर रहे हैं. ये किसान न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता शक्ति को भी बढ़ा रहे हैं. ऐसे ही एक सफल किसान हैं बिहार के वैशाली जिले के राजापाकड़ प्रखंड के हरपुर मुकुंद गांव के बीरचंदर सिंह कुशवाहा और उनकी पत्नी आरती देवी. ये दंपति सब्जियों की खेती ऑर्गेनिक तरीके से करते हैं और अपनी सब्जियां बाजार में स्वयं बेचते हैं. लेकिन इनका कहना है कि अब ऑर्गेनिक खेती से जितना उत्पादन हो रहा है, उसके अनुसार बाजार और दाम नहीं मिल रहे हैं. इसके लिए सरकार को गंभीरता से सोचना होगा.
'किसान तक' से बातचीत के दौरान बीरचंदर सिंह कुशवाहा ने बताया कि 2017 से पहले वे रासायनिक खेती करते थे, लेकिन उसी साल उनका एक्सिडेंट हो गया, जिससे वे घर पर बैठ गए. आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्होंने तंबाकू के गुंडिल (डस्ट) को 50 किलो प्रति कट्ठा खेत में खाद के रूप में उपयोग करते हुए आलू की खेती की. जहां रासायनिक विधि से खेती करने वाले किसानों की तुलना में केवल एक क्विंटल कम आलू का उत्पादन हुआ. इसके बाद उन्होंने जैविक खेती करने का निर्णय लिया. 2020 से करीब 2 एकड़ में जैविक विधि से सब्जी की खेती शुरू की और 2023 तक पूरी जमीन को रसायनमुक्त कर चुके हैं.
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किसान बीरचंदर सिंह कुशवाहा कहते हैं कि शुरुआत में ऑर्गेनिक खेती से उत्पादन बहुत कम होता था, लेकिन जब उनकी भूमि चार साल के दौरान पूरी तरह ऑर्गेनिक हो गई, तो उत्पादन रासायनिक खेती के बराबर होने लगा. जहां प्रति कट्ठा रासायनिक खेती में कम से कम 3 हजार रुपए खर्च आता है, वहीं जैविक खेती में अधिकतम 1200 रुपये से भी कम खर्च होता है. हालांकि वे कहते हैं कि शुरुआती तीन-चार वर्षों में उत्पादन काफी कम होता है. इस दौरान किसानों को सरकारी मदद की बहुत जरूरत होती है.
कुशवाहा कहते हैं कि सरकार जैविक खेती को तो प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन उसके उत्पादों को बेहतर बाजार दिलाने की कोई ठोस योजना नहीं है. लोगों को रासायनिक और ऑर्गेनिक फसलों में अंतर नहीं पता. ऑर्गेनिक सब्जी की पहचान टेस्ट के जरिए ही संभव है. जब अधिक दाम मांगे जाते हैं, तो लोग ऑर्गेनिक की जगह रासायनिक सब्जी खरीदना पसंद करते हैं. इसके लिए सरकार को हर जिले और ब्लॉक स्तर पर एक स्थान निर्धारित करना चाहिए, जहां ऑर्गेनिक सब्जी उत्पादक किसान अपनी फसल बेच सकें.
प्रगतिशील महिला किसान आरती देवी कहती हैं कि बीते दो सालों से उत्पादन में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके साथ बेहतर बाजार नहीं मिल पा रहा है. उनके पति बताते हैं कि वे ऑर्गेनिक सब्जियां वैशाली जिला कृषि कार्यालय, हाजीपुर अनुमंडल कार्यालय, बड़े दुकानदारों और अमीर लोगों को बेचते हैं. इससे सालाना 6 से 7 लाख रुपये की कमाई हो रही है. लेकिन अब उत्पादन इतना अधिक हो गया है कि इन कार्यालयों में उसकी खपत संभव नहीं है.
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किसान आरती देवी बताती हैं कि सरकार से सिंचाई के लिए सोलर पंप अनुदान पर मिला है. ड्रिप इरिगेशन की मदद से खेतों की सिंचाई की जाती है. आत्मा के तहत उन्हें खेती में नवाचार को लेकर नियमित प्रशिक्षण भी मिलता है. हाल के समय में उन्होंने गरमा सब्जियों की खेती की है. वे बताती हैं कि आज से करीब आठ साल पहले दस से बीस हजार रुपये सब्जी की खेती से बचा पाना मुश्किल था, जबकि अब महीने की कमाई 55 हजार रुपये से अधिक हो जाती है. इसी कमाई से वे अपनी बेटी को कृषि की पढ़ाई करवा रही हैं ताकि वह भविष्य में कृषि के क्षेत्र में अधिकारी बन सके. वहीं बेटे की भी पढ़ाई बाहर भेजकर करा रही हैं.
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