कांगड़ा घाटी में पहली बार हुई पीली तोरई की खेती, 5 रुपये के बीज से किसान ने कमाया बड़ा मुनाफा 

कांगड़ा घाटी में पहली बार हुई पीली तोरई की खेती, 5 रुपये के बीज से किसान ने कमाया बड़ा मुनाफा 

किसान बलबीर सैनी ने पीले स्क्‍वैश की कोरियन किस्म के साथ प्रयोग करने का फैसला किया था. उन्होंने बताया कि नए प्रयोग के परिणाम शानदार रहे हैं. एक बीज, जिसकी कीमत करीब 5 रुपये है, जल्‍दी ही फल देता है और इसकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है. फसल विविधीकरण की दिशा में उनका साहसिक कदम अब आर्थिक और कृषि दोनों ही दृष्टि से अच्छा परिणाम दे रहा है. 

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कांगड़ा घाटी में पहली बार हुई पीली तोरई की खेती, 5 रुपये के बीज से किसान ने कमाया बड़ा मुनाफा कांगड़ा वैली के किसान को मिली बड़ी सफलता

हिमाचल प्रदेश में किसान ने सफलतापूर्वक पीले स्क्‍वैश या तोरई की खेती की है. कांगड़ा जिले के गग्गल के पास कंदरेहड़ पंचायत के पटोला गांव किसान बलबीर सैनी ने बड़ी मेहनत से पहली बार कांगड़ा घाटी की उपजाऊ मिट्टी में पीला स्क्वैश उगाया है. अपनी प्रोग्रेसिव सोच और खेती में नए तरीकों के लिए जाने जाने वाले सैनी की सफलता ने क्षेत्र की कृषि को इसके साथ ही एक नया मोड़ दे दिया है. सैनी को हरी तोरई की सफल खेती के लिए जाना जाता है. 

पांच रुपये में मिलता एक बीज

किसान बलबीर सैनी ने पीले स्क्‍वैश की कोरियन किस्म के साथ प्रयोग करने का फैसला किया था. उन्होंने बताया कि नए प्रयोग के परिणाम शानदार रहे हैं. अखबार द ट्रिब्‍यून ने उनके हवाले से लिखा, 'एक बीज, जिसकी कीमत करीब 5 रुपये है, जल्‍दी ही फल देता है और इसकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है.' फसल विविधीकरण की दिशा में उनका साहसिक कदम अब आर्थिक और कृषि दोनों ही दृष्टि से अच्छा परिणाम दे रहा है. 

वर्तमान में, स्थानीय बाजारों में हरे स्क्‍वैश की कीमत लगभग 20 रुपये प्रति किलोग्राम है. जबकि पीली तोरई की कीमत 45 रुपये प्रति किलोग्राम है. नई फसल के नयेपन और इसके पोषण मूल्य ने सबकी ध्यान आकर्षित किया है. आस-पास के गांवों के उत्सुक किसान सैनी के खेत में इस सुनहरी फसल को देखने और इसकी खेती के बारे में जानने के लिए आते हैं.

खेती में हैं कई चुनौतियां 

हालांकि पीले स्क्‍वैश की खेती करना काफी चुनौतीपूर्ण भी है. मिट्टी में अगर पानी भर गया तो फिर यह फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है. साथ ही यह फसल पीली मक्खी के हमलों के लिए भी संवेदनशील है. इन मसलों को दूर करने के लिए सैनी ने नई तकनीकों का प्रयोग किया. उन्‍होंने जड़ों को सड़ने से रोकने के लिए उभरी हुई क्यारियों पर पीला स्क्वैश लगाना और गेंदे के फूलों के साथ अंतर-फसल लगाने जैसे उपायों को अपनाया. 

कैसे सुरक्षित करें फसल 

सैनी ने बताया कि स्क्‍वैश को ऑर्गेनिक गेंदे की पंक्तियों में लगाकर सुरक्षित किया जा सकता है. उनका कहना था स्क्‍वैशअत्यधिक नमी और कीटों से बहुत अधिक प्रभावित होता है. सैनी के मुताबिक गेंदा एक प्राकृतिक ढाल की तरह काम करता है और अतिरिक्त पानी को सोख लेता है. साथ ही हानिकारक कीटों को भी रोकता है. रासायनिक स्प्रे की कोई जरूरत नहीं है.

यह तकनीक न केवल स्क्‍वैशकी उपज बढ़ाती है बल्कि बायो-डायविर्सिटी को भी बढ़ावा देती है. साथ ही इस क्षेत्र में इंटीग्रेटेड खेती के लिए एक मॉडल के रूप में काम कर सकती है. सैनी की सफलता उनके संरक्षण में पीले स्क्‍वैश के फलने-फूलने के साथ टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने वाले नए विचार का एक शानदार उदाहरण है. उनकी उपलब्धियां हिमाचल प्रदेश में फसल विविधीकरण के एक नए युग की शुरुआत कर सकती हैं.

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