बुंदेलखंड का बांदा क्षेत्र बीते दो दशकों में सूखा, भुखमरी और पलायन के लिए बदनाम रहा है. लेकिन, यहां कई ऐसे नायक भी उभरे हैं, जिन्हाेंने सूखे को मात देने के लिए संघर्ष किया. कुछ ऐसा ही प्रयास बांदा जिला स्थित जखनी गांव के किसान उमाशंकर पांडेय ने भी किया. तकरीबन डेढ़ दशक पहले जब बांदा जिला पूरी तरह से सूखे की चपेट में था, तो उस निराशा भरे दौर में जखनी गांव के किसान उमाशंकर पांडेय ने ''खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़'' का नारा गढ़ा.
पुरखों के सुझाए इस सूत्र को उन्होंने अपने खेतों में लागू किया. इस तरह सूखे को मात देने वाला जखनी मॉडल तैयार हुआ. नतीजतन, इसी मॉडल की लोकप्रियता ने उमाशंकर पांडेय को चर्चा में ला दिया. अब उन्हें इसी काम के लिए वर्ष 2023 में पद्म श्री से नवाजा जा रहा है.
किसान उमाशंकर ने डेढ़ दशक पहले अपने खेतों की मेड़बंदी कराई और उन पर छोटे बड़े, सभी प्रकार के स्थानीय पेड़ लगाए. इसका तात्कालिक लाभ यह हुआ कि पहली बारिश से ही वर्षाजल खेत में रुकने लगा. इससे मिट्टी के क्षारीय स्वभाव में बदलाव आने लगा. दो साल की बारिश में मेंड़ पर लगे अरहर और करौंदा जैसे छोटे पेड़ बड़े होकर मेड़ को मजबूती प्रदान कर फल भी देने लगे. धीरे-धीरे खेत में पानी रुकने की क्षमता बढ़ने के साथ मिट्टी की उर्वरकता भी बेहतर होने लगी.
गांधीवादी विचारों से प्रेरित पांडेय ने बताया कि उनके खेत से शुरू हुए इस सिलसिले को गांव के अन्य लोगों ने भी अपनाया. महज पांच छह साल के भीतर जखनी गांव, जल संरक्षण के रोल मॉडल के रूप में खड़ा हो गया. इसकी पहचान 'जलग्राम' के रूप में बन गई. बारिश का पानी गांव के ही खेतों में रुकने के कारण पूरे जखनी मौजे की जलधारण क्षमता बढ़ी. इससे गांव का भूजल जलस्तर भी सुधरा.
उमाशंकर पांडेय ने जखनी में उपजी उम्मीद की इस किरण को बापू के 'सर्वोदय' के विचार को फैलाने का भी जरिया बना लिया. जखनी से शुरू हुआ जलसंरक्षण का प्रयोग एक मुहिम बन गया और पांडेय की अगुवाई में आसपास के गांवों में भी फैलने लगा. उन्होंने बताया कि इस बीच 2018 में बांदा के जिलाधिकारी बन कर आए डा हीरालाल ने भी जखनी मॉडल को ही बुंदेलखंड के जलसंकट का स्थाई समाधान मानते हुए इसे प्रशासनिक प्रोत्साहन दिया. उन्होंने जखनी मॉडल को जिले की सभी 470 ग्राम पंचायतों में लागू किया.
इससे पांडेय की मुहिम को गति मिली और इसके बाद 2020 तक यह अभियान बांदा से निकलकर समूचे बुंदेलखंड क्षेत्र में पहुंच गया. इतना ही नहीं बांदा के डीएम के रूप में डा हीरा लाल ने भी पूरे जिले में जलसंरक्षण के अभियान को निजी तौर पर भी आगे बढ़ाया. पांडेय से प्रेरित होकर उन्होंने भी इस मुहिम के केन्द्र में गांवों को ही रखा.
डा हीरालाल ने अपनी किताब 'डायनमिक डीएम' में भी 'जलग्राम जखनी' का जिक्र किया है. डा लाल ने भारत सरकार द्वारा पांडेय को 2023 के पद्मश्री सम्मान के लिए चुने जाने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह सम्मान, प्रकृति के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवा का ही प्रतिफल है. जखनी में पांडेय के सफल प्रयोग की जानकारी डा हीरालाल के माध्यम से जलसंरक्षण मंत्रालय को हुई. इसके बाद नीति आयोग की टीम ने इस मॉडल का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट में यह माना कि बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त इलाकों के लिए किसान समुदाय 'खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़' के सूत्र का पालन कर जलसंकट से उबारने में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
इसके बाद सितंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम में पांडेय के जलग्राम मॉडल का जिक्र किया. मोदी ने देशवासियों को बताया कि पांडेय किस प्रकार से पारंपरिक विधियां अपनाकर बिना किसी सरकारी सहायता के, जल संरक्षण कर अच्छी खेती कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने देश के सभी ग्राम प्रधानों को पत्र लिखकर पांडेय के मेड़ बंदी अभियान को अपनाने की अपील की. नवंबर 2020 में जलशक्ति मंत्रालय ने पांडेय को 'राष्ट्रीय जलयोद्धा' के सम्मान से नवाजा. उन्हें प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली नीति आयोग की भूजल संरक्षण समिति में भी नामित किया गया.
जखनी मॉडल को उप्र सरकार ने भी 2022 में मान्यता प्रदान कर पांडेय से उनके मेड़बंदी अभियान को पूरे प्रदेश में लागू करने में मदद मांगी. पांडेय अब अपनी इस मुहिम को पूरे प्रदेश में फैलाने में जुटे हैं. पद्मश्री के लिए चुने जाने के सवाल पर पांडेय ने अपनी प्रतिक्रिया में सिर्फ इतना ही कहा कि हमेशा अंधेरे को कोसने के बजाय मैंने मिट्टी का एक दीया बनाकर जलाना मुनासिब समझा. मेरे जैसा साधारण किसान बस इतना ही कर सकता था.
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