ग्रामीण क्षेत्र के युवा शहरों में पलायन करने की जगह गांव में रहकर व्यवसाय कर रहे हैं और एक सुनहरे भविष्य की पटकथा लिखनी शुरू कर चुके हैं. पोल्ट्री फार्म, मत्स्य पालन, बकरी पालन व डेयरी का व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का सफल माध्यम बन रहा है. इसके साथ ही अब लोग बटेर पालन भी कर रहे हैं. बटेर या वर्तक (quail) भूमि पर रहने वाले जंगली पक्षी हैं, जिसे मांसाहारी लोग काफी पसंद करते हैं. किसान तक ने एक ऐसे ही युवक से मुलाकात की और उनकी सफलता की कहानी सुनी. कैमूर जिले के लबेदहा गांव के रहने वाले 26 वर्षीय निशांत सिंह ग्रेजुएशन की पढ़ाई करके गांव में ही बटेर का व्यवसाय कर रहे हैं. उन्होंने हमें बताया कि बड़े शहरों में नौकरी करने की जगह उन्होंने गांव में ही रोजगार करने का फैसला किया और आज बटेर पालन से वो हर महीने 30 हजार रुपए तक की कमाई कर रहे हैं.
निशांत करीब 20 हजार बटेर का पालन कर रहे हैं. इससे पहले वह पोल्ट्री फार्म का बिजनेस करते थे. लेकिन पिछले 8 महीने से बटेर पालन कर रहे हैं.
निशांत सिंह गांव में रहने के दौरान सबसे पहले पोल्ट्री फार्म का बिजनेस करते थे, लेकिन जब उन्हें पोल्ट्री फार्म से ज्यादा मुनाफा समझ में नहीं आया, तो उन्होंने बटेर पालन के क्षेत्र में उतरने का फैसला किया. उन्हें बटेर (जापानी) पालन करने का ये विचार सोशल मीडिया से आया था. उन्होंने बताया कि बटेर पालन की तुलना में मुर्गी पालन में ज्यादा मेहनत है. सभी अभिभावकों की तरह उनके पिता की भी इच्छा थी कि उनका बेटा सरकारी या किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करें, लेकिन स्कूली पढ़ाई के दौरान ही व्यवसाय करने की ललक ने उन्हें व्यापारी बना दिया. निशांत बताते हैं कि एक बटेर 35 दिन में तैयार हो जाता है और उसे तैयार करने में प्रतिदिन का खर्च एक रुपए तक आता है.
सिंह कहते हैं कि बटेर पालन करने में इतनी मेहनत नहीं है, जितनी मुर्गी पालन के दौरान करनी पड़ती थी. एक स्क्वायर फिट जमीन एक मुर्गी के लिए चाहिए लेकिन उतनी ही जगह में आप 6 से 8 बटेर पाल सकते हैं. वह अपने अनुभव से बताते हैं कि एक किलो मुर्गी को तैयार करने में करीब 100 रुपए तक खर्च आ जाता है और 10 रुपए मुनाफा रखकर बेच देते हैं. जबकि उतनी ही जगह में 6 से 8 बटेर रह सकते हैं और एक बटेर को तैयार करने में 35 रुपए तक खर्च आता है. एक बटेर 8 से 10 रुपए में बिकता है. दूसरी बात यह कि यह मुर्गी की तुलना में बीमार कम होते हैं और इनकी मृत्यु दर भी बहुत कम है. तीसरी खास बात यह है कि मुर्गी पालन के दौरान दुर्गंध आता है, जबकि इसके पालन के दौरान दुर्गंध बहुत ही कम होता है. सबसे खास बात यह है कि बटेर पालन कम जगह में आसानी से की जा सकती है, जबकि मुर्गी पालन में संभव नहीं है. वह 30 फीट लंबे और 30 फीट चौड़े क्षेत्र में 500 से ज्यादा मुर्गियां नहीं रख पाते थे. अब उतनी ही जमीन में 5000 तक बटेर पाल रहे हैं.
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बटेर का मांस काफी गर्म होता है. इसलिए सर्दी में इसकी ज्यादा मांग रहती है. वहीं गर्मी के मौसम में मांग कम रहती है. मोटे तौर पर कहा जाए तो सर्दी का मौसम सबसे अनुकूल रहता है. वहीं कुछ लोग मांस के साथ अंडे का भी बिजनेस करते हैं. बटेर एक जंगली पक्षी है, जो साल भर में 250 से 300 अंडे देती है.
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