महाराष्ट्र के बीड जिले में किसान अब बागवानी फसलों की खेती में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं. किसान पहले पारंपरिक फसलों की खेती करते थे, लेकिन अब वे बागवानी को ओर रुख कर रहे हैं. इसी में एक ड्रैगन फ्रूट की भी खेती है, जिसमें किसान अधिक रुचि दिखा रहे हैं. पहले यहां बागवानी फसलें कम होती थीं, लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से इसमें फायदे मिल रहे हैं, उसे देखते हुए किसान फलों और सब्जियों की खेती की ओर मुड़ रहे हैं.
इसी को देखते हुए में बीड जिले की आष्टी तालुका के चिखली में किसान अभी भी कम पानी की योजना के साथ बाग-बगीचों की खेती करते नजर आने लगे हैं. किसान यहां ड्रैगन फ्रूट उगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं. बीड जिले में कम बारिश होती है, इसलिए धान-गेहूं जैसी फसलें यहां अधिक नहीं होतीं. इससे पार पाने के लिए किसान बागवानी की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि इसके लिए अधिक बारिश या बहुत पानी की जरूरत नहीं होती.
इसी क्रम में यहां के एक किसान बबन शिंदे ने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की है. पहले साल 30 गुंटा जमीन पर उम्मीद से ज्यादा उत्पादन करने वाले प्रगतिशील किसान बबन शिंदे ने 18 महीने में एक लाख रुपये से ज्यादा की कमाई की है. पहले साल में उन्हें काफी सफलता मिली और इससे उन्हें अच्छी पैदावार भी मिली. उन्होंने 30 गुच्छे ड्रैगन फ्रूट की खेती में लगभग साढ़े तीन लाख रुपये खर्च किए हैं. पहले साल में उन्हें छह महीने में 50 हजार रुपये और साल में एक लाख रुपये का उत्पादन मिला है. वहीं, भविष्य में आय बढ़ने की उम्मीद है.
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ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसान बबन श्रीराम शिंदे रहने ने बताया कि हमारा बीड जिला सूखाग्रस्त है. यहां पानी की काफी कमी है. वहीं, इलाके में कोई पानी का स्रोत नदी या नाला नहीं हैं. ड्रैगन फ्रूट की खेती में साढ़े तीन लाख रुपये खर्च आया है. उन्हें इसकी खेती करते हुए 18 महीने हो गए हैं, जिससे 6 महीने में 55 हजार रुपये की कमाई हुई है. वहीं, सालभर में एक लाख रुपये का उत्पादन प्राप्त हो चुका है.
किसान बबन ने बताया कि उन्होंने 145 रुपये के भाव से ड्रैगन फ्रूट के पौधे सांगोला से खरीदे थे. उन्होंने बताया कि एक किलो में दो फल लगते हैं. अन्य फसलों के मुकाबले इसमें छिड़काव या अधिक खाद की जरूरत नहीं होती है, साथ ही इसमें शुरुआती रोपण की लागत नहीं होती है. यही वजह है कि बीड के किसान इसमें रुचि दिखा रहे हैं. अष्टी तालुका के ज्यादातर किसानों ने पारंपरिक फसल को छोड़कर फलों की बागवानी की ओर रुख किया है. इसमें सहफसली विधि से प्याज की फसल को फलों के बगीचों में उगाया जा सकता है. (योगेश काशिद की रिपोर्ट)
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