यूपी सरकार तिल की खेती करने वाले किसानों को भी सहारा दे रही है. सरकार बीज पर अनुदान देकर लागत कम और उत्पादन अधिक करने में किसानों की सहायता कर रही है. खरीफ में यूपी में लगभग 5 लाख हेक्टेयर में तिल की खेती की जाती है. कृषि विभाग तिल के बीजों पर 95 रुपये प्रति किग्रा की दर पर अनुदान उपलब्ध करा रहा है. वहीं तिल की खेती के लिए कृषि विभाग किसानों को वैज्ञानिक विधि भी सीखा रहा है. तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9846 रुपये प्रति कुंतल है.
खरीफ मौसम में उत्तर प्रदेश मे लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में तिल की खेती की जाती है. तिल की खेती विशेष रूप से असमतल (जहां जलभराव में समस्या न हो) भूमि में कम वर्षा वाले क्षेत्र में की जा सकती है. तिल की खेती में कृषि निवेश न के बराबर लगता है, परंतु तिल का बाजार मूल्य अधिक होने के कारण प्रति इकाई क्षेत्रफल में लाभ होने की सम्भावना अधिक है.
तिल की प्रमुख प्रजातियां आरटी-346 एवं आरटी-351,गुजरात तिल-6, आरटी-372, एमटी-2013-3 एवं बीयूएटीतिल-1 हैं. कृषि विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा तिल के उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिए इसके बीजों पर 95 रुपये प्रति किग्रा की दर पर अनुदान उपलब्ध कराया जा रहा है. तिल के बीज बोने से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा से बीजोपचारित करने से मृदा एवं बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है तथा बीजों में अंकुरण बेहतर होता है या जैविक कीटनााशी ट्राइकोडर्मा 4 ग्रा प्रति किग्रा की दर से बीज उपचारित किया जा सकता है.
खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरंत बाद पेडीमेथालिन का उपयोग किया जा सकता है. तिल में सिंचाई बरसात की स्थिति में आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन फूल आने व दाना भरने की अवस्था मे सिंचाई जरूरी है. तना एवं फल सड़न बीमारी के रोकथाम हेतु थायोफेनेट मिथाइल या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव तथा पत्ती झुलसा रोग के लिए मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का प्रयोग आवश्यक है. तिल में कीटों के बचाव हेतु क्विनालफाक्स या डाइमेथोएट का छिड़काव का प्रयोग आर्थिक क्षति स्तर से अधिक क्षति होने पर ही करना चाहिए.
कृषि विभाग का मानना है कि वर्तमान में किसानों के पास कृषि जोत के रूप में बहुत सी ऐसी भूमि बुवाई से अवशेष पड़ी रहती है, जिसका उपयोग सूक्ष्म सिंचाई साधनों का प्रयोग कर तिल की खेती के रूप में की जा सकती है. इससे किसान अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर सकते हैं.
जब 70-80 प्रतिशत फलिया पीली पड़ जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए तथा पौधों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर मडाई की जाये. परम्परागत विधि से तिल की खेती करने पर 4-6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर उपज लगभग 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9846 रुपये प्रति क्विंटल है.
इस प्रकार वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर किसानों को कम लागत में लगभग एक लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक आय प्राप्त हो सकती है. किसान अधिक जानकारी के लिए राजकीय कृषि रक्षा इकाई/जिला कृषि रक्षा अधिकारी/ कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं.
बता दें कि तिल का उपयोग उच्च पोषकमान (यथा प्रोटीन की मात्रा 20.9 प्रतिशत, वसा 53.5 प्रतिशत परंतु कोलेस्ट्राल की मात्रा शून्य पायी जाती है. इसके साथ ही विटामिन-ए, बी-1, बी-2, बी-6, बी-11, पोटैशियम, कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, मैगनीशियम एवं जिंक) के कारण खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है.
साथ ही औषधीय गुणों (रक्तचाप, रक्तशर्करा एवं कोलेस्ट्राल के स्तर को नियंत्रित करने के साथ ही रोगाणुरोधी तथा कैंसर को नियंत्रित करने के भी गुण भी सम्मिलित हैं) के कारण वर्तमान समय में चिकित्सकों द्वारा तिल के बीज का उपयोग प्रतिदिन करने को कहा जाता है. तिल के तेल की गुणवत्ता उच्च स्तर की होने के कारण प्रतिदिन भोजन में सम्मिलित करने का सुझाव भी आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा दिया जा रहा है.
उप्र के पूर्व कृषि निदेशक डॉ जितेंद्र कुमार तोमर ने बताया कि तिल की खेती के लिए गर्म व शुष्क जलवायु की आवश्कता होती है. अच्छी जल निकासी वाली दोमट या हल्की बलुई दोमट भूमि तिल की खेती के लिए उपयुक्त होती है, जिसका पीएचमान 6.0-7.5 अच्छा माना जाता है. तिल की बुवाई खरीफ सीजन में जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक की जा सकती है. उन्होंने बताया कि बुवाई की विधि में कतार से कतार की दूरी़ 30-45 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी अधिक उत्पादन के लिए ठीक मानी जाती है.
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