पीएम किसान योजनाकेंद्र सरकार ने साल 2019 में देश के छोटे और सीमांत किसानों को राहत देने और उनकी आर्थिक मदद के उद्येश्य से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की शुरुआत की थी, जिसका दायरा अब और बढ़ा दिया गया है. लेकिन, शुरुआत से ही योजना में कई खामियां थी, जिसके चलते काफी गड़बड़िया भी हुईं. इसमें यह भी सामने आया कि देशभर में लाखों की संख्या में अपात्र किसानों ने सरकार के अरबों रुपये हासिल किए. वहीं, इस क्रम में मणिपुर में योजना में हुए बड़े घोटाले पर कृषि विभाग की लापरवाही लगातार उजागर हो रही है. लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.
यहां 2.31 लाख से ज्यादा अपात्र लाभार्थियों को 65.49 करोड़ रुपये से अधिक की रकम बांटी गई, लेकिन वर्षों बाद भी न तो पैसे की वसूली हुई और न ही जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई ठोस कानूनी कार्रवाई की गई है. यह खुलासा वर्ष 2022 में प्रकाशित महालेखा परीक्षक की ऑडिट रिपोर्ट में हुआ.
इंफाल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2019 से फरवरी 2021 के बीच 1.91 लाख से अधिक लाभार्थियों को बिना किसी जरूरी दस्तावेज के पीएम-किसान योजना में शामिल कर दिया गया. इन सभी एंट्री को MANI01 नाम के यूजर आईडी से स्टेट नोडल ऑफिसर द्वारा अप्रूव किया गया, जबकि नियमों के अनुसार जमीन के कागजात, आधार कार्ड और बैंक दस्तावेज की जांच अनिवार्य थी.
ऑडिट में यह भी सामने आया कि योजना का लाभ आयकरदाता लोगों तक को दे दिया गया, जो नियमों का सीधा उल्लंघन है. इंफाल टाइम्स द्वारा आरटीआई के जरिए जब इस घोटाले से जुड़े लाभार्थियों और जिम्मेदार अधिकारियों की जानकारी मांगी गई तो कृषि विभाग ने महीनों तक टालमटोल की और अंत में सूचना आयोग की सख्ती के बाद ही 270 दिन बाद जानकारी दी.
कृषि विभाग की दी गई सूची के अनुसार, थौबल जिले में सबसे ज्यादा 75,571 अपात्र लाभार्थी पाए गए. इसके बाद काकचिंग में 39,761, चुराचांदपुर में 38,872, बिष्णुपुर में 20,363 और सेनापति जिले में 14,742 अपात्र लाभार्थियों के नाम सामने आए.
आंतरिक दस्तावेजों से यह भी पता चला है कि MANI01 यूजर आईडी पहले तत्कालीन स्टेट नोडल ऑफिसर युमनाम श्याम सिंह और उनके रिटायरमेंट के बाद तत्कालीन कृषि निदेशक ललतनपुई वानछॉंग के पास थी.
5 जून 2024 को विभाग ने अपात्र लाभार्थियों को 10 अगस्त 2025 तक राशि लौटाने का नोटिस जारी किया था, लेकिन अब तक एक भी लाभार्थी द्वारा पैसे लौटाने की पुष्टि नहीं हुई है. वहीं, जिन अधिकारियों की मंजूरी से यह पूरा फर्जीवाड़ा हुआ, उनके खिलाफ आज तक कोई एफआईआर या विभागीय कार्रवाई नहीं हुई है.
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