पारंपरिक तरीके से फसल उगाने में पानी की काफी खपत होती है. यही वजह है कि केंद्र और राज्य सरकारें लगातार कोशिश कर रही हैं कि किसान ऐसी तकनीक अपनाएं जिससे पानी का कम से कम इस्तेमाल हो. वहीं भूजल का लगातार गिरता स्तर भी किसानों के बीच चिंता का बढ़ता कारण है. इसके मद्देनजर हरियाणा सरकार अब चावल की सीधी बिजाई (डीएसआर) की तकनीक को आगे बढ़ा रही है और किसानों से इसे अपनाने का आग्रह कर रही है. इसके लिए राज्य सरकार किसानों को 4000 रुपये प्रति एकड़ की वित्तीय सहायता भी मुहैया करा रही है.
डीएसआर पद्धति मजदूरों की आवश्यकताओं को बढ़ाए बिना उत्पादन लागत और पानी के उपयोग को कम करता है. वहीं हरियाणा के 12 जिलों में जहां भूजल की उपलब्धता पहले से ही काफी कम है, वहां कृषि विभाग धान की खेती की इस पद्धति को बढ़ावा दे रहा है. डीएसआर पद्धति को बढ़ावा देने के लिए, हरियाणा सरकार किसानों को 4000 रुपये प्रति एकड़ की वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है. वहीं हरियाणा के 12 जिलों अम्बाला, यमुनानगर, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, पानीपत, जींद, सोनीपत, फतेहाबाद, सिरसा, रोहतक और हिसार में 2.25 लाख एकड़ में धान की सीधी बुवाई का लक्ष्य रखा गया है.
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किसानों को योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा. वहीं सहायता राशि किसानों के बैंक खातों में डीबीटी के माध्यम से डाली जाएगी. इस योजना से लाभान्वित होने के लिए किसानों को ‘मेरी फसल मेरा ब्योरा’ वेबसाइट https://fasal.haryana.gov.in पर अपनी फसल का रजिस्ट्रेशन कराना होगा. रजिस्ट्रेशन के लिए आधार कार्ड, भूमि का ब्यौरा और परिवार पहचान पत्र की आवश्यकता होगी. यहां किसान को यह बताना होगा कि उसने कितनी एकड़ जमीन पर डीएसआर पद्धति से धान की खेती की है. फिजिकल सत्यापन के बाद प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन कराने वाले किसानों को प्रोत्साहन राशि तुरंत उनके खाते में मिल जाएगा.
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डीएसआर विधि से धान की खेती में नर्सरी तैयार करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके अलावा, DSR तकनीक के तहत धान बुआई के लिए देसी हल या मशीन का भी उपयोग किया जा सकता है. बीज के साइज के हिसाब से मात्रा तय होती है. औसतन एक हेक्टेयर में 30-35 किलो बीज लगते हैं. बुआई के दौरान एक कतार से दूसरे कतार के धान की दूरी 20-25 सेंटीमीटर होनी चाहिए.धान को 2-3 सेमी गहराई में बोना चाहिए.
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