केंद्र और राज्य सरकारें ये चाहती हैं कि किसान भाई-बहन धान छोड़कर मक्के की खेती करें. क्योंकि मक्का की खेती धान के मुकाबले बहुत कम पानी में हो जाती है. लेकिन, उसका उचित दाम मिले इसके लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है. सरकार को सिर्फ किसानों से उम्मीद है, किसानों की उम्मीद सरकार से क्या है इस मसले पर पूरे सिस्टम में सन्नाटा छा जाता है. नतीजा यह है कि धान और गेहूं जैसी फसलों से किसानों का मोहभंग नहीं हो पा रहा है. खरीफ मार्केटिंग सीजन 2022-23 के लिए मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 1962 रुपये प्रति क्विंटल तय है. लेकिन, ओपन मार्केट में सिर्फ 1245 से 1700 रुपये तक का भाव चल रहा है. क्योंकि ज्यादातर सरकारें एमएसपी पर इसकी खरीद नहीं कर रही हैं.
धान और गेहूं के बाद मक्का भारत में तीसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसल है. मक्का खरीफ फसल है, हालांकि कुछ राज्यों में रबी सीजन में भी इसकी पैदावार होती है. केंद्र सरकार मक्का का उत्पादन 34 मिलियन टन से बढ़ाकर 45 मिलियन टन तक ले जाना चाहती है. ताकि इथेनॉल उत्पादन और पोल्ट्री उद्योग की जरूरतों को पूरा किया जा सके. लेकिन एक कड़वा सच यह है कि किसानों को इसका एमएसपी तक नहीं मिल पा रहा है. मध्य प्रदेश में तो इसका दाम उत्पादन लागत से भी कम हो गया है. सवाल यह है कि ऐसे में किसान कैसे उत्पादन बढ़ाएंगे?
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मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में 28 मई को मक्का का न्यूनतम दाम 1,245 रुपये रह गया. जबकि केंद्र सरकार खुद यह मानती है कि 2022-23 में इसका कॉस्ट ऑफ प्रोडक्शन 1308 रुपये प्रति क्विंटल है. यहां मॉडल प्राइस 1,655 जबकि अधिकतम भाव 1,858 रुपये प्रति क्विंटल रहा. यह सब एमएसपी के स्तर से कम रहा. यह भाव ई-नाम प्लेटफार्म से लिया गया है. इस प्लेटफार्म पर भी एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है.
तेलंगाना के वारंगल जिले में स्थित नरसमपेट मंडी में 28 मई को मक्का का न्यूनतम दाम 1,652 रुपये रहा. मॉडल प्राइस 1,702 और अधिकतम भाव 1,766 रुपये रहा. उधर, महाराष्ट्र के लासलगांव-विंचुर में 28 मई को न्यूनतम दाम 1500 और अधिकतम 1851 रुपये रहा. जबकि जलगांव में 29 मई को न्यूनतम भाव 1550 और अधिकतम 1725 रुपये प्रति क्विंटल रहा. बिहार में 1750 रुपये का दाम चल रहा है. कुल मिलाकर ज्यादातर राज्यों में इसका दाम एमएसपी से कम ही चल रहा है.
एरकस पॉलिसी रिसर्च से जुड़ी एग्री इकोनॉमिस्ट श्वेता सैनी का कहना है कि इथेनॉल के लिए पर्याप्त मक्का चाहिए तो किसानों को पर्याप्त दाम देना होगा. किसानों को मक्का में प्रॉफिट नहीं दिखेगा तो वो उसकी खेती क्यों करेंगे. ऐसी ही कुछ चिंता बिहार किसान मंच के नेता धीरेंद्र सिंह की है. उनका कहना है कि अच्छे दाम के बिना खेती का दायरा नहीं बढ़ेगा. सरकार इसका उत्पादन बढ़ाना चाहती है तो दूसरी ओर बिहार जैसे प्रमुख उत्पादक राज्य में किसान लंबे समय से मोदी सरकार द्वारा निर्धारित रेट न मिलने को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. धीरेंद्र सिंह इसी मसले पर ‘मक्का हवन’ भी कर चुके हैं.
जहां तक मक्का खरीद की बात है तो इस मामले में लगभग सभी राज्य फिसड्डी हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक अगर सरकार एमएसपी पर मक्का की खरीद करने लगे तो ओपन मार्केट में भाव अच्छा हो जाएगा.
साल | टन |
2014-15 | 314844 |
2015-16 | 22352 |
2016-17 | 62180 |
2017-18 | 47794 |
2018-19 | 12103 |
2019-20 | 115138 |
2020-21 | 205315 |
(Source: Ministry of Consumer Affairs, Food and Public Distribution)
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