बीजेपी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस साल 9 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में बंपर जीत का लक्ष्य रखा है. ताकि उसकी धमक 2024 के लोकसभा चुनाव तक बनी रहे. लेकिन, ऐसा परिणाम किसानों को राजी किए बिना संभव नहीं दिखता.किसान इन दिनों न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी मांग रहे हैं. विपक्ष इसे हवा देने के काम में जुटा हुआ है. दूसरी ओर, हैरानी की बात यह है कि इस विषय पर गठित की गई कमेटी की अब तक हुई बैठकों में एमएसपी पर कोई बात ही नहीं हुई है. कृषि कानूनों के खिलाफ 378 दिन का किसान आंदोलन मुख्य तौर पर एमएसपी पर कमेटी बनाने के लिखित आश्वासन के बाद 9 दिसंबर 2021 को स्थगित हुआ था.
आंदोलन स्थगित होने के करीब सात माह बाद कमेटी तो बनी लेकिन अब तक वो एमएसपी को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है. नतीजे पर तो तब पहुंचेगी जब उस पर बात शुरू होगी. अभी तक बात किसी और मुद्दे पर हो रही है. संयुक्त किसान मोर्चा पहले ही कमेटी को नकार चुका है. इसलिए उसके प्रतिनिधि इस कमेटी में शामिल ही नहीं हुए हैं. सरकार ने अपने मन से जिन किसान संगठनों के पदाधिकारियों को इसमें शामिल किया है वो भी अधिकारियों के रवैये से निराश हैं. जबकि, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इनमें से कम से कम पांच राज्यों में किसान निर्णायक माने जाते हैं.
फिलहाल, कृषि क्षेत्र में बड़े परिवर्तन के लिए प्रधानमंत्री के दिशा-निर्देश पर बनाई गई कमेटी की बृहस्पतिवार को चौथी बैठक होगी. नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र कांप्लेक्स में इसके सदस्यों को बुलाया गया है. कमेटी के गठन के छह महीने बाद भी इसकी महज तीन बैठकें ही हुई हैं. उसमें भी कई बड़े नाम एक भी बैठक में नहीं आए हैं. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है इसे लेकर कौन गंभीर है और कौन नहीं.
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद भी कमेटी के सदस्य हैं, लेकिन अब तक वो एक भी बैठक में नहीं आए हैं. कृषि और सहकारिता का चोली दामन का साथ है, लेकिन, एक भी बैठक में सहकारिता सचिव भी शामिल नहीं हुए हैं. बताया गया है कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर भी इसमें नहीं आए हैं. यहां तक कि आईसीएआर के डीजी हिमांशु पाठक भी सिर्फ पहली बैठक में आए थे. उसके बाद अपने प्रतिनिधियों को भेजना शुरू कर दिया. जबकि इस कमेटी से देश को बहुत उम्मीदें हैं.
इस कमेटी का गठन जुलाई 2022 में किया गया था. जिसमें एमएसपी को सबसे ऊपर रखा गया था. नोटिफिकेशन में कहा गया था कि प्राकृतिक खेती एवं फसल विविधीकरण को लेकर भी यह कमेटी काम करेगी. पहली बैठक अगस्त 2022 में समन्वय के लिए हुई. दूसरी बैठक जीरो बजट प्राकृतिक खेती पर मैनेज, हैदराबाद में हुई थी. तीसरी बैठक फसल विविधिकरण को लेकर भुवनेश्वर, ओडिशा में हुई थी. सूत्रों का कहना है कि 18 जनवरी 2023 की बैठक के एजेंडे में भी एमएसपी नहीं है. जबकि, पूरे देश की निगाह सबसे ज्यादा एमएसपी के ऊपर ही है. हालांकि, कुछ सदस्य एमएसपी को लेकर बातचीत कर सकते हैं.
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि एमएसपी गारंटी कानून बनाने के लिए देश में फिर बड़ा किसान आंदोलन होगा. लेकिन, एमएसपी के नाम पर गठित कमेटी में एमएसपी पर ही चर्चा नहीं हो रही है. दूसरी ओर, अब तक किसानों की इनकम डबल होने की पुष्टि करने वाली कोई रिपोर्ट नहीं आई है. जबकि किसानों की आय डबल करने वाले केंद्र सरकार के वादे की मियाद 31 दिसंबर 2022 को खत्म हो चुकी है.
बहरहाल, अब आते हैं एमएसपी कमेटी पर, जिसकी बैठक को लेकर कुछ अधिकारी संजीदा नहीं दिख रहे हैं. जो लोग बैठक में आ रहे हैं उनमें से ज्यादातर लोग इस विषय पर बात नहीं कर रहे. जबकि, नोटिफिकेशन में कहा गया है कि यह कमेटी एमएसपी को और प्रभावी व पारदर्शी बनाने का काम करेगी. कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इस मसले को लेकर सरकार जल्द ही किसी नतीजे पर नहीं पहुंची तो उसके लिए चुनावों में किसान चुनौती बन जाएंगे. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है एमएसपी गारंटी कानून के बिना किसानों का भला नहीं होगा. अगला आंदोलन इसी मांग को लेकर होगा.
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि एमएसपी पर कमेटी बनाने के लिखित आश्वासन के बाद किसान आंदोलन स्थगित हुआ था. बड़ी मुश्किल से सरकार ने कमेटी बनाई. उसमें भी अपने समर्थक किसान नेता रखे. अब उसके बनने पर भी उसकी बैठकों में एमएसपी पर कोई चर्चा न होना बताता है कि सरकार ने आंदोलनकारियों को गुमराह किया. ध्यान रहे कि आंदोलन स्थगित हुआ है. इसलिए किसानों का अगला संग्राम एमएसपी गारंटी को लेकर होगा.
ये भी पढ़ें: विकसित देशों को क्यों खटक रही भारत में किसानों को मिलने वाली सरकारी सहायता और एमएसपी?
सवाल यह है जब इतने ज्वलंत मुद्दे को लेकर बनाई गई कमेटी की बैठक में असली मुद्दे पर कोई बात ही नहीं हो रही और उसके सभी सदस्य आ ही नहीं रहे हैं तो फिर इसकी क्या गंभीरता होगी? कैसे कमेटी खेती-किसानी के इस मसले पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी. हालांकि, इसके कुछ सदस्य चाहते हैं कि एमएसपी का दायरा सिर्फ दो-तीन सूबों तक सीमित न हो. इसका फायदा सिर्फ गेहूं और धान पैदा करने वाले किसानों को ही न मिले बल्कि इसका लाभ उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक सभी प्रमुख फसलों को उगाने वालों को मिले.
अभी एमएसपी का ज्यादातर पैसा पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिमी यूपी के किसानों को मिलता है. कुछ सदस्य चाहते हैं कि इसका लाभ दूसरे सूबों तक भी पहुंचे. इसके लिए एमएसपी के दायरे में दूसरी फसलों को भी लाना होगा. इस व्यवस्था को और पारदर्शी बनाना होगा. देखना यह है कि एमएसपी को लेकर किस बैठक में चर्चा होगी और किस बैठक में इसके सभी सदस्य मौजूद रहेंगे.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today